Thursday, October 31, 2019

जॉन लॉक का जीवन परिचय एवं राजनीतिक चिंतन


* जॉन लॉक का जीवन परिचय :-

                                                                           जॉन लॉक का जन्म 29 अगस्त 1632 को वेरिग्टन सोमरसेटशायर मैं हुआ उसका परिवार गृह युद्ध में संसदीय समर्थक लोगों के साथ रहा | लॉक को उसके परिवार के प्रभाव के कारण वेस्टमिन्जर स्कूल में प्रवेश मिल गया इस समय इस स्कूल का प्रधान रिचर्ड बुस्वी था जो की राजतंत्र समर्थक था अत : लॉक कोई अपने परिवार से  पूर्णतः भिन्न पृष्ठभूमि एवं प्रभाव देखने को मिला किंतु रिचर्ड बुस्वी निरंतर मुझे देखने की अपेक्षा की कि उसके विद्यार्थी किस विचारधारा या किस मान्यता को मानने वाले हैं लॉक जीवन प्रियतम चलने वाली चिकित्सा तथा विज्ञान की रुचि एवं अनुभावात्मकता की प्रवृति इसी काल में विकसित हुई है |

जॉन लॉक  का जीवन परिचय एवं राजनीतिक चिंतन

* जॉन लॉक की प्रमुख रचनाएं:-

                                                                          एसेज कंसर्निग ह्यूमन अंडरस्टेडिंग, लेटर्स कंसर्निग टॉलरेशन, थॉट कंसर्निग एजुकेशन एसेज ऑर दि. लॉ अफ नेचर, |

* जॉन लॉक की पुस्तकों में सबसे महत्वपूर्ण पुस्तक:-

                                                                                                             ``   टू  टीटाइसेज ऑन सिविल गवर्नमेंट ´´

*जॉन लॉक  का राजनीतिक चिंतन :-

( 1 ) मानव प्रकृति एवं प्राकृतिक अवस्था:- 

                                                                                                 लॉक ने अपने राजनीतिक चिंतन का प्रारंभ होम्स की भांति प्राकृतिक अवस्था से ही प्रारंभ किया है लॉक  का मानना है कि प्राकृतिक अवस्था की दो महत्वपूर्ण विशेषताएं हैं प्रथम यह पूर्ण स्वतत्रता की अवस्था है  इस अवस्था में व्यक्ति प्राकृतिक कानून की सीमाओं के अंदर जो चाहा कर सकता है लॉक के शब्दों में प्राकृतिक कानून की सीमाओं में रहते हुए किसी दूसरे मनुष्य की इच्छा या अनुमति से स्वंतत्र अपना कार्य करने की अपनी संपत्ति और व्यक्तित्व की अपनी इच्छा अनुसार व्यवस्था करने की पूर्ण स्वतंत्रता की अवस्था हो मनुष्य की स्वाभाविक अवस्था है लॉक मैं ऐसा नहीं है लोकी प्राकृतिक अवस्था ने तो आदर्शवादी है और ने ही युद्ध की अवस्था लोकी प्राकृतिक अवस्था की उल्लेखनीय विशेषता प्राकृतिक कानून का होना है जो उसे व्यवस्थाआत्मक  रूप प्रदान करते हैं 

( 2 ) समाज एवं सरकार की स्थापना :-

                                                                                      लॉक की प्राकृतिक अवस्था में असुविधाएं तो थी किंतु वे असहनीय नहीं थी लॉक की प्राकृतिक अवस्था तथा होम्स की प्रकृति अवस्था के सिद्धांत में हम यह यंत्र पाते हैं इस अंतर को स्वयं लॉक ने प्रकट करते हुए लिखा है प्राकृतिक अवस्था तथा युद्ध की अवस्था में यह स्पष्ट विभिनता है जिसे कुछ विचारकों ने स्वीकार नहीं किया है इन दोनों अवस्थाओं में उतनी ही विभिनता है ताकि नागरिक सम्मान का गठन किया जा सके तथा ऐसी संस्था को जन्म दिया जा सके जो इस अवस्था की कमियों को सुधारने में समर्थ हो इस उद्देश्य से ही व्यक्ति समझौता करते हैं इस समझौते के माध्यम से स्वतंत्र एवं सम्मान व्यक्ति अपने प्राकृतिक स्वतंत्रता का इसलिए परित्याग कर देते हैं ताकि प्राकृतिक कानून की सही व्याख्या हो सके समर्थ न्यायधीश हो तथा उन्हें लागू किया जा सके 


( 3 ) सरकार के प्रकार :-

                                                        लॉक सरकार के प्रकारों का विवेचन करते हुए कहता है कि चुंकि प्रकृति अवस्था में कोई व्यवस्थित एवं सर्वमान्य कानून नहीं थे अत : एक कानून निर्मात्री इकाई होना आवश्यक है यह व्यवस्थापिका होगी यह प्रत्येक राज्य मे सर्वोच्च होती है लॉक के शब्दों में व्यवस्थापिका सत्ता वह सत्ता है जिसे राज्य की शक्ति का निर्देशन करने का अधिकार होता है कि किसी प्रकार व्यक्ति समाज और उसके सदस्यों की सुरक्षा के लिए लिए प्रयोग में लाई जाए साथ ही सरकार का स्वरूप इस बात पर निर्भर करता है की व्यवस्थापिका सत्ता का किस प्रकार से संचालन किया जाए लॉक ने लिखा है की सरकार का सबसे अच्छा रूप है जिसमें व्यवस्थापिका सत्ता ऐसे भिन्न-भिन्न व्यक्तियों को सौंपी जाए जो विधि पूर्वक सभा में एकत्रित हो 

( 4 ) क्रांति का अधिकार तथा  संप्रभुता की अवधारणा:-

                                                                                                                         न्याय की अवधारणा में क्रांति की मान्यता स्वत : अंतनिर्हित होती है अगर सरकार न्याय के प्रावधानों का उल्लंघन करती है तथा सत्ता का निजी हितपूर्ति मैं प्रयोग होता है तो जनता को यह अधिकार है कि वे सरकार को हटा दें इस उद्देश्य के लिए यदि आवश्यक हो तो वे शक्ति का प्रयोग भी कर सकते हैं यद्यपि लॉक ने उस अवस्था का उल्लेख नहीं किया है जिसमें शक्ति की अनुमति हो 

( 5 ) प्राकृतिक अधिकारी की अवधरणा :-

                                                                                                 लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में व्यक्ति के पास कुछ अधिकार थे  जिन्हे उच्च प्रकृति अधिकारों की संज्ञा दी है एक नागरिक समाज की रचना की तथा उसके पास सरकार की स्थापना की लॉक के लेखन में प्राकृतिक अधिकारों का जो विवेचन मिलता है उसके अनुसार अधिकार सरकार से पहले तथा सरकार का अस्तित्व उसको संरक्षण प्रदान करता है अधिकार प्राकृतिक अवस्था में पूर्णतया थे सरकार एवं कानून उनमें अतिरिक्त कुछ भी नहीं जोड़ते सरकार द्वारा बनाए गए कानून उस समय तक मान्य रहते हैं जब तक कि वे  प्राकृतिक कानूनों के अनुरूप हो  राजनैतिक अवस्था में प्राकृतिक अधिकार कानूनी अधिकारों का रूप ले लेते हैं तथा सरकार ने लागू करने को बाध्य होती है लॉक के अनुसार प्रत्येक अच्छी सरकार ऐसा करती है जबकि वहीं सरकार की अपेक्षा अपने स्वयं  के कानून भी लागू करती है
                   

वातावरण का अर्थ व परिभाषा एवं वातावरण के प्रकार

* वातावरण का अर्थ एवं परिभाषा ( Meaning and Definition of Environment ) :-
                                                                                                                            ' वातावरण ' के लिए इसका पर्यायवाची शब्द ' पर्यावरण ' का भी प्रयोग किया जाता है ।

             पर्यावरण दो शब्दों से मिलकर बना है ' परि ' तथा ' आवरण ' । ' परि - का अर्थ है - ' चारों ओर ' तथा ' आवरण ' का अर्थ है - ' ढकने वाला ' या ' घेरने वाला ' । इस प्रकार पर्यावरण या वातावरण वह है जो व्यक्ति को चेतन या अचेतन रूप में चारों ओर से घेरे हुए हैं ।

             अनुकूल वातावरण में व्यक्ति का स्वाभाविक विकास होता है और प्रतिकूल वातावरण में उसका विकास कुण्ठित होता है । वातावरण के तत्वों के अंतर्गत वे सभी भौतिक ( Physical ) और मनोवैज्ञानिक ( Psychological ) उद्दीपक  आते हे जिनमें प्राणी गर्भाध जान से लेकर जीवन पर्यन्त प्रभावित होता रहता है |

 • रॉस -
              “ वातावरण कोई बाहरी शक्ति है जो हमें प्रभावित करती है । "


• वुडवर्थ -
                 " वातावरण में वे सब बाहय तत्व आ जाते है , जिन्होंने व्यक्ति को जीवन आ करने के समय से प्रभावित किया हैं "
" Environment covers with all the outside factors that have acted on the individual since la began life . "
                                       

 • बोरिंग , लैंगफील्ड व वेल्ड -
                                             " व्यक्ति का वातावरण उन सभी उद्दीपकों का योग है जिनको वह गर्भाधान से लेकर मृत्यु तक ग्रहण करता है |

 वातावरण का अर्थ व परिभाषा एवं वातावरण के प्रकार


* वातावरण के प्रकार ( Types of Environment ) :-

                              1 . आंतरिक वातावरण ( Internal Environment ):-
                                  आंतरिक वातावरण का तात्पर्य गर्भावस्था की उन परिस्थितियों से है जो भूण को चारों ओर से घेरे रहती है ।

2 . बाह्य वातावरण ( External Environment ):-
                                                                          बाह्य वातावरण के अंतर्गत वे सभी परिस्थितियां आती हैं जो सामूहिक या मिश्रित रूप से उसके विकास और व्यवहार को प्रभावित करती रहती है । बाहय वातावरण को दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है -

                                           ( अ ) भौतिक वातावरण ( Physical Environment ) इसे प्राकृतिक वातावरण भी कहते हैं । इसके अंतर्गत पृथ्वी , चन्द्र , सूर्य , नदियां , पहाड़ , समुद्र , रेड - पौधे , जीव - जन्तु आदि सभी प्रकृति प्रदत्त वस्तुएं आती हैं जो किसी न किसी प्रकार व्यक्ति को आजन्म प्रभावित करती रहती हैं ।

                             ( ब ) सामाजिक वातावरण ( Social Environment ) :-
                                सामाजिक वातावरण का तात्पर्य उन सभी परिस्थितियों से है जो बालक के शारीरिक , मानसिक और सामाजिक विकास पर प्रभाव डालती है । मानव समाज में प्रचलित सभी सामाजिक परिस्थितियों , रीति - रिवाज , प्रथाएँ , रूढ़ियां , रहन - सहन आदि सामाजिक वातावरण के अंतर्गत आते हैं ।


* वंशानुक्रम और वातावरण का सापेक्ष महत्व :-
                                                               1. वंशानुक्रम और वातावरण को एक - दूसरे से पृथक नहीं किया जा सकता ।
2 . वंशानुक्रम और वातावरण , एक - दूसरे के पूरक , सहायक और सहयोगी हैं ।

3 . वंशानुक्रम और वातावरण के प्रभावों में अंतर करना संभव नहीं हैं ।

4 . व्यक्ति का विकास , वंशानुक्रम एवं वातावरण की अन्तः क्रिया के फलस्वरूप होता है और व्यक्ति इन दोनों का योगफल न होकर गुणनफल है ।

व्यक्ति ( Individual ) =
                                  H ( वंशानुक्रम ) XE ( वातावरण )
               अंत में हम कह सकते हैं कि बालक के विकास के लिए वंशानुक्रम और वातावरण , दोनों कारकों का ही समान रूप से महत्व है । वंशानुक्रम और वातावरण में से , यदि कोई भी कारक शून्य हो जाता है तो व्यक्ति का विकास भी शून्य हो जायेगा ।
जैसा कि सूत्र से स्पष्ट है -
                      वंशानुक्रम x वातावरण = व्यक्ति का विकास अतः ox वातावरण = 0 या वंशानुक्रम xo = 0
                 ( चूंकि गणित में , ox 2 = 0 या 2 x 0 = 0 ) |

होम्स के राज्य की उत्पत्ति का सिद्धांत संविदा का स्वरूप एवं व्यक्तिगत व निरंकुशतावाद का जनक


* होब्स की प्राकृतिक अवस्था :-

                                                                       हॉब्स ने प्राकृतिक अवस्था को बड़ी दयनीय बताइए उसके अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य लगातार संघर्ष करता रहता है वास्तव में होम्स के राजनीतिक दर्शन की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें मानव स्वभाव या प्रकृति के विश्लेषण को केंद्र बिंदु बनाया गया है  होम्स के अनुसार मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी व आत्म केंद्रित प्राणि है  वह हमेशा सुख पाने की इच्छा करता है दुखदाई परिस्थितियों से वह हमेशा दूर रहने का प्रयास करता है इस सुख की प्राप्ति के लिए वे दूसरों पर अधिकार जमाना चाहता है उसे इस बात का अनुभव होता है कि शक्ति द्वारा ही सुख प्राप्त किया जा सकता है लेकिन मैं दूसरों पर अपना अधिकार नहीं जमा सकता क्योंकि होम्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में सभी मनुष्य शारीरिक व मानसिक शक्ति में करीब-करीब बराबर होते हैं अभिप्राय यह है कि सब मिलाकर व्यक्तियों में एक प्राकृतिक समानता है अर्थात ने कोई किसी से कम है और ने किसी से अधिक सुख प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी अड़चन यह है की स्वयं  उसी के सम्मान सभी व्यक्ति सुख की खोज में व्यस्त हैं लोग एक दूसरे से डरते हैं फिर भी एक दूसरे से लड़ते हैं संघर्ष की प्रवृति असुरक्षा की भावना उत्पन्न करती है |
 
होम्स के राज्य की उत्पत्ति का सिद्धांत संविदा का स्वरूप एवं व्यक्तिगत व निरंकुशतावाद का जनक

* हॉब्स के राज्य की उत्पत्ति का सिद्धांत या संविदा का स्वरूप :-

                                                                                                                                                 हॉब्स के अनुसार मनुष्य के लिए विवेकजन्य नियमों का आचरण करना बहुत कठिन होता है क्योंकि मनुष्य के भाव आवेशों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता इस विषय में प्रो. जोन्स का कहना है कि होम्स द्वारा दिए गए तर्क के स्तरों को प्रदर्शित करता है पहला यह है कि मनुष्य प्राकृतिक स्वभाव उग्र व अदूरदर्शी होता है जिसके फलस्वरूप उसे इच्छा से इन नियमों का आचरण करवाने के लिए एक सर्वशक्तिमान संप्रभु की आवश्यकता होती है मॉम्स का अनुमान है कि यदि विवेक को सहायता देने के लिए सख्ती भी साथ में हो तो काम चल सकता है ऐसी शक्ति सामाजिक संविदा द्वारा उत्पन्न की जा सकती है होम्स केवल शक्ति को ही इसका आधार नहीं मानते हैं बल्कि वे इस सत्य को भी बताना चाहते हैं कि इसका आधार बहुत कुछ जनता की इच्छा पर भी निर्भर है यदि सभी मनुष्य विवेक पूर्ण आचरण करें तथा इन नियमों का अनुपालन करें और अपनी सुरक्षा व शांति के लिए सामाजिक संविदा द्वारा अपने प्राकृतिक शक्तियों को एक सामान्य व्यक्ति या व्यक्ति समूह को सौंपने के लिए तैयार हो तो समस्या का समाधान हो सकता है इस संविदा को लागू किया जा सकता है होम्स का विचार एक ही स्थान विधा प्राकृतिक अवस्था को पार करने वाले मनुष्य के बीच होती है यह संविदा जनता वे शासन के बीच नहीं है बल्कि इस लोगों ने स्वयं आपस में शासक नियुक्त करने के लिए बनाया है होम्स के अनुसार इस  मैं व्यवस्था के अंतर्गत हर व्यक्ति अपने प्राकृतिक शक्ति का परित्याग करते हुए दूसरे से यह कहता है मैं अपने ऊपर अपने शासन के अधिकार को इस व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समुदाय को इस शर्त पर देता हूं कि आप सब भी अपने अधिकारों को उसे सौंप दें और जिस प्रकार में इससे प्राधिकार को दे रहा हूं उसी प्रकार आप सब भी उस सभी कार्यों के लिए प्राधिकार दे दें |

* संप्रभुता:-

                             होम्स सामाजिक संविदा में ही प्रकृतिक  अवस्था में रहने वाले मनुष्यों की समस्याओं का हल पाते हैं इस संविदा के बनने से जो राज्य बनता है उसमें एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न सत्ता निहित  होती है जो कि एक सम्मान सम्मति के रूप में समाज पर शासन करती है हॉब्स के अनुसार शक्ति के अभाव में संविदा मात्र शब्दों के रूप में ही विद्यमान रहती है इस प्रकार संविधान में एक सम्मति  ही सभी लोगों की व्यक्तिगत सम्मतियों का स्थान लेकर उनका प्रतिनिधित्व करती है इस प्रकार होम्स के सिद्धांत में अनेक सम्मतियों का स्थान एक सम्मति ले लेती है होम्स के अनुसार बिना एक सम्मति या सपा के राज्य नहीं बन सकता इस प्रकार संप्रभुता का सार पूरे समुदाय की ओर से निर्धारित करने के अधिकार में हीनिहित होता है सत्ता कानूनों के निर्माण तथा पालन करवाने के अधिकार के रूप में प्रकट होती है सत्ताधारी द्वारा बनाए गए कानूनों के अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता क्योंकि राज्य के बनने से नैतिकता की कोई भावना नहीं होती और संविदा का पालन करना ही न्याय इसलिए नैतिक रूप से राजसत्ता असीमित होती है |



*  हॉब्स : व्यक्तिवाद व निरंकुशतावाद का जनक :-

                                                                                                             टिकाकारों का कहना है कि होम्स व्यक्तिवादी दार्शनिक के रूप में अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं तथा उनके निष्कर्ष निरंकुशतावाद  की चरम सीमा पर पहुंचते हैं उनके राज्य का सिद्धांत एक असीमित अनियंत्रित सर्वोच्च संप्रभुता को जन्म देता है हॉब्स के अनुसार सभ्य समाज के बनाने से पहले तथा उसके बाद मनुष्य की सुरक्षा व सुख महत्वपूर्ण है होम्स का यह सिद्धांत उपयोगितावाद की उत्पत्ति के लिए एक आधारभूत कदम से  हुआ
 प्राकृतिक नियमों के संबंध में भी होम्स की धारणा भ्रांति पूर्ण लगती है एक और तो होम्स कहते हैं कि प्राकृतिक अवस्था में ने नैतिकता होती है नए कानून प्राकृतिक नियम विवेक पर आधारित होते हैं दूसरी तरफ हॉब्स  मनुष्य द्वारा प्रसंविदा बनाने पर उसका पालन करने को कहते हैं जो कि विवेक पर ने आधारित होकर नैतिकता पर आधारित है होम्स नैतिकता की उपस्थिति को इनकार कर चुके होते हैं पर प्राकृतिक नियम के रूप में नैतिकता को फिर उपस्थित कर देते हैं इसके बिना वे राज्य की कल्पना भी नहीं कर पाते होम्स द्वारा मनुष्य को जीवन संकट के दौरान विद्रोह करने का अधिकार उसकीनिरंकुश संप्रभुता के विचार से मेल नहीं खाता है यदि प्रजा को विद्रोह का अधिकार है तो इस परिस्थिति में निरंकुश संप्रभुता का विफल होना आवश्यक है यदि संप्रभुता असीमित है तो संप्रभु की शक्तियों को किसी भी दशा में सीमित नहीं किया जा सकता दोनों विचार आपस में यह संगत तथा इसलिए एक साथ विद्यमान नहीं रह सकते |

व्यास के वर्णित राजनीतिक विचार एवं महाभारत में गणराज्य संबंधी विचार

* महाभारत में वर्णित  राजनीतिक विचार:-

                                               महाभारत का मुख्य विषय कौरवों और पांडवों का युद्ध है लेकिन इसमें  पुराण,  धर्म, राजनीति,  कूटनीति,  दर्शन, अध्यात्मशस्त्र, मैं अन्य प्राचीन वाग्ड़मय   का भी समावेश हुआ है प्राचीन भारतीय शासन पद्धति और राजनीतिक विचारों के अध्ययन हेतु महाभारत एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है इन्हें हम व्यास के राजनीतिक विचार भी कह सकते हैं कुछ विद्वानों ने भीष्म के मानते हैं |
व्यास के वर्णित राजनीतिक विचार एवं महाभारत में गणराज्य संबंधी विचार

