* उत्तर एवं दक्षिण का अर्थ :-
प्रस्तुत अध्याय में हमारा विश्लेषण उत्तर -दक्षिण और दक्षिण -दक्षिण के सहयोग में जुड़े प्रश्न पर केंद्रित हैं परंतु इस विश्लेषण को हम आगे बढ़ाएं से पूर्व हम उत्तर और दक्षिण इन शब्दों के अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अर्थ को स्पष्ट करने का प्रयास करेंगे |
* उत्तर( north ):-
यह उन देशों का समूह है जो कर्क रेखा से उत्तर में तथा इनमें मूल: यूरोप अमेरिका और अन्य देश है जीने की अर्थव्यवस्था में विकसित है वह जहां औद्योगिकीकरण तथा प्राविधिक का प्रयोग अत्यधिक हैं मुलत : विकसित राष्ट्रों के समूह को उतर के राष्ट्र में सम्मिलित किया जाता है |
* दक्षिण( south ):-
कर्क रेखा के दक्षिण के देशों को अल्प विकसित या विकासशील राष्ट्रों के समूह में रखा जाता है यह देश आर्थिक दृष्टि से पिछड़े हैं इनकी प्राविधिक क्षमताएं अल्प हैं किंतु अंतरराष्ट्रीय संबंधों में इन देशों को बहुमत है ओ लेटिन अमेरिका अफ्रीका और एशिया के अधिकांश राष्ट्र दक्षिण के राज्यों में सम्मिलित हैं |
* उत्तर दक्षिण सहयोग: पृष्ठभूमि और विकास:-
उत्तर दक्षिण के देशों के बीच सहयोग और संवाद के प्रमुख प्रश्नों पर विचार किया जाए इससे पहले यह बात अच्छी तरह से समझ ली जानी चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक व्यवस्थाओं की बात मुलत : दद्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात ही उठी है अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित प्रश्नों को लेकर कई युवा की राजधानी हवाना में अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन ``इंटरनेशनल टेड आर्गनाइजेशन ´´ बनाने के प्रश्न में बातचीत की गई |
* गेट के अंतर्गत जो व्यवस्थाएं की गई उनकी मुख्य विशेषताएं:-
( 1 ) अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के व्यापार संबंधी प्रमुख प्रश्नों पर सामूहिक दृष्टिकोण रखा जाएगा |
( 2 ) अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टैरिफ सम्मान होगा और किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा किंतु जब तक वार्ता द्वारा इस सम्मान नहीं बनाया जाता है तब तक प्राथमिकता के आधार पर राष्ट्रों को लाभ प्रदान किया जाएगा |
( 3 ) निर्यात और आयात में संतुलन बनाए रखने के लिए विशेष सुविधाओं की व्यवस्था की गई जो दिलशाद से बातचीत के द्वारा लागू कर सकते हैं |
संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वावधान में विकास सम्मेलनों का आयोजन नियमित रूप से किया जाने लगा इसका प्रथम सम्मेलन:- जिनेवा ( 1964 ), दिल्ली( 1968 ), सेंतागिया ( 1972 ), नैरोबी ( 1976 ), ( 1979 ), बेलग्रेड ( 1983 ) मैं आयोजित किए गए
* उत्तर दक्षिण सहयोग और नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था :-
उत्तर दक्षिण के परस्पर संबंधों में 1974 का विशेष महत्व है जबकि तेल उत्पादक राष्ट्रों ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया और तेल की कीमत अपने शर्त पर ही ते नहीं करवाई वरन अरब इजराइल संघर्ष में भी पश्चिमी राष्ट्रों के दृष्टिकोण को बदलने की कोशिश की
इसी पृष्ठभूमि में1974 के अधिवेशन में महासभा ने नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना की घोषणा की
• नई अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आधार समानता, सार्वभौमिक समानता, परस्पर निर्भरता, सम्मानित और सभी राज्यों के बीच सहयोग होगा
• विकासशील और विकसित राज्यों के बीच जो अंतराल है उसे समाप्त करना तथा विकास की गति को तेज करना जैसे कि आर्थिक सामाजिक न्याय प्राप्त हो सके
• वर्तमान अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था तो आज के राजनीतिक और आर्थिक घटनाक्रम के सीधे विरोध में हैं
• विकासशील राष्ट्रों को आर्थिक सहायता प्रदान करना जिससे वे अपने साधनों का संरक्षण कर सके और उनका पूरा उपयोग कर सकें
• कच्चे माल की कीमत का न्याय पूर्ण और समतावादी आधार |
• विकासशील राष्ट्रों को प्राविधिक की सुविधाएं देना और प्रविधि के हस्ताक्षर को प्रोत्साहन देना
• बहुराष्ट्रीय कंपनियों की गतिविधियों पर नियंत्रण का अधिकार जिसे वे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं को नुकसान न पहुंचा सकें
• प्रत्येक राज्य को अपनी इच्छा से आर्थिक और सामाजिक प्रणाली अपनाने का अधिकार मिले जो उसके लिए उपयुक्त हो
• विश्व की आर्थिक समस्याओं को सुलझाने के लिए समानता के आधार पर सभी राज्यों की साझेदारी जिसमें तेजी से विकास की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए कम विकसित राष्ट्रों को प्राथमिकता प्रदान की जाए
• मुद्रा प्रणाली में आवश्यक सुधार जिससे कि विकास की गति में निरंतरता बनी रहे
• विकासशील राष्ट्रों को प्राथमिकता प्रदान करना और विशेष आधारों पर प्रोत्साहन देना जो पारंपरिकता पर आधारित ने हो |
* अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था की स्थापना के चरण:-
( 1 ) समस्या के प्रति चेतना
, ( 2 ) उनकी पहचान और उन्हें राष्ट्रों के बीच लोकप्रिय बनाना
( 3 ) निश्चित कार्यवाही और अधिक उग्र्ता |
* दक्षिण दक्षिण सहयोग:-
दक्षिण दक्षिण के राज्यों के बीच सहयोग को विकसित करने के दो मुख्य तर्क दिए जाते हैं पहला तक तो यह कि इस सहयोग के विकसित होने से उतर के राज्यों पर विकासशील देशों की निर्भरता कम होगी क्योंकि इन देशों के आपसी सहयोग से विकास के मार्ग अवरुद्ध नहीं होते हैं वरन उनमें नहीं संतों का विकास होता है दूसरा तर्क यह है कि दक्षिण दक्षिण के देशों के सहयोग से इन देशों की सामूहिक शक्ति का विकास होगा जिसे उत्तर दक्षिण विवाद में अपनी मांगे मनवाने के लिए दक्षिण के राज्यों की क्षमता का विकास होगा |
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