Tuesday, October 15, 2019

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय

स्वामी विवेकानंद :- 

                                   भारतीय दर्शन के पुन: उद्धारक विवेकानंद जी की मृत्यु 1902 में हुई। स्वामी विवेकानन्द वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका वास्तविक नाम नरेन्द्र नाथ दत्त था। उन्होंने अमेरिका स्थित शिकागो में सन् १८९३ में आयोजित विश्व धर्म महासभा में भारत की ओर से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया था।
उन्होंने रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना काम कर रहा है। वे रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे
कलकत्ता के एक कुलीन बंगाली परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीवो मे स्वयं परमात्मा का ही अस्तित्व हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की जा सकती है।

स्वामी विवेकानंद

जन्म :-

             वास्तविक नाम    (नरेन्द्रनाथ दत्त ) 12 जनवरी 1863,  जन्म स्थल -कलकत्ता

मृत्यु :-

              20-01-1961 बेलूर, पश्चिम बंगाल 

गुरु / शिक्षक :-

                           रामकृष्ण परमहंस 

कथन :-

              "उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये "

धर्म :-

            हिन्दू 

राष्ट्रीयता :-

                 भारतीय 



* स्वामी विवेकानंद की कहानियाँ :-

1.पहली कहानी ( लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना )

एक बार स्वामी विवेकानंद जी अपने आश्रम में सो रहे थे। कि तभी एक व्यक्ति उनके पास आया जो कि बहुत दुखी था ! और आते ही स्वामी विवेकानंद जी के चरणों में गिर पड़ा और बोला महाराज मैं अपने जीवन में खूब मेहनत करता हूँ हर काम खूब मन लगाकर भी करता हूँ फिर भी आज तक मैं कभी सफल व्यक्ति नहीं बन पाया।
उस व्यक्ति कि बाते सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कहा ठीक है। आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर तक घुमाकर लाये तब तक आपके समस्या का समाधान ढूँढ़ता हूँ इतना कहने के बाद वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने के लिए चल गया। और फिर कुछ समय बीतने के बाद वह व्यक्ति वापस आया। तो स्वामी विवेकानंद जी ने उस व्यक्ति से पूछ की यह कुत्ता इतना हाँफ क्यों रहा है। जबकि तुम थोड़े से भी थके हुए नहीं लग रहे हो आखिर ऐसा क्या हुआ ?
इस पर उस व्यक्ति ने कहा कि मै तो सीधा अपने रास्ते पर चल रहा था जबकि यह कुत्ता इधर उधर रास्ते भर भागता रहा और कुछ भी देखता तो उधर ही दौड़ जाता था. जिसके कारण यह इतना थक गया है !
इसपर स्वामी विवेकानंद जी मुस्कुराते हुए कहा बस यही तुम्हारे प्रश्नों का जवाब है. तुम्हारी सफलता की मंजिल तो तुम्हारे सामने ही होती है. लेकिन तुम अपने मंजिल के बजाय इधर उधर भागते हो जिससे तुम अपने जीवन में कभी सफल नही हो पाए. यह बात सुनकर उस व्यक्ति को समझ में आ गया था। की यदि सफल होना है तो हमे अपने मंजिल पर ध्यान देना चाहिए।

2.दूसरी कहानी ( नारी का सम्मान )

स्वामी विवेकानंद जी के बारे में देश – विदेश में फैली हुई थी। एक बार कि बात है। विवेकानंद जी समारोह के लिए विदेश गए थे। और उनके समारोह में बहुत से विदेशी लोग आये हुए थे ! उनके द्वारा दिए गए स्पीच से एक विदेशी महिला बहुत ही प्रभावित हुईं।
और वह विवेकानंद जी के पास आयी और स्वामी विवेकानंद से बोली कि मैं आपसे शादी करना चाहती हुँ ताकि आपके जैसा ही मुझे गौरवशाली पुत्र की प्राप्ति हो।
इसपर स्वामी विवेकानंद जी बोले कि क्या आप जानती है। कि ” मै एक सन्यासी हूँ ” भला मै कैसे शादी कर सकता हूँ अगर आप चाहो तो मुझे आप अपना पुत्र बना लो। इससे मेरा सन्यास भी नही टूटेगा और आपको मेरे जैसा पुत्र भी मिल जाएगा। यह बात सुनते ही वह विदेशी महिला स्वामी विवेकानंद जी के चरणों में गिर पड़ी और बोली कि आप धन्य है। आप ईश्वर के समान है ! जो किसी भी परिस्थिति में अपने धर्म के मार्ग से विचलित नहीं होते है