( 1 ) दंड नीति:-

                                       शांति पर्व के राजधर्म अनुशासन पर्व में राजनीतिक चिंतन मिलता है  साथ ही  राज्यशास्त्र के निर्माताओं का  इसे परिचय मिलता है सर्वप्रथम ब्रह्मा जी ने उस समय फैली अराजकता को दूर करने के लिए एक लाख  श्लोको  में विशाल राज शास्त्र की रचना की दंड नीति  के महत्व को बताते हुए व्यास कहते हैं कि यदि दंड नीति का लॉक हो जाए तो वेद तथा अन्य सभी वर्णो एवं आश्रमों के धर्म क्षीण हो जाएंगे व्यास ने समयक  जीवन के निर्वाह के लिए राजधर्म की महत्वपूर्ण भूमिका पर बल दिया है |

( 2 ) राज्य संस्था की  उत्पत्ति:-

                                                                  राज्यसता की उत्पत्ति के संदर्भ में महाभारत में महत्वपूर्ण चिंतन मिलता है महाभारत में राजा से पूर्व की स्थिति की विवेचना की गई है आरंभ में ने राजा था और न राज्य और ना ही कोई दंड देने वाला | 59 वें अध्याय में उल्लेख है कि प्रारंभ में कृतयुग ( पूर्णता की स्थिति ) था न  राज्य था, न  राज्य,  और न  दंड था,  और न दंड देने वाला | क्रमश : लोगों में मोह उत्पन्न हुआ और तब लोभ, कामुक प्रेरणाओ एवं उधम प्रवृतियो उदय हुआ और वेद एवं धर्म का विनाश हो गया |

( 3 ) राज:-

                      महाभारत में राजा को सप्तांग स्वरूप  वाला चित्रित किया गया है राजा, अमात्य,  जनपद, दुर्ग कोश, दंड और मित्र,  राजा के यह सभी अंग एक दूसरे के पूरक है प्राचीन काल में राजतंत्र ही शासन का प्रचलित रूप था महाभारत में भी राजा सभी राजनीतिक कार्य विधियों की केंद्रीय दूरी है महाभारत में भी उल्लेख आया है कि धृतराष्ट्र को अंधे होने के कारण राजा नहीं मिला अच्छे राजा के गुणों को उल्लेख कौटिल्य मन्नू की भांति व्यास ने भी किया है शांति पर्व ( 70 ) मैं राजा के 36 गानों की सूची दी गई है |

 कौटिल्य ने राजा की पांच विशिष्ट  विशेषताएं बताइए:-

                                                                                                            ( 1 ) सत्यवादीता
                                                                                                            ( 2 ) पराक्रम
                                                                                                            ( 3 )  दानशीलता
                                                                                                            ( 4 ) दूसरे की योग्यता को समझने की क्षमता
            

( 4 ) राजा के कर्तव्य:-

                                                    राजा के उद्देश्यों व कर्तव्यों के बारे में महाभारत में सविस्तार उल्लेख है  राजा को प्रजा की सुरक्षा करनी चाहिए और व्यवस्था बनाए रखने चाहिए राजा के अलौकिक महत्व को स्वीकारते हुए व्यास कहते हैं कि कभी भी अराजक राष्ट्र में नहीं बचना चाहिए राजा का प्रमुख कर्तव्य प्रजा पालन एवं प्रजा रंजन माना गया है राजा एवं प्रजा के बीच व्यवहार के संदर्भ में गर्भिणी स्त्री का आदर्श रखता है |

• राजा के प्रमुख कर्तव्य:-

                                                       ( 1 ) प्रजा का रक्षण या पालन
                                                       ( 2 ) वर्णाश्रम - धर्म - नियम का पालन
                                                       ( 3 ) दुष्टों को दंड देना तथा न्याय करना
 प्राचीन भारत में साम्राज्यवादी भावना का प्रचार भी हो गया था चक्रवर्ती सम्राट की अवधारणा  प्रचलित थी महाभारत में पांडव अर्जुन व अन्य पांडवों की दिग्विजय का  विवरण उपलब्ध है प्राचीन शासक छोटे-छोटे राजाओं के राजा पर अधिकार करने में विश्वास नहीं रखते थे वरन वे दूसरों द्वारा अपनी शक्तियां प्रभुत्व अंगीकार कर लेने को अधिक महत्व देते थे |

( 5 ) दंड व न्याय व्यवस्था :-

                                                              प्राचीन काल में दंड वे न्याय का क्षेत्र भी राजा के संबंध था राजा प्रजा पालन के लिए ही राजदंड धारण करता था महाभारत में इसे ही क्षेत्रीय धर्म माना गया था महाभारत मैं दंड नीति शब्द की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि दंड द्वारा ही यह विश्व अच्छे मार्ग पर लाया जाता है और यह शास्त्र दंड देने की व्यवस्था करता है इसलिए इसे दंड नीति की संख्या मिलती है यह तीनों लोकों में छाया हुआ है
 न्याय प्रदान करवाना राजा का परम कर्तव्य था वे अपराधियों के प्रति दंड का प्रयोग करता था व्यास के अनुसार राजा को न्याय की प्रशासन कुल धर्म जाति धर्म में देश धर्म आदि के अनुरूप ही करना चाहिए प्राचीन भारतीय राजशास्त्रियों ने राजा को निर्देश दिए हैं कि दंड का प्रयोग धर्मानुसार ही किया जाना चाहिए |

( 6 ) अंतर राज्य संबंध:-

                                                    अंतर राज्य संबंधों को विकसित करने का दायित्व भी राजा का होता था राजा साम्राज्यवादी भावना से प्रेरित बाजपेय, पुण्डरीक, राजसूय, आदि यज्ञ का संपादन करते थे व्यास के अनुसार शास्त्र शत्रु को कमजोर नहीं समझना चाहिए महाभारत में बलवान शत्रु के प्रति किस प्रकार का व्यवहार किया जाना चाहिए इस पर व्यापक चर्चा हुई शत्रु के बालक किया बुड्ढा होने पर भी उसे कमजोर समझना उचित नहीं है |

( 7 ) आपदधर्म:-

                                           महाभारत में राजा के आपदधर्म की भी पर्याप्त चर्चा हुई है  युधिष्ठिर भीष्म के संवाद मैं इसकी एक झलक मिलती है युधिस्टर ने 20 में से प्रश्न किया कि जिस राजा को मित्रों ने छोड़ दिया वह  जो कोषहीन  तथा बलहीन  जिसकी मंत्राण सब प्रकार से निकली हुई हो |
                                           

Wednesday, October 30, 2019

अभिजन सिद्धांत प्रकृति व स्वरूप, अभिजन सिद्धांत का ऐतिहासिक वैचारिक संदर्भ

* अभिजन सिद्धांत प्रकृति:-

                                                             अभिजन सिद्धांत की  वैचारिक प्रकृति व  वास्तविक स्वरूप की चर्चा से पूर्व उल्लेखनीय है कि द्वितीय महायुद्ध के उपरांत अमेरिका सामाजिक विज्ञान में अनेक सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा अभी जनवादी परिकल्पना ओं का नियोजन किया गया और उसके प्रकाश में सामाजिक प्रक्रिया की व्याख्या की गई इसके बावजूद पश्चिम में फासीवाद और नाजीवाद के उदय से पूर्व विचारकी की पंक्ति विद्यमान रही है

( 1 )  अभिजन अथवा  ऐसा विकसित व अल्पसंख्यक वर्ग जो अपनी प्रकृति धन्य क्षमता वह सामर्थ्य के आधार पर संपूर्ण समाज को अधिकारिक नेतृत्व प्रदान करता है |

( 2 ) जनसाधारण या समाज का ऐसा बहुसंख्यक वर्ग जो अभिजनों द्वारा शासित वह संचालित होता है कोई भी समाज अथवा राजनीति सामान्य तत्व काकाकुआ नहीं हो सकती राजनीतिक प्रक्रिया की वास्तविकता ज्ञात करने के लिए यह आवश्यक है कि अभिजन  जनसाधारण के बीच व्याप्त है इस दौरान दोनों पक्षों में शक्ति संबंध और उनकी प्रभावशीलता एक  केबीय  महत्व का प्रसन्न होती है |

* अभिजन सिद्धांत का स्वरूप:-

                                                                         अभिजन सिद्धांत की प्रकृति व स्वरूप के संबंध में यह स्पष्ट करना प्रसंगिक होगा कि इसका कोई एक सामान्य सामान्य प्रतिमान उपलब्ध नहीं है संभवत यह हो भी नहीं सकता क्योंकि समस्त वैज्ञानिक व व्यवहारवादी कामुसंधान  के बावजूद इस पर का राजनीति का कोई सर्वे छवि का अर्थ रूप उपलब्ध नहीं है उसी प्रकार अभी जनों की स्थितियों के संबंध में भी कोई सर्व सहमति की व्याख्या नहीं की जा सकती |

 तीनों दुनिया उसे संबंधित अभी जनों की प्रकृति कीजिए व्याख्या चीनी आदर्श प्रकारों की पैरवी नहीं करती वहां वास्तव में वहां पर विद्यमान प्रतिनिधि पर भर्तियों का एक फूल चित्र मात्र है
( 1 ) अभिजन सिद्धांत सामाजिक राजनीतिक प्रक्रिया के विश्लेषण की दृष्टि से किसी भी समाज को दो वर्गों में देखता परखता है
   ( a ) अभिजन और|
   ( b ) जनसाधारण

( 2 ) इन प्रकृति जननीय विविधताओं के बावजूद अभिजन सिद्धांत एक अति सामान्य समानता यह प्रकट करता है कि हर देश में समाज में अभिजन,  जन साधारण संबंध राजनीतिक शक्ति पर आधारित हैं |

* अभिजन सिद्धांत का ऐतिहासिक वैचारिक  संदर्भ :-

( 1 ) क्लासिकी सिद्धांत:-

                                                        राजनीतिक चिंतन की क्लासिकी परंपरा का सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान यह था कि उसने एक ऐसी माननीय क्षमताओं को पुष्ट किया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने निजी मानसिकता से अपना परिवेश गढ़ सकता था राजा वे था जिसका सर्वव्यापी दृष्टिकोण था जो शासन की साधन परकता को भी जानता था और सामुदायिक साध्य को भी और यह क्षमता उसे उसके विवेक से मिलती थी |

