* संविधानवाद का अर्थ:-
संविधानवाद नियमों, मूल्यों, के सिद्धांतों, का समूह है जो कि पाश्चात्य उदारवादी सिद्धांतों में शासन प्रणाली का अंग है यह शासन कला में उदारवादी राजनीतिक सिद्धांत का प्रयोग है यह अपेक्षा करते का आधुनिक सिद्धांत है यद्यपि लेखकों ने प्राचीन ग्रीन वे रोम तथा मध्यकालीन युग में संविधानवाद के तत्वों को ढूंढने का प्रयास किया है सच्चाई तो यह है कि इन प्रयासों ने आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत के उन विचारों तथा प्रत्ययों को उस पालकी संस्थाओं में पद्धतियों पर थोपा है
* संविधानवाद की प्रकृति:-
पाश्चात्य मत में यदि संविधान के शासक की विचारधारा वे दर्शन राज्य की सरकार में उदारवाद के सिद्धांतों के अनुसार है तथा उनको प्रोत्साहन व समर्थन देती है तब सरकार को संविधानवाद पर आधारित माना जा सकता है अन्यथा नहीं यह स्पष्ट किया जाना आवश्यक है कि इस मत के अनुसार संविधानवाद ना ही तटस्थ है और ना ही मूल्यों में स्वतंत्र है संविधानवाद उदारवाद के राजनीतिक सिद्धांतों पर आधारित कुछ नियमों मूल्यों तथा उद्देश्यों की पूर्ति के लिए होता है संविधानवाद के मुख्य मध्य देश में शासन व्यवस्था के लिए उदारवादी राजनीतिक सिद्धांतों के कियान्वयन से अधिक और कुछ नहीं है
* संविधानवाद की प्रमुख आवश्यकताएं:-
( 1 ) कानून का शासन:-
संघवाद की पहली आवश्यकता कानून का शासन है जिसका अर्थ है कि शासक ने शासित दोनों ही विधि के अधीन होते हैं सरकार को विधि के अनुसार शासन करना चाहिए इस संविधान का पालन अवश्य करना चाहिए शक्तियों के परियों में संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं का उल्लंघन नहीं करना चाहिए यह सरकार पर लगी पहली सीमा होती है
( 2 ) शक्ति विभाजन:-
शक्ति विभाजन संविधान का दूसरा मुख्य आधार है जैसा कि कार्ल फेरडरिक का कहना है कि संविधान व शक्तियों का विभाजन कर सरकारी कार्यवाही पर प्रभावी प्रतिबंधों की यह व्यवस्था प्रदान कराता है इसके अध्ययन के लिए उन तरीकों को खोजना होता है जिनके द्वारा इस तरह के प्रतिबंध स्थापित तथा बरकरार किए जाते हैं
( 3 ) प्रजातंत्र:-
संविधान का तीसरा संघटक प्रजातंत्र होता है जिसके कि व्यस्त मताधिकार, स्वतंत्रत चुनाव, गुप्त मत, प्रतिनिधि राजनैतिक दल, प्रतिनिधि विधान पालिका, उत्तरदाई कार्यपालिका, तथा नागरिकों व सरकार के बीच निर्णयक स्वतंत्र न्यायपालिका आदि मुख्य लक्षण है इसका उद्देश्य एक उत्तरदाई वे उत्तर कार्य सरकार को सुनिश्चित करना होता है इस प्रकार की सरकार जनमत के प्रति संवेदनशील होती है
( 4 ) व्यक्तिगत अधिकारी को सुरक्षा:-
संवैधानिक सरकार का उद्देश्य सरकार के प्रतिपारित बन सामान्य के अधिकारों व स्वतंत्रता को सुरक्षित रखना होता है इसका मुख्य लक्ष्य सरकार के नागरिकों के साथ संबंधों को परिभाषित करना तथा व्यक्तिगत कार्य क्षेत्र को निर्धारित करना होता है
( 5 ) मतभेद तथा विपक्ष:-