* शिकागो सम्मेलन में भाषण :-

 मेरे अमरीकी भाइयो और बहनो!
आपने जिस सौहार्द और स्नेह के साथ हम लोगों का स्वागत किया हैं उसके प्रति आभार प्रकट करने के निमित्त खड़े होते समय मेरा हृदय अवर्णनीय हर्ष से पूर्ण हो रहा हैं। संसार में संन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की ओर से मैं आपको धन्यवाद देता हूँ; धर्मों की माता की ओर से धन्यवाद देता हूँ; और सभी सम्प्रदायों एवं मतों के कोटि कोटि हिन्दुओं की ओर से भी धन्यवाद देता हूँ।
मैं इस मंच पर से बोलने वाले उन कतिपय वक्ताओं के प्रति भी धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ जिन्होंने प्राची के प्रतिनिधियों का उल्लेख करते समय आपको यह बतलाया है कि सुदूर देशों के ये लोग सहिष्णुता का भाव विविध देशों में प्रचारित करने के गौरव का दावा कर सकते हैं। मैं एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने में गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता तथा सार्वभौम स्वीकृत- दोनों की ही शिक्षा दी हैं। हम लोग सब धर्मों के प्रति केवल सहिष्णुता में ही विश्वास नहीं करते वरन समस्त धर्मों को सच्चा मान कर स्वीकार करते हैं। मुझे ऐसे देश का व्यक्ति होने का अभिमान है जिसने इस पृथ्वी के समस्त धर्मों और देशों के उत्पीड़ितों और शरणार्थियों को आश्रय दिया है। मुझे आपको यह बतलाते हुए गर्व होता हैं कि हमने अपने वक्ष में उन यहूदियों के विशुद्धतम अवशिष्ट को स्थान दिया था जिन्होंने दक्षिण भारत आकर उसी वर्ष शरण ली थी जिस वर्ष उनका पवित्र मन्दिर रोमन जाति के अत्याचार से धूल में मिला दिया गया था। ऐसे धर्म का अनुयायी होने में मैं गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने महान जरथुष्ट जाति के अवशिष्ट अंश को शरण दी और जिसका पालन वह अब तक कर रहा है। भाईयो मैं आप लोगों को एक स्तोत्र की कुछ पंक्तियाँ सुनाता हूँ जिसकी आवृति मैं बचपन से कर रहा हूँ और जिसकी आवृति प्रतिदिन लाखों मनुष्य किया करते हैं:

* स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन :-

1.उठो जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता।

2.एक समय में एक काम करो और ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमे डाल दो और बाकि सब कुछ भूल जाओ

3.जीवन में ज्यादा रिश्ते होना जरुरी नहीं लेकिन रिश्तो में जीवन होना बहुत जरुरी है

* महत्वपूर्ण तिथियां :-

12 जनवरी 1863 -- कलकत्ता में जन्म
1879 -- प्रेसीडेंसी कॉलेज कलकत्ता में प्रवेश
1880 -- जनरल असेम्बली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश
नवम्बर 1881 -- रामकृष्ण परमहंस से प्रथम भेंट
1882-86 -- रामकृष्ण परमहंस से सम्बद्ध
1884 -- स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण; पिता का स्वर्गवास
1885 -- रामकृष्ण परमहंस की अन्तिम बीमारी
16 अगस्त 1886 -- रामकृष्ण परमहंस का निधन
1886 -- वराहनगर मठ की स्थापना
जनवरी 1887 -- वड़ानगर मठ में औपचारिक सन्यास
1890-93 -- परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण
25 दिसम्बर 1892 -- कन्याकुमारी में
13 फ़रवरी 1893 -- प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकन्दराबाद में
31 मई 1893 -- मुम्बई से अमरीका रवाना
25 जुलाई 1893 -- वैंकूवर, कनाडा पहुँचे
30 जुलाई 1893 -- शिकागो आगमन
अगस्त 1893 -- हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो॰ जॉन राइट से भेंट
11 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान
27 सितम्बर 1893 -- विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अन्तिम व्याख्यान |

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