( 2 ) प्लेटो :-

                         प्लेटो के राजनीतिक विचारों का मूल बिंदु ही यह था कि ज्ञान ही गुण है ज्ञान से ही सत्य की प्राप्ति होती है और उसी से वस्तुनिष्ठ यथार्थ का बोध होता है ज्ञानी वह है जो कल्याण अथवा भलाई के स्थूल विचार से ऊपर उठकर उसके अमूर्त सूक्ष्म तत्वों से अंतरंग होते हैं इसी कारण उसने अपने विचार योजना में शासक के लिए ज्ञान में दर्शन के गुणों को अनिवार्य बताया है |

( 3 ) अरस्तु:-

                           अरस्तु ने यद्यपि प्लेटो की विचार योजना में संशोधन किया और वैचारिक अमूर्तता के साथ वास्तविक व्यवहारिकता का अंश राजनैतिक में जोड़ा फिर भी उसका यह सामान्य मत था कि जन्म से ही कुछ लोग अधीनता के लिए नियत होते हैं और कुछ आदेश देने के लिए उसकी विचार योजना में आदेश देने की क्षमता उनमें कुछ लोगों में हनीत होती है जो सद्गुण सम्मान होते हुए बौद्धिक क्रियाओं द्वारा व्यवहारिकता वे नैतिकता में नियमन व संतुलित स्थापित करते हैं |

( 4 ) रोमन काल :-

                                      रोमन काल में प्रकृति कानूनों से मानव कानून बने और आधिकारिक यूरोपीय के रूप में प्लेटो वादी विवेक  वे अरस्तु वादी कानून समस्त सरकार के लक्ष्यों को अंगीकार करते हुए उन्हें धार्मिकता से समनिवत किया गया है जो सामान्य मानवीय इच्छाओं के समर्थक से ऊपर थे |

( 5 ) होम्स, लॉक,  रूसो :-

                                                     होम्स यद्यपि पर्याप्त अंशों में व्यक्तिवादी आग्रहो  से युक्त था और मानवीय आतम अनुसरण के अधिकार का प्रयत्न  समर्थक लेकिन प्राकृतिक  अवस्था से नागरिक समख व अव्यवस्था से व्यवस्था प्राप्त करने की खोज में उसने एक ऐसी सर्वोच्च वे कानून स्वतंत्र सला का विकल्प रखा |

( 6 ) उपयोगितावादी :-

                                               राजनीतिक चिंतन की धात को आगे बढ़ाते हुए उपयोगितावादियो ने उपयोगितावादी उपकरणों के संगठन में अधिकांश की सुख समृद्धि के अधिकाधिक संवधर्न का दायित्व राज्य पर छोड़ा और इससे व्यापक ढांचे में शासकशासितों  के पारंपरिक संबंध संगठित हुए |

Tuesday, October 29, 2019

संसदात्मक तथा अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का अर्थ एवं विशेषताएं, संसदीय शासन प्रणाली में मंत्रिमंडल के कार्य

* संसदात्मक शासन प्रणाली का अर्थ एवं विशेषताएं :-

                                                                                                                          इस प्रणाली के संबंध में इतना ही कहा जा सकता है कि इसमें सरकार व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है इस पद्धति को मंत्रिमंडलीय प्रणाली के नाम से भी पुकारा जाता है क्योंकि इसके अंतर्गत कार्यपालन की शक्ति एक व्यक्ति मेहनत में होकर एक सीमित मेहनत होती है तथा मुख्य कार्यपालक केवल नाम मात्र या ध्वज मात्र शासक होता है जैसा कि इसके नाम से ज्ञात होता है संसदात्मक प्रणाली में संसद की मेहता होती है कार्यपालिका तो इसके सेवक के रूप सम्मान कार्य करती है जिसमें वास्तविक कार्यपालिका प्रत्यक्ष या कानूनी रूप से अपने निर्वाचक को के प्रति और राजनीति नीतियों और कृतियों के लिए उत्तरदायी रहती है |
संसदात्मक तथा  अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली का अर्थ एवं विशेषताएं,  संसदीय शासन प्रणाली में मंत्रिमंडल के कार्य

* विशेषताएं:-

                                   संसदीय शासन पद्धति  के मुख्य विशेषताओं पर विचार करने के पूर्व इस प्रणाली के संबंध में कुछ और बातों को स्पष्ट कर लेना भी उचित होगा
( 1 ) प्रथम इस प्रणाली में दो प्रकार की कार्यपालिका ए होती है जबकि अध्यक्षात्मक प्रणाली में केवल कार्यपालिका होती है संसदात्मक मे (a ) ध्वजमात्र  ( b ) वास्तविक |
( a ) ध्वज मात्र  की कार्यपालिका एक राज्याध्यक्ष होता है जो एक नाम मात्र का शासक होता है जैसे भारत का राष्ट्रपति  और इंग्लैंड की सामाक्षी |
( b ) वास्तविक कार्यपालिका जिसके शासन संबंधी शक्ति होती है उसके प्रत्येक प्रधानमंत्री और उनका मंत्रिमंडल होता है
( c ) द्वितीय इस प्रणाली के अंतर्गत जितना घनिष्ठ संबंध कार्यपालिका व्यवस्थापिका में होता है उतना संभवत अन्य किसी व्यवस्था के अंदर नहीं होता |
( d ) मुख्य विशेषताएं संसदीय प्रणाली के अर्थ और परिभाषा पर एक दृष्टि डाल लेने के पश्चात यह आवश्यक हो जाता है संसदीय प्रणाली की विशेषताएं परिलक्षित होती है
( 1 ) वास्तविक और धवज मात्र कार्यपालिका
( 2 ) कार्यपालिका और व्यवस्थापिका में अभिन्न संबंध |
( 3 ) सामूहिक उत्तरदायित्व |
( 4 ) मंत्रिमंडल की एकता
( 5 ) प्रधानमंत्री का नेतृत्व
( 6 ) व्यक्तिगत उत्तरदायित्व
( 7 ) गोपनीयता
( 8 ) मंत्रियों के लिए संसद की सदस्यता अनिवार्य|

* अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली अर्थ एवं विशेषताएं:-

                                                                                                                     यद्यपि संसदात्मक और  अध्यक्षात्मक शासन पद्धति और दोनों ही ,  प्रजातंत्र के दो रूप हैं तथापि इनके संगठन एवं शासन संचालन में काफी अंतर है इसके अंतर्गत कार्यपालिका ने तो व्यवस्थापिका में से ली जाती है और न ही यह उसके प्रति उत्तरदाई होती है इसके अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन संसदीय प्रणाली की भांति केवल ध्वज मात्र का शासक नहीं होता अपितु वे वास्तविक शासक होता है

 * प्रोफ़ेसर गेटिल के अनुसार:-

                                                                        अध्यक्षात्मक शासन प्रणाली पद्धति मैं कार्यपालिका प्रधान अपने संपूर्ण कार्यकाल में अपनी नीतियों और कार्यों के विषय में विधानमंडल से स्वतंत्र होता है 

* अध्यक्षत्मक शासन प्रणाली की विशेषताएं :-

                                                                                                  ( 1 ) शक्तियों का पृथक्करण 
                                                                                                  ( 2 ) कार्यपालिका का निश्चित कार्यकाल
                                                                                                  ( 3 ) उत्तरदायित्व का अभाव
                                                                                                  ( 4 ) राज्याध्यक्ष, शासन एवं राज्य दोनों का  मुखिया

* संसदीय शासन प्रणाली में मंत्रिमंडल के कार्य:-

                                                                                                            संसदीय शासन पद्धति में मंत्रिमंडल संसद की एक सीमित के रूप में होता है  अत :विधि निर्माण से लेकर न्यायालय संबंधी कार्य तक का भार अपने कंधों पर लिया होता है मंत्रिमंडल युद्ध शांति नीति निर्माण और विदेश नीति का संचालन करने के लिए उत्तरदायी होता है

 कार्य :-

   ( 1 ) नीति निर्माण
   ( 2 ) विदेश नीति पर निर्णय
   ( 3 ) वित्तीय कार्य
   ( 4 ) न्यायिक  कार्य
   ( 5 ) समन्वयकारी कार्य
   ( 6 ) देश एवं विदेश में राष्ट्र का नेतृत्व एवं प्रतिनिधित्व
  ( 7 ) संसद की समिति के रूप में कार्य |

आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (IS) का सरगना अबू बकर अल-बगदादी मारा गया

* आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (IS) का सरगना अबू बकर अल-बगदादी मारा गया:-
                                  डोनाल्ड ट्रम्प

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 27 अक्टूबर 2019 को औपचारिक घोषणा करते हुए कहा कि आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (IS) का सरगना अबू बकर अल-बगदादी मारा जा चुका है. ट्रम्प ने एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए कहा कि अमेरिकी सेना के स्पेशल कमांडोज़ ने सीरियाई प्रान्त इदलिब के सुदूर गाँव बारिशा में एक विशेष अभियान के तहत बगदादी को मार गिराया है |

डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने वक्तव्य में कहा कि जब बगदादी पूरी तरह से अमेरिकी सेना से घिर गया तो उसने स्वयं को आत्मघाती बम से उड़ा लिया. इस तरह वह भी उसी प्रकार से अमेरिकी सेना की कार्रवाई में मारा गया जैसे ओसामा बिन लादेन मारा गया था |

 आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (IS) का सरगना अबू बकर अल-बगदादी मारा गया


कैसे मारा गया बगदादी :-

                                    डोनाल्ड ट्रम्प ने एक प्रेस कांफ्रेस को संबोधित करते हुए बताया कि बगदादी को 26-27 अक्टूबर की रात किये गये एक ऑपरेशन में मारा गया. इस कार्रवाई को ‘ऑपरेशन जैकपॉट’ का नाम दिया गया. अमेरिका के स्पेशल फोर्सेज़ ऑपरेशनल डिटैचमेंट-डेल्टा कमांडोज 8 लड़ाकू हेलिकॉप्टरों पर सवार होकर तुर्की और रूस के ऊपर से उड़ते हुए सीरिया पहुंचे |

                   उत्तर-पश्चिमी सीरिया में हुए इस ऑपरेशन के दौरान बगदादी को जब अमेरिकी सेना ने चारों ओर से घरे लिया तो वह एक सुरंग में घुस गया और उसमें बेतहाशा भागने लगा. इस दौरान अमेरिकी सेना के कुत्ते उसे दौड़ा रहे थे. भागते-भागते बगदादी सुरंग के ऐसे दूसरे छोर पर पहुंच गया जो बंद था और उससे निकलने का रास्ता नहीं था|

                  डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने भाषण में कहा कि बगदादी गिड़गिड़ा रहा था और खौफ में था. इस दौरान बगदादी ने अपने तीन बच्चों को भी साथ रखा था, अंत में जब बगदादी को कोई दूसरा रास्ता नज़र नहीं आया तो उसने स्वयं को आत्मघाती जैकेट से उड़ा लिया. बगदादी और उसके तीनों बच्चों के ऊपर कई टन मलबा गिरने से वह वहीँ मारा गया |


       * पाकिस्तान ने भारत के साथ डाक सेवा बंद की, इतिहास में पहली बार हुआ |


बगदादी के शव का डीएनए किया गया :-

                                                       बगदादी को खत्म करने का यह ऑपरेशन करीब दो घंटे तक चला. डोनाल्ड ट्रम्प ने बताया कि अमेरिकी फोर्सेज़ ने बगदादी के छिपे होने के स्थान पर हमला करने से पहले वहां से 11 बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया था. धमाके के बाद अमेरिकी सेना ने बगदादी की बॉडी हासिल की और डीएनए किट से टेस्ट करके सुनिश्चित किया कि मारा गया व्यक्ति बगदादी ही है |


* बगदादी कौन था :-

                               अबू बकर अल-बगदादी ओसामा बिन लादेन से बेहद प्रभावित था तथा उसकी मौत का बदला लेने के लिए उसी के कदमों पर चलते हुए उसने इस्लामिक संगठन बनाया था. वह दरअसल वहाबी विचारधारा से प्रेरित था जिसके तहत वह विश्व में मध्यकाल के इस्लाम की पुनर्स्थापना करना चाहता था |

                         वह स्वयं को खलीफा घोषित कर चुका था और उसने सीरिया तथा इराक के विभिन्न प्रान्तों पर बलपूर्वक शासन किया. बगदादी का मुख्य उद्देश्य इस्लामिक स्टेट को विश्व भर में फैलाना तथा इस्लाम का प्रसार था. उसके द्वारा स्थापित इस्लामिक स्टेट संगठन शिया मुसलमानों के खिलाफ था और विश्व भर में विभिन्न आतंकी गतिविधियों को चला रहा था |

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह सब एक वार्ता में बताया था |

बाल अपराधी बालक एवं बाल अपराध के कारण व विशेषताएं

* बाल - अपराधी बालक ( DelinquentChildren ) :-
                                                                           बाल अपराध का सम्बन्ध बालक के व्यक्तित्व सभी पक्षों से होता हैं , जैसे - सामाजिक पक्ष , संवेगात्मक पक्ष और मानसिक पक्ष । किसी भी पक्ष में समायोजन करने में यदि बालक असफल रहता हैं , तो वह बालक बाल - अपराधी बन जाता हैं । बाल अपराध का शाब्दिक अर्थ हैं सामान्य रास्ते से भटक जाना ।


 हैडफील्ड के अनुसार =
                                    “ बाल अपराध का अर्थ हैं - असामाजिक व्यवहार । "
 " Delinquency may be defined as unsocial behaviour . " - Headfield


स्किनर =
               “ बाल अपराध की परिभाषा किसी कानून के उस उल्लघंन के रूप में की जाती हैं , जो किसी वयस्क द्वारा किये जाने पर अपराध होता हैं । "
" Delinquency is defined as the ation of a law that if commited by adult , would be a crime . "
                   skinner

गुड ़=
           " कोई भी बालक , जिसका व्यवहार सामान्य सामाजिक व्यवहार से इतना भिन्न हो जाए कि उसे समाज विरोधी कहा जा सके , बाल अपराधी है । "
" Deliquent is any child whose conduct deviates sufficiently from normal social usages that is may be labeled anti social . "                                                                   
                                                Good

बाल अपराधी बालक एवं बाल अपराध के कारण व विशेषताएं


* बाल - अपराध के कारण :-
                                         1 . वंशानुक्रम सम्बन्धी कारण ( Hereditary Causes )

2 . वातावरण सम्बन्धी कारण ( Environmental Causes ) :-
               
  ( a ) पारिवारिक वातावरण :-
                                                         •  माता - पिता का बालकों पर नियंत्रण न रहना ।

• घरेलू लड़ाई झगड़े ।

• परिवार में माता - पिता के सम्बन्ध विच्छेद या किसी एक की मृत्यु हो जाना ।

• पारिवारिक निर्धनता ।

• घर में बच्चों के साथ पक्षपातपूर्ण रवैया ।

• बालकों की रूचियों की ओर ध्यान ने देना ।

• बालकों को आवश्यक स्वतन्त्रता प्रदान न करना ।

• बालकों की बेकारी की समस्या ।

• सौतले माता - पिता का होना ।

• घर के अन्य सदस्यों का अपराधी होना ।

• माता - पिता का अनैतिक व्यवहार ।

• माता - पिता के शारीरिक व मानसिक दोषों के कारण जैसे - अन्धा , पागल , अपाहिज होना ।

• बालकों की आवश्यकताओं को पूरा न कर पाना ।

( b ) स्कूल का वातावरण :-
                                     • व्यक्तिगत विभिन्नताओं की ओर

• उचित मार्गदर्शन की कमी

• कठोर अनुशासन ।

• अधिक गृहकार्य ।

• दूषित पाठ्यक्रम ।

• शिक्षकों का व्यवहार ।

• विद्यालय में राजनैतिक वातावरण ।

• मित्रमण्डली ।

• असफलता एवं पिछड़ापन ।

( c ) समाज का वातावरण :-
                                        • समाज का दूषित वातावरण ।
• बेरोजगारी ।

• गन्दी बस्तियाँ ।

• बुरी संगति ।

• सिनेमा ।

• अश्लील साहित्य ।

3 . शरीर रचना सम्बन्धी कारण |


* बाल अपराधियों की विशेषताएँ :-
                                               शारीरिक -
                                                               आयताकृति , पुष्ट मांसपेशियों युक्त एवं दुस्साहसी ।

स्वभावगत -
                   अशांत , शक्ति से भरपूर , आक्रमक , बर्हिमुखी , शीघ्र उद्वेलित , विध्वंसात्मक ।

अभिवृत्तियाँ -
                      अपारम्परिक , संदेही , सत्ता के . विरोधी , द्वेषपूर्ण एवं शत्रुता भाव रखने वाले ।

मनोवैज्ञानिक -
                      मूर्त एवं प्रत्यक्ष की ओर झुकाव रखने वाले , समस्याओं के समाधान में कम व्यवस्थित ।

सामाजिक सांस्कृतिक -
                                  स्नेह का अभाव , माता - पिता के नैतिक मानदण्ड इन्हें पर्याप्त रूप में निर्देशित नहीं कर पाते ।


प्रतिभाशाली बालक का अर्थ एवं प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएं

* प्रतिभाशाली बालक (Gifted Children)अर्थ :-
                                                                          प्रतिभाशाली बालक , सामान्य या औसत बालकों से सब बातों ( बुद्धि , विचार आदि ) में श्रेष्ठ होते हैं । ये बालक सामान्य बालकों से इतने अलग होते हैं कि इनके लिए विशेष प्रकार की शिक्षा , प्रशिक्षण और समायोजन की आवश्यकता होती हैं अन्यथा ये दूसरे बालकों के साथ और कक्षा में उचित प्रकार से समायोजित ( Adjust ) नहीं हो पाते । मनोवैज्ञानिकों के अनुसार प्रतिभाशाली वे बालक हैं जिनकी बुद्धि लब्धि ( I . Q . ) 130 या 140 से अधिक होती है ।

प्रतिभाशाली बालक का अर्थ एवं प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएं

-  टरमन के अनुसार =
                               “ प्रतिभावान बालक शारीरिक विकास , शैक्षणिक उपलब्धि , बुद्धि और व्यक्तित्व में वरिष्ठ होते है ।

- पॉल विट्टी =
                    " प्रतिभाशाली बालक वह है । जो किसी कार्य को करने के प्रयास में निरन्तर उच्च स्तर बनाये रखता है । " ( The gifted child is one who is consistently superior in any worthwhile time of endeavour . ) |


-  कॉलेस्निक =
                        “ वह प्रत्येक बालक जो अपनी आयु - स्तर के बालकों में किसी योग्यता में अधिक हो और जो हमारे समाज के लिए कुछ महत्त्वपूर्ण नई देन दें । " ( The term gifted has been applied to every child who , in his age group is superior in some ability which may make him outstandings contributer to the welfare and guality of living in our society . ) |



* प्रतिभाशाली बालक की विशेषताएँ ( Characteristics of Gifted child ) :-
                                                                                                             
 
1 . शारीरिक विशेषता =
                                     टरमन ने अपने अध्ययनों द्वारा स्पष्ट किया है कि प्रतिभाशाली बालक जन्म के समय सामान्य बालक की तुलना में डेढ़ इंच लम्बा व भार में एक पौण्ड अधिक होता है । इसके अतिरिक्त वह चलना , फिरना और बोलना , सामान्य बालकों की तुलना में जल्दी सीख लेता है ।

2 . उच्च बुद्धि - लब्धि =
                                   प्रायः इनकी बुद्धि लब्धि 140 से अधिक मानी गई है ।

3 . अमूर्त चिन्तन =
                           इनकी चिन्तन प्रक्रिया श्रेष्ठ होती है जिससे वे कठिन समस्याओं को समझाने तथा समाधान ढूढ़ने में देर नहीं करते ।

4 . सामाजिक और संवेगात्मक दृढ़ता =
                                                     प्रतिभाशाली बालकों की सामाजिकता और संवेगात्मकता अधिक दृढ़ होती है ।

5 . मानवीय गुण - इनमें सहयोग , परोपकार , सहिष्णुता , दया तथा ईमानदारी जैसे मानवीय गुण दूसरो की तुलना में अधिक होते है ।

6 . अर्न्तदृष्टि - ऐसे बालक आश्चर्यजनक सूझबूझ रखते है ।

7 . नेतृत्व की क्षमता - ऐसे बालों में कुशल नेतृत्व की क्षमता होती हैं और अपने इस नेतृत्व से सबका मन मोह लेते है ।

8 . अवधान योग्यता - प्रतिभाशाली बालकों में अवधान ( Attention ) की शक्ति तीव्र होती है ।

9 . निर्देशन की कम आवश्यकता ऐसे बालकों में बौद्धिक सजगता और मौलिकता अधिक होती हैं अतः वह अपने पूर्व अनुभव व सूझबूड़ा से कार्य को सफलतापूर्वक कर सकता है । ऐसे बालकों को निर्देशन की आवश्यकता कम पड़ती है ।

10 . हास्य तथा उदार प्रकृति - ऐसे बालकों की ज्ञानेन्द्रियाँ अधिक संवेदनशील होती है । सामान्यतः ये हास्य तथा उदार प्रकृति के होते है|


* प्रतिभावान बालकों की शैक्षिक व्यवस्थाएँ ( Educational Provisions for Giftedi Children ) :-

1 . विशेष व विस्तृत पाठ्यक्रम ।

2 . बालकों पर व्यक्तिगत ध्यान ।

3 . योग्य अध्यापकों की आवश्यकता ।

4 . पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन ।

5 . पुस्तकालय सुविधायें ।

6 . नेतृत्व का प्रशिक्षण ।

7 . संस्कृति की शिक्षा ।

8 .घर के लिए विशेष कार्य ।

प्रतिनिधित्व का अर्थ व प्रकार और राजनीतिक प्रतिनिधि के कार्य

* प्रतिनिधित्व का अर्थ :-

                                         राजनीतिक प्रतिनिधि एक ऐसा व्यक्ति होता है जो परंपरागत या कानून एक राजनीतिक  व्यवस्था में प्रतिनिधि का स्तर या भूमिका निभाता है |


बिर्च के अनुसार :-

                                जो किसी समाज विशेष में प्रशासन की प्रक्रिया को प्रभावित करता है |


* प्रतिनिधित्व  के प्रकार :-

                                          ए. एच्. बिर्च के अनुसार प्रतिनिधित्व के अर्थ और प्रकार होते हैं परंतु प्रमुखतया   इसका तीन अर्थों में प्रयोग अधिक प्रचलित है 
( 1 ) प्रदत्त प्रतिनिधित्व
( 2 ) सूक्ष्मतर प्रतिनिधि 
( 3 ) प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व |

प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व से एक समूह में या श्रेणी विशेष का तात्पर्य किया जाता है इससे संपूर्ण और विस्तृत वास्तविकता का आभास मिलता है जैसे हंसिया व  हथोड़ा साम्यवाद का आभास कराता है |

 राजनीतिक प्रतिनिधित्व तीन प्रमुख समस्याओं का विवेचन अभिषेक बना देता है यह समस्याएं हैं
( 1 ) राजनीति प्रतिनिधित्व का चुनाव
( 2 ) राजनीतिक प्रतिनिधियों के कार्य
( 3 ) राजनीतिक प्रतिनिधित्व का उन लोगों से संबंध जिनका भी प्रतिनिधित्व करता है इन तीनों का विवेचना शक है |

* राजनीतिक प्रतिनिधि के कार्य:-

                                                                        सामान्यता राजनीतिक  प्रतिनिधियों के दो कार्य माने जाते हैं
                                               ( 1 ) justifcation of existing institution 
                                               ( 2 ) promotion of political reforms |

 सरसरी  तौर पर देखने पर कहा जा सकता है कि राजनीतिक प्रतिनिधि विद्यमान संस्थाओं का औचित्य या उसको न्यायोचित है |

( 1 ) central control :-

                                                केंद्रीय नियंत्रण का अर्थ है कि प्रतिनिधि राजनीति व्यवस्था में रोजमर्रा अनुशासन स्थापना की सुव्यवस्था करता है |

( 2 )goal specifications :-

                                                          गतव्य निर्धारण का अर्थ एक ही प्रतिनिधि नीतियों का निर्धारण और उसमें प्राथमिकता से निर्णय कारण था नीति निर्धारण में सम्मिलित रहे |

( 3 ) institutional coherence:-

                                                                           संस्थागत साम्य  का अर्थ है लगातार संस्थाओं का परिणाम सुधार और उनका अनुकूलन करना | 


( 1 ) सामान्य कार्य:-

                                           ( 1 ) लोकप्रिय नियंत्रण:- सरकार पर लोकप्रिय  नियंत्रण करना राजनीतिक प्रतिनिधि का कार्य प्रतिनिधि जनता की तरफ से सरकार पर नियंत्रण रखने का कार्य करता है |

                                        ( 2 ) नेतृत्व:- नीति निर्धारण में नेतृत्व देना और उनके लिए सरकार को उत्तरदाई रखना भी प्रतिनिधि का ही कार्य है |

                                        ( 3 ) व्यवस्था स्थापन:- प्रतिनिधि राजनीति व्यवस्था को सुचारू रूप से चलाने और उसको बनाए रखने में जनता का समर्थन प्राप्त करने का कार्य करते हैं |

( 2 ) विशिष्ट कार्य :- 

                                       ( 1 ) जागरूकता:- प्रतिनिधि का कार्य है कि वे व्यवस्था करें कि नीति के निर्धारक जनमत वे जनहित के प्रति सचेत रहें |

                                      ( 2 ) उत्तरदायित्व:- प्रतिनिधि का खा रही है यह भी व्यवस्था करना है कि राजनैतिक नेता अपने कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायित्व निभाते रहें |

( 3 ) leadership:- 

                                                  प्रतिनिधि राजनीति नेताओं की भर्ती और उनके लिए जन समर्थन उपलब्ध कराने को कार्य करता है |

( 4 ) peaceful change of leaders :-

                                                                                        प्रतिनिधि अपने माध्यम भी बनाता है जिससे प्रकार के राजनीति नेतृत्व के स्थान पर बिना हिंसा का खतरा लिए दूसरे प्रकार का नेतृत्व में लाया जाता है |

( 5 ) consent :-

                                       प्रतिनिधि संप्रेषण की विभिन्न धाराओं की व्यवस्थाओं के माध्यम से सरकार की विशिष्ट नीतियों के लिए समर्थन उपलब्ध कराते हैं |

( 6 ) relel of predres :-

                                                        प्रतिनिधि संतप्त नागरिकों की शिकायतों रूपी भविष्य के प्रवाहित करने की सुरक्षा नलिका कार्य करते हैं और संभावित क्रांतिकारियों को संवैधानिक गतिविधियों में से   व्यस्त करके उन्हें निहत्था करते हैं |

             

संवेगात्मक बुद्धि का अर्थ एवं संवेगात्मक बुद्धि का संप्रत्यय

* संवेगात्मक बुद्धि ( Emotional Intelligence ):-
                                                                  संवेगात्मक बुद्धि का सम्बन्ध जीवन के विविध पक्षों से होता हैं । संवेगात्मक बुद्धि को समझने के लिए मूल शब्द संवेगों को जानना अत्यधिक आवश्यक हैं । संवेग शब्द अंग्रेजी के ' Emotion ' शब्द का हिन्दी रूपान्तर हैं । Emotion शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के से हुई हैं जिसका अर्थ होता है उत्तेजित करना । अर्थात संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा को प्रदर्शित करते हैं ।

            शिक्षा व मानव जीवन में संवेगों को । विशेष महत्त्व हैं । संवेग प्रकृति - प्रदत्त जन्मजात ' शक्तियाँ हैं जो प्रार्थी को अपने अस्तित्व व उसकी सफलता हेत पर्यावरण से समायोजन । करने में सहायक होते हैं ।


*  संवेग दो प्रकार के होते हैं -
                                         1 . सुखद संवेग
                                         2 . दुःखद संवेग |

संवेगात्मक बुद्धि का अर्थ एवं संवेगात्मक बुद्धि का संप्रत्यय

                 जब व्यक्ति सुखद संवेगों का अनुभव करता है तो उसमें शक्ति का स्त्रोत फूट पड़ता हैं । उदाहरण के लिए यदि किशोर को आनन्द व प्रसन्नता की अनुभूति होती हैं तो वह अन्य कार्यों की ओर अधिक कुशलता से ध्यान देता है |

         यदि किशोर दुखद संवेग जैसे क्रोध , भय , ईर्ष्या , चिन्ता आदि का अनुभव करता है तो उसके कार्य निरूद्देश्य तथा जल्दबाजी के होंगें । इसका उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास पर भी प्रभाव पड़ता हैं । कभी - कभी दुखद संवेग के कारण किशोरों में खिन्नता इतनी अधिक बढ़
जाती है कि वे जीवन से निराश हो जाते हैं और आत्महत्या तक करने की सोचने लगते हैं ।

             प्रत्येक किशोर को अपनी संवेगात्मक बुद्धि के बारे में जानना चाहिये कि वह कब - कब , किन - किन परिस्थितियों में उत्तेजित हो जाता है या अपना संतुलन बनाये रखता हैं । संवेगात्मक बुद्धिलब्धि जानने के लिए किशोर " मैं क्या हूँ " ? मैं क्या बन गया हूँ ? " " क्या में पहले जैसा व्यक्ति हूँ ? " " मुझे क्या करना चाहिये ? " " मेरा व्यवहार कैसा होना चाहिए ? " " क्यों में उत्तेजित हो जाता हूँ ? " " क्यों में संयम नही रख पाता ? " आदि प्रश्नों के उत्तर खोजता हैं । जब इन प्रश्नों के उत्तर संतोषप्रद नहीं मिल पाते है । तो असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं । और यदि इन प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर मिल जाते हैं तो सांवेगिक प्रतिक्रयाओं में संतुलन , आत्मविश्वास एवं वातावरण के साथ सामंजस्यता बनी रहती हैं ।


* संवेगात्मक बुद्धि का सम्प्रत्यय :-
                                               ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अगर अवलोकन किया जाये तो संवेगात्मक बुद्धि शब्द का प्रयोग 1990 में सबसे पहले दो अमेरिकन प्रोफेसर डॉ . जॉन मेयर तथा डॉ . पीटर सेलोवे द्वारा किया गया । परन्तु जिस रूप में आज संवेगात्मक बुद्धि की सर्वत्र चर्चा की जाती है , उसे इस तरह से लोकप्रिय बनाने का श्रेय केवल मात्र एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन को ही जाता हैं ।

                      उन्होंने 1995 में प्रकाशित अपनी पुस्तक " संवेगात्मक बुद्धि : बुद्धिलब्धि से अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों " ( Emotional Intelligence : Why it can matter more than I . Q . ) के माध्यम से इसे विशेष चर्चा का विषय बनाया हैं ।


                     संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य उसकी उस समग्र क्षमता से हैं , जो उसे उसकी विचार प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अपने तथा दूसरे के संवेगों को जानने , समझने तथा उनका सर्वोत्तम प्रबन्धन करने में उसकी सहायता करती हैं । किस में कितनी संवेगात्मक बुद्धि हैं उसके इस स्तर की माप के लिए जिस इकाई विशेष का प्रयोग करते हैं उसे संवेगात्मक लब्धि ( E . Q . ) कहा जाता हैं । यह उसी प्रकार की इकाई है जैसा ( I . Q . ) के रूप में सामान्य बुद्धि स्तर की माप के लिए काम में लाया जाता हैं ।


          संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता एवं महत्व अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डॉ . डेनियल गोलमैन की बहुचर्चित पुस्तकों ने संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया हैं -
                                                       
1. कोई व्यक्ति जीवन में कितना सफल हो सकता हैं । इसकी भविष्यवाणी E . Q द्वारा की जा सकती हैं ।

2 . संवेगात्मक बुद्धि व्यक्ति के जीवन को सुखमय व शांतिप्पद बनाने में सहायक होती हैं ।

3. विद्यार्थी जीवन में मिलने वाली सफलता के पीछे बहुत कुछ सीमा तक विद्यार्थी विशेष की संवेगात्मक बुद्धि का ही हाथ रहता हैं ।

4 . कामकाज की दुनिया में निपुणता तथा दक्षता प्राप्त कराने में भी संवेगात्मक बुद्धि का ही अधिक योगदान पाया जाता हैं ।

5 . किसी की संवेगात्मक बुद्धि उसे जीवन के - विभिन्न क्षेत्रों में वांछित सफलता प्राप्त करने में मदद करती हैं ।

6 . अपने तथा दूसरों के संवेगों के प्रति सहा जानकारी एवं सजगता , संवेगा । प्रबन्ध दूसरों के साथ सम्बन्धों को ठीक प्रकार से बनाये रखने जैसे कार्यो में संवेगात्मक बुद्धि ही सबसे अधिक सहायक होती हैं ।

आधुनिक व्यवस्थापिका का इतिहास एवं स्वरूप, कार्य और कार्यपालिका पर नियंत्रण

* व्यवस्थापिका का इतिहास :-

                                                                         व्यवस्थापिकाओ के जन्म और विकास का इतिहास साक्षी है कि इंग्लैंड में पार्लियामेंट, फ्रांस, स्टेटस, स्पेन मे कोर्टेस एवं जापान में डॉयट कि वहां के राजाओं ने केवल धन प्राप्ति के लिए ही जन्म दिया था इस प्रकार गेटिंल  के शब्दों में विधि निर्माण प्रारंभिक काल में व्यवस्थापिका का प्रमुख कार्य नहीं था कानून तो ईश्वरीय माने जाते थे राजा ईश्वर का अंश के कारण कानूनों का स्त्रोत माना जाता था प्रारंभ में व्यवस्थापिका ओं के सदस्य राजा के प्रतिनिधि होते थे और उसी की कृपा पर निर्भर रहते थे पसंद का अपना व्यक्तित्व स्थान गौरव शक्ति सम्मान जैसी कोई बात नहीं थी इसका कार्य राजा द्वारा निर्धारित नीतियों को क्रियाविन्त  करने के लिए धन की स्वीकृति देना मात्र था हां संसाधन के सदस्य जनता द्वारा यह निर्वाचित होने के साथ जनता के प्रति उत्तरदाई भी होते हैं और यही आज के प्रजातंत्र की आधारशिला है |

• सरकार के अंगों को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है 

( 1 ) व्यवस्थापिका
( 2 ) कार्यपालिका
( 3 )  न्यायपालिका

आधुनिक व्यवस्थापिका का इतिहास एवं स्वरूप, कार्य और कार्यपालिका पर नियंत्रण

* प्रजातंत्र का अर्थ :-

                                                  प्रजातंत्र का अर्थ होता है जनता का, जनता के लिए, और जनता के द्वारा शासन |

* व्यवस्थापिका का स्वरूप :-

                                                                 प्रजातंत्र की विचारधारा के जन्म एवं विकास के साथ-साथ व्यवस्थापिका के स्वरूप संगठन एवं कार्यों का भी प्रजातंत्र करण होता गया आज प्रजातंत्र की यह अनिवार्य शर्त हो गई है कि देश के शासन में जहां तक संभव हो सभी का भाग हो किंतु सदस्यों की संख्या इतनी अधिक भी नहीं होनी चाहिए कि वे एक ही स्थान पर एक साथ मिलकर विचार विमर्श और आवश्यक एवं उचित निर्णय ने कर सकें व्यवस्थापिका उनका संगठन सभी देशों में एक सा नहीं होता है परंतु फिर भी कुछ आधारभूत सिद्धांत ऐसे भी हैं जो सर्वत्र पाए जाते हैं जैसे जनता का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व तथा प्रतिनिधियों का जनता के प्रति उत्तरदायित्व | कि राज्य में एक ही सदन होना चाहिए द्वितीय सदन व्यर्थ समझा जाता है |

•बेंजामिन फ्रेंकलिन का कहना :-  एक व्यवस्थापिका जो दो  विभागों में विभाजित है एक ऐसी गाड़ी के समान है जिसे एक घोड़ा आगे तथा एक घोड़ा पीछे से विपरीत दिशा में खींचे रहा हो |


* व्यवस्थापिका के कार्य:-

                                                        राज्य का जन्म और विकास समाज में अराजकता के अंत करने एवं व्यवस्था की स्थापना करने की आवश्यकता के परिणाम स्वरूप हुआ है राज्य का यह महत्वपूर्ण आधारभूत कार्य आधुनिक युग में प्रतिनिधि सदन अर्थात व्यवस्थापिका कानून निर्माण कर पूरा करती है व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों के आधार पर ही कार्यपालिका एवं न्यायपालिका अपना उत्तरदायित्व पूरा कर पाती है व्यवस्थापिका के कारण इनके अन्य कार्य भी होते हैं एक निरकुंश राजतंत्र अथवा  तानाशाही शासन व्यवस्था में इनका कार्य एक परामर्शदात्री निकाय तक ही सीमित रह जाता है |

• फाइनल के अनुसार :-

                                              फाइनल के अनुसार सदन के तीन कार्य :- कानून निर्माण,  कार्यपालिका का नियंत्रण,  और नीति का निर्माण |

( 1 ) विधायी कार्य :-

                                                   प्रजातंत्र में व्यवस्थापिका के जन निर्वाचित सदस्य राष्ट्र की इच्छा को प्रकाशित एवं प्रदर्शित करते हैं इच्छाओं की यह अभिव्यक्ति विधि निर्माण के द्वारा  साकार स्वरूप धारण करती है इस विधि निर्माण के कार्य में व्यवस्थापिका द्वारा संगठित विभिन्न समितियां अपनी विशेष जानकारी योग्यताएं एवं दक्षता के कारण उसे सहायता देती रहती है और विधि निर्माण के कार्य भाई एवं जटिलता को कम कर देती है लोक कल्याणकारी राज्य में जनहित के लिए प्रत्येक क्षेत्र में नित नई कानूनों का निर्माण करना व्यवस्थापिका का परम कर्तव्य हो गया है |

( 2 )विमर्शात्मक कार्य :-

                                                       अरस्तु ने तो सरकार के विधि निर्माण कार्य विभाग को विचार-विमर्श कारी अंग ही माना था व्यवस्थापिका के सभी सदस्यों को विचार प्रकट करने का अधिकार एवं अवसर प्राप्त रहता है 
 पार्लियामेंट:- पार्लियामेंट शब्द का फारसी  शब्द में अर्थ होता है विचार करने वाली संस्था |



तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति व परिभाषा एवं क्षेत्र

* तुलनात्मक राजनीति की परिभाषा :-

                                                                                                                                                तुलनात्मक राजनीति एक ही देश में विभिन्न सरकारों का तुलनात्मक अध्ययन है यह एक ही राज्य में विभिन्न सरकारों की तुलना करना कहलाता है इस प्रकार की मान्यता रखने वालों ने लिए ही तुलनात्मक राजनीति की परिभाषा आधार पर इस प्रकार की है |

तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति व परिभाषा एवं क्षेत्र

* तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति :-

                                                                                                                                               तुलनात्मक राजनीति की प्रकृति को लेकर विद्वानों में विचार  विभेद है इसका प्रकृति को लेकर विद्वानों की मुख्य दो धारणाए  है सभी विद्वान कम या अधिक मात्रा में दोनों में से किसी एक
धारणा के समर्थक दिखाई देते हैं - 
                                           ( 1 ) यह लंबात्मक तुलना है

( 2 ) यह अंबरानतीय तुलना है

( 1 ) यह लंबात्मक तुलना है :-

                                                   इस विचार के समर्थकों के अनुसार तुलनात्मक राजनीति एक ही देश में स्थित विभिन्न स्तरों पर स्थापित सरकारों का तुलनात्मक विश्लेषण  वे अध्ययन है इसके विचारक यह मानते हैं कि प्रत्येक शब्द में कई स्तरों पर सरकारें होती है मोटे रूप में उन्होंने इन सरकारों को दो भागों में विभक्त किया है |

( 1 ) सर्वव्यापक सरकार या सार्वजनिक सरकार

( 2 ) आंशिक सरकार या व्यक्तिगत सरकार |

 इनके अनुसार तुलनात्मक राजनीति का संबंध इस प्रकार की एक ही देश में स्थित विभिन्न सरकारी सर्व व्यापक व आंशिक की आपस में तुलना से है इस धारणा में विचारक मानते हैं कि यद्यपि एक ही देश में सर्वव्यापक सरकार तो एक ही होती है परंतु आशिक सरकारें अनेकों होती है |

( 1 ) राष्ट्रीय सरकार ( national government )
( 2 ) राज्य /प्रांतीय सरकार ( state  government )
( 3 ) स्थानीय सरकार ( local government ) 

 तुलनात्मक राजनीति की उपरोक्त परिभाषा स्वीकार नहीं की जा सकती क्योंकि इस परिभाषा का आधार यह तर्कसंगत नहीं लगता क्योंकि राष्ट्रीय सरकार में आंशिक सरकारों के बीच दृष्टिगोचर होने वाली समानता सतही है वैसे भी इन समानता ओं की गहराई में जाइए तो इसमें ऐसा मानते हैं कि अधिक दिखाई देगी और ऊपर से केवल मात्रा का अंतर दिखाई देने वाला वास्तव में प्रकार का अंतर भी प्रतीत होगा |

•  आर्थिक साधनो की समानता :-

                                                                                                                                          यद्यपि ऊपर से देखने पर राष्ट्रीय वे आशिक सरकारों में  आर्थिक साधनों की समानता लगती है क्योंकि आर्थिक साधन दोनों ही प्रकार की सरकारों के पास होते हैं फिर भी यह साधनों की समानता अपने में कोई तुलनात्मक अध्ययन के लिए उपयोगी नहीं हो सकती यह सही है कि दोनों के ही आर्थिक साधनों का उत्थान पतन होता रहता है |