संवैधानिक सरकार की व्यवस्था के तहत मान्यता दिए गए अधिकारों में सबसे महत्वपूर्ण है विरोध करने का अधिकार तथा व्याख्यानो तथा कार्यों में इस विरोध की अभिव्यक्ति का अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा स्वतंत्र प्रेस मैं अपने ही संवैधानिक सरकार की विलक्षणता के प्रतीक है
( 6 ) संविधानवाद के वैचारिक आधार:-
सविधान की जड़े अधिकार बन जाए के अनु भावित सिद्धांतों में मानी जाती है विधान वाद सरकारी कार्य क्षेत्र में प्राकृतिक विधि की प्रयुक्त होती है जो महत्व प्राकृती विधि के लिए राज्य के सिद्धांत का है वही महत्व संविधानवाद का सरकार के व्यवहार के लिए होता है
( 7 ) संविधानवाद का इतिहास:-
संविधानवाद के स्त्रोतों के उपयुक्त विश्लेषण के अलावा यह समझना आवश्यक है कि इन धारणाओं जैसे सरकार निरंकुश नहीं होनी चाहिए वह इसके शक्ति प्रयोग की कुछ सीमाएं होनी चाहिए तथा इसके द्वारा शक्ति का प्रयोग निर्धारित प्रतिमान के अनुसार होना चाहिए अपने सविधान से शासित हुआ करते थे तथा उनके भली-भांति परिभाषित प्रणालियां होती थी जो कि कानूनों में प्रशासन का अधिनियम करते थे
* उदारवाद में संविधानवाद का स्वरूप:-
पाश्चात्य उदारवादी सिद्धांत के रूप में संविधानवाद तीन तथ्यों को दर्शाता है
( 1 ) शक्ति विभाजन
( 2 ) सीमित सरकार
( 3 ) जनता के प्रति उत्तरदायित्व |
कार्ल फेरडरिक के अनुसार:- संविधानवाद का यही सही अर्थ होता है आगे उनका कहना है कि संविधानवाद शक्ति विभाजन कल सरकारी कार्यों पर प्रभावी प्रतिबंधों की व्यवस्था प्रदान करता है नियमों के एक समूह के रूप में एक शासन को सुनिश्चित कर यह सरकार को उत्तरदायी बनाता है
* संविधानवाद के तहत सरकार पर दो प्रकार के प्रतिबंध लगते हैं:-
( 1 ) शक्ति अभिनिषिद होती है
( 2 ) प्रणाली नियत होती है
* सीमित सरकार के अर्थ:-
( 1 ) समुदाय के सदस्यों के संबंध में कोई कदम उठाने की शक्ति सरकार के पास नहीं होती है उदाहरण स्वरूप अमेरिकी संविधान में पहले किए गए 2 संशोधनों में राष्ट्रीय सरकार पर इस तरह के प्रतिबंधों का प्रावधान रखा गया है
( 2 ) जहां भी निर्धारित नियमों का सरकार द्वारा उल्ल्घन किया जाता है वहां सरकारी ढांचे के अंदर या बार्बी पक्षी को व्यवस्थित रूप से विरोध करने का अधिकार दिया जाता है जो कि घटना के गुणों तथा अपने योग्यताओं की तरह प्रभावी ढंग से किया जा सकता है
( 3 ) शक्ति का प्रयोग निरंकुश ना होकर निर्धारित नियमों के अनुसार ही होनी चाहिए
( 4 ) प्रक्रिया का निर्धारण निर्देशों पर आधारित होते हैं जिस पर कोई नीति बनाई जाती है तथा राज्य के अधिकारी क्षेत्र के अंतर्गत उसका परिपालन होता है
* सविधान के कार्य:-
( 1 ) सरकारी अंगों में संस्थाओं की स्थापना करना |
( 2 ) उनकी रचना के स्वरूप व प्रणाली का निर्धारण करना
( 3 ) उनकी शक्तियों का निर्धारण तथा प्रयोग के लिए प्रणाली बनाना
( 4 ) विभिन्न क्षेत्रीय स्तर पर यदि हो तो विभिन्न सरकारी अंगों के आपसी संबंध नियत करना
( 5 ) जनता के अधिकारों वे स्वतंत्रता को निश्चित करना जो कि सरकार की सीमाएं होंगी |
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