* अभिजन सिद्धांत प्रकृति:-
अभिजन सिद्धांत की वैचारिक प्रकृति व वास्तविक स्वरूप की चर्चा से पूर्व उल्लेखनीय है कि द्वितीय महायुद्ध के उपरांत अमेरिका सामाजिक विज्ञान में अनेक सामाजिक वैज्ञानिकों द्वारा अभी जनवादी परिकल्पना ओं का नियोजन किया गया और उसके प्रकाश में सामाजिक प्रक्रिया की व्याख्या की गई इसके बावजूद पश्चिम में फासीवाद और नाजीवाद के उदय से पूर्व विचारकी की पंक्ति विद्यमान रही है
( 1 ) अभिजन अथवा ऐसा विकसित व अल्पसंख्यक वर्ग जो अपनी प्रकृति धन्य क्षमता वह सामर्थ्य के आधार पर संपूर्ण समाज को अधिकारिक नेतृत्व प्रदान करता है |
( 2 ) जनसाधारण या समाज का ऐसा बहुसंख्यक वर्ग जो अभिजनों द्वारा शासित वह संचालित होता है कोई भी समाज अथवा राजनीति सामान्य तत्व काकाकुआ नहीं हो सकती राजनीतिक प्रक्रिया की वास्तविकता ज्ञात करने के लिए यह आवश्यक है कि अभिजन जनसाधारण के बीच व्याप्त है इस दौरान दोनों पक्षों में शक्ति संबंध और उनकी प्रभावशीलता एक केबीय महत्व का प्रसन्न होती है |
* अभिजन सिद्धांत का स्वरूप:-
अभिजन सिद्धांत की प्रकृति व स्वरूप के संबंध में यह स्पष्ट करना प्रसंगिक होगा कि इसका कोई एक सामान्य सामान्य प्रतिमान उपलब्ध नहीं है संभवत यह हो भी नहीं सकता क्योंकि समस्त वैज्ञानिक व व्यवहारवादी कामुसंधान के बावजूद इस पर का राजनीति का कोई सर्वे छवि का अर्थ रूप उपलब्ध नहीं है उसी प्रकार अभी जनों की स्थितियों के संबंध में भी कोई सर्व सहमति की व्याख्या नहीं की जा सकती |
तीनों दुनिया उसे संबंधित अभी जनों की प्रकृति कीजिए व्याख्या चीनी आदर्श प्रकारों की पैरवी नहीं करती वहां वास्तव में वहां पर विद्यमान प्रतिनिधि पर भर्तियों का एक फूल चित्र मात्र है
( 1 ) अभिजन सिद्धांत सामाजिक राजनीतिक प्रक्रिया के विश्लेषण की दृष्टि से किसी भी समाज को दो वर्गों में देखता परखता है
( a ) अभिजन और|
( b ) जनसाधारण
( 2 ) इन प्रकृति जननीय विविधताओं के बावजूद अभिजन सिद्धांत एक अति सामान्य समानता यह प्रकट करता है कि हर देश में समाज में अभिजन, जन साधारण संबंध राजनीतिक शक्ति पर आधारित हैं |
* अभिजन सिद्धांत का ऐतिहासिक वैचारिक संदर्भ :-
( 1 ) क्लासिकी सिद्धांत:-
राजनीतिक चिंतन की क्लासिकी परंपरा का सर्वाधिक उल्लेखनीय योगदान यह था कि उसने एक ऐसी माननीय क्षमताओं को पुष्ट किया जिसके द्वारा व्यक्ति अपने निजी मानसिकता से अपना परिवेश गढ़ सकता था राजा वे था जिसका सर्वव्यापी दृष्टिकोण था जो शासन की साधन परकता को भी जानता था और सामुदायिक साध्य को भी और यह क्षमता उसे उसके विवेक से मिलती थी |
( 2 ) प्लेटो :-
प्लेटो के राजनीतिक विचारों का मूल बिंदु ही यह था कि ज्ञान ही गुण है ज्ञान से ही सत्य की प्राप्ति होती है और उसी से वस्तुनिष्ठ यथार्थ का बोध होता है ज्ञानी वह है जो कल्याण अथवा भलाई के स्थूल विचार से ऊपर उठकर उसके अमूर्त सूक्ष्म तत्वों से अंतरंग होते हैं इसी कारण उसने अपने विचार योजना में शासक के लिए ज्ञान में दर्शन के गुणों को अनिवार्य बताया है |
( 3 ) अरस्तु:-
अरस्तु ने यद्यपि प्लेटो की विचार योजना में संशोधन किया और वैचारिक अमूर्तता के साथ वास्तविक व्यवहारिकता का अंश राजनैतिक में जोड़ा फिर भी उसका यह सामान्य मत था कि जन्म से ही कुछ लोग अधीनता के लिए नियत होते हैं और कुछ आदेश देने के लिए उसकी विचार योजना में आदेश देने की क्षमता उनमें कुछ लोगों में हनीत होती है जो सद्गुण सम्मान होते हुए बौद्धिक क्रियाओं द्वारा व्यवहारिकता वे नैतिकता में नियमन व संतुलित स्थापित करते हैं |
( 4 ) रोमन काल :-
रोमन काल में प्रकृति कानूनों से मानव कानून बने और आधिकारिक यूरोपीय के रूप में प्लेटो वादी विवेक वे अरस्तु वादी कानून समस्त सरकार के लक्ष्यों को अंगीकार करते हुए उन्हें धार्मिकता से समनिवत किया गया है जो सामान्य मानवीय इच्छाओं के समर्थक से ऊपर थे |
( 5 ) होम्स, लॉक, रूसो :-
होम्स यद्यपि पर्याप्त अंशों में व्यक्तिवादी आग्रहो से युक्त था और मानवीय आतम अनुसरण के अधिकार का प्रयत्न समर्थक लेकिन प्राकृतिक अवस्था से नागरिक समख व अव्यवस्था से व्यवस्था प्राप्त करने की खोज में उसने एक ऐसी सर्वोच्च वे कानून स्वतंत्र सला का विकल्प रखा |
( 6 ) उपयोगितावादी :-
राजनीतिक चिंतन की धात को आगे बढ़ाते हुए उपयोगितावादियो ने उपयोगितावादी उपकरणों के संगठन में अधिकांश की सुख समृद्धि के अधिकाधिक संवधर्न का दायित्व राज्य पर छोड़ा और इससे व्यापक ढांचे में शासकशासितों के पारंपरिक संबंध संगठित हुए |
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