• नियमों या विधियों की समानता:-

                                                                                                                                           हर प्रकार की सरकार में चाहे वह राष्ट्रीय हो या आंशिक हो संगठन व संचालन के लिए नियमों में विधियों  का पाया जाना अनिवार्य है और इन नियमों की समानता के आधार पर उनकी तुलना भी की जा सकती है परंतु जब हम राष्ट्रीय सरकार के कानूनों में नियमों में आंशिक अगर तुलनात्मक राजनीति राष्ट्रीय सरकारों का तुलनात्मक अध्ययन है तो इसमें दो संभावनाएं सम्मिलित प्रतीत होती है |

* तुलनात्मक राजनीति का क्षेत्र:-

                                                                                                                                    तुलनात्मक राजनीति की परिभाषा व स्वरूप की तरह इसका क्षेत्र भी विवाद का विषय है इसके क्षेत्र को लेकर परंपरावादियों ( traditional politics scientists ) वे आधुनिक राजनीति शास्त्रियों  गहरा मतभेद है |

• इसमें दो विवाद हैं:-

     (1 ) सीमा संबंधी विवाद
     ( 2 ) औचित्यपूर्ण धारणाओ व व्यवहार के समय में विवाद

( 1 ) सीमा संबंधी विवाद:-

                                                        तुलनात्मक राजनीति में सीमा विवाद अध्ययन के दृष्टिकोण से संबंधित है अन्यथा सभी राजनीति शास्त्री यहां तक तो सहमत हैं कि तुलनात्मक राजनीति का समय राष्ट्रीय सरकारों से और इनमें भी केवल सरकारी ढांचे का ही अध्ययन नहीं अपितु सरकारों के कार्यकलापों का भी अध्ययन आवश्यक रूप से सम्मिलित रहता है अर्थात इनमें से कौनसा दृष्टिकोण तुलना के लिए अपनाया जाए और क्यों अपनाया जाए विवाद का विषय रहा है यह दृष्टिकोण है 
                          ( 1 ) कानूनी दृष्टिकोण

( 2 ) व्यवहारिक दृष्टिकोण

( 1 ) कानूनी दृष्टिकोण :-
                                इस दृष्टिकोण के अनुसार तुलनात्मक राजनीति में केवल संविधान द्वारा स्थापित सरकार संरचना का तथा संविधान द्वारा नियत किए गए राजनीति व्यवहार का तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिए इसलिए तुलना राष्ट्रीय सरकारों का आधार संविधान में उनके द्वारा व्यक्तित्व नियत कार्यकलापों की ही होनी चाहिए उनके अनुसार इसके अलावा अन्य किसी आधार पर राजनीति व्यवहार का अध्ययन ने केवल असंभव होगा वरन अव्यवहारीक  होगा |


( 2 ) व्यवहारिक दृष्टिकोण:-
                                         इस दृष्टिकोण के समर्थकों  से व्यवहारवादी कहा जाता है उनके अनुसार तुलनात्मक राजनीति में केवल कानूनी व्यवस्था का औपचारिक अध्ययन में तुलना पर्याप्त नहीं है व्यवहारवादी दृष्टिकोण और अच्छी तरह से समझने के लिए व्यवहारवादियों द्वारा दी गई राजनीति विज्ञान की परिभाषा का उल्लेख  करना उपयोगी होगा व्यवहार वादियों के अनुसार राज्य में सरकार का यह उत्तरदायित्व है कि वे समाज में अधिकता पूर्ण ढंग से मूल्यों का वितरण करें उनके अनुसार तुलनात्मक राजनीति में राजनीति व्यवहार के नियम लिखित इन पहलुओं का अध्ययन किया जाता है

• मूल्यों तथा लक्ष्यों का प्रतिपादन
• मूल्यों का आत्मसात तथा उनका लश -निर्णयों  में रूपांतरण
• निर्णयों का कियागयन |

( 2 ) औचित्यपूर्ण  धारणाओं व  व्यवहार के समय में विवाद:-

                                                                                                                                           तुलनात्मक राजनीति के क्षेत्र के बारे में उपरोक्त विवादों का विस्तृत विवेचन से यह स्पष्ट है कि इसमें ने केवल सरकारी तंत्र वे संगठन की तुलना की जाती है और न  ही प्रतिमानों व व्यवहारों के संबंधों का विश्लेषण मात्र ही किया जाता है 
• सरकारी  संरचनाए 
• सरकारी व्यवहार प्रतिमान |

















Monday, October 28, 2019

राजनीतिक समाजीकरण: अवधारणा एवं प्रक्रिया और राजनीतिक संस्कृति का बोध

* राजनीतिक समाजीकरण:  अवधारणा एवं प्रक्रिया :-

                                                                                                       ( 1 ) अर्थ तथा आयाम:-
                                                                                                                                           संस्कृति सिखा गया व्यवहारे व्यक्ति जब जन्म लेता है तब संस्कृति के नाम पर सुननी होता है समाज में रहकर लोगों के साथ अंत क्रिया में भाग लेकर वे समाज के तौर तरीकों को समझने लगता है उस की रीति नीति जानने लगता है और इस प्रकार के जैविक धरातल से उठकर सामाजिक-सांस्कृतिक होने लगता है अपनी और अन्य लोगों की भूमिका एवं उनके साथ जुड़े अधिकारों तथा आभारी का बोध उसे इसी प्रकार होता है किंतु सामाजिकरण की यह प्रक्रिया एक प्रकार आजीवन चलाती रहती है वयस्क होने पर भी उसने स्थितियों के रूप अपने को ढालने की वह नए परिवेश में अपने को व्यवस्थित होने की आवश्यकता होती है |

( 2 ) सामाजिकरण स्तर तथा माध्यम :-
                                                        राजनीतिक समाजीकरण का अध्ययन दोस्तों पर किया जा सकता है व्यक्ति के स्तर पर और प्रणाली के स्तर पर|
            व्यक्तिगत स्तर पर यह प्रश्न पूछा जा सकता है उसे किस प्रकार की माध्यमों से राजनीति दृष्टि से सामाजिक अर्थ हुआ या फिर किसी भी देश में विभिन्न वर्णों के लोग किस स्तर के सामाजिक कार्य प्रणाली के स्तर पर सामाजिक वैज्ञानिक की सूची इस प्रकार के प्रश्नों में होगी राजनीतिक समाजीकरण के कार्य प्रणाली किन बातों का अवश्य गिनती है अर्थात किन बातों पर अधिक बल दिया जाता है राजनीतिक समाजीकरण कहीं माध्यम से किया जाता है कई स्थितियां तो ऐसी होती है जहां पर अनजाने ही राजनीति प्रणाली और उससे संबंधित मूल्यों के बारे में व्यक्ति परीक्षा लेता है

 प्रकट रूप से परिवार बालक का राजनीतिकरण सामाजिकरण करते हैं बालक के माता-पिता यदि सामंती युग में राजा के प्रति अपनी निष्ठा रखते हैं तो उनके शेर्य  की चर्चा घर में किया करते थे तो प्रजातांत्रिक समाजों में विभिन्न दलों राज्यों के प्रति को आदि के बारे में बातचीत करते हैं
 परिवार के बाद दूसरी महत्वपूर्ण संस्था पाठशाला ओझा राजनीतिक समाजीकरण का महत्वपूर्ण प्रकार्य संपन्न होता है नहीं राष्ट्रों में परिवार राजनीतिक समाजीकरण में उतना योजना नहीं देते जितना की पाठशाला और विश्वविद्यालय देते हैं इसका कारण हम पहले बता भी आइए हैं |

* राजनीतिक संस्कृति का बोध:-


                                                                                        वैज्ञानिक शब्दावली में संस्कृत शब्द का उपयोग विकसित अर्थ होता है जब लोग आम चर्चा में अंग्रेजों के काल्लचर शब्द का प्रयोग करते हैं तो उनका तात्पर्य सृष्टि वर्ग की जीवन विधि अथवा साहित्य संगीत और कला की परम परिष्कृत विधाओं से होता है मानव विज्ञान में झांकी अधिकांश आदिवासी समाजों के अध्ययन पर ही प्रारंभ में बल दिया गया संस्कृति को किसी भी समाज की जीवन भी दिखा जाता है

 मानव विज्ञान की यह परिभाषा समाजशास्त्र में आकर थोड़ी सी  हुई और सामाजिक प्रणाली के लक्ष्य को मानकर विश्लेषण करने वाले समाज शास्त्रियों ने जिसमें टालकट पासम का नाम पर मुकेश संस्कृति को सामाजिक प्रणाली से भिन्न प्रणाली के रूप में परिभाषित किया संस्कृति प्रणाली मैसम्मा शास्त्री ना में बातें सम्मिलित करते हैं |

( 1 ) राजनीतिक संस्कृति का बोध:-

                                                                            राजनीति संस्कृति कोई एक दृष्टि से समाज को व्यापक या राजनीति प्रणाली से व्यापक भी हो सकता है राजनीति संस्कृति किसी भी राजनीति प्रणाली के सदस्यों में राजनीति के प्रति पाए जाने अभिमुखीकरण के तीन अंग होते हैं

( 1 ) संज्ञानात्मक अभिमुखन 
( 2 ) अनुरागी अभिमुखन 
( 3 )  मूल्यांकनकारी अभिखन |

 जितना भी कोई शक्ति सीख पाता है उतना ही व्यापक उसका संज्ञानात्मक मानचित्र होता है कोई भी कार्य करते समय वे किसी मानचित्र के सारे अपने लक्ष्य निर्धारित करता है और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए साधनों के उपलब्ध विकल्पों में से अपने  सुविधा और पसन्द के अनुसार विकल्प का चयन करते हैं 
 संस्कृति के यह तीन आयामों परस्पर  संबंधित होते हैं और कहीं प्रकार के इन तीनों का समिमंन  किसी भी व्यक्ति में पाया जा सकता है |

( 2 )  राजनीति संस्कृति का चित्रण :-

                                                                                    राजनीतिक संस्कृति का चित्रण करना सरल नहीं है राजनीतिशास्त्रयों ने जनमत- संग्रह और  अभिवृत्तियों के सर्वेक्षणों के माध्यम से किसी भी देश की राजनीति संस्कृति को अंकित करने का प्रयास किया है राजनीति के विभिन्न पक्षों नेताओं ढांचा और नीतियों के बारे में लोगों की जानकारी अत्यधिक और सही हो सकती है या छिछली और गलत | 


( 3 ) राजनीति संस्कृति की श्रेणियां:-

                                                                                 प्रजामूलक राजनीति संस्कृति जीने वाले लोग प्रजा होते हैं वे शासन की निवेश प्रक्रिया में कोई योगदान नहीं कर पाते हैं और उनका अभिमुखन केवल निगर्तों क्यों रहता है |