बाल गंगाधर तिलक का परिचय :-
भारत के राष्ट्रीय आंदोलन के महान सेनानी आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिंतन के आदर्शवादी विचारधारा के प्रतिपादक बाल गंगाधर तिलक का जन्म महाराष्ट्र के एक परंपरावादी ब्राह्मण परिवार में हुआ था | तिलक का जीवन, जीवन की गत्यात्मक विविधता का प्रतीक है शक्तिशाली व्यक्तित्व नेतृत्व के गुणों से पूर्ण तिलक जहां दर्शन के प्रकांड पंडित थे वही अपने सिद्धांतों के प्रति अडिगता, सरकारी बर्बरता का निरंतर निष्क्रम प्रतिरोध उनकी कार्यशैली का आधार था | तिलक ने अपना कार्य महाराष्ट्र से प्रारंभ किया | वहां की जनता को न्याय राज स्वतंत्रता अधिकारों का संदेश देते हुए संगठन व सामूहिक स्वावलंबन का महत्व बताया |
1905 तक राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में और कांग्रेस में अतिवादी राष्ट्रवाद की भावना को तिलक ने प्रविष्ट किया और कांग्रेस के संगठन का आधार, मध्यमवर्ग से भिन्न वे कुछ हद तक आम जनता तक को बनाने का प्रयास किया | तिलक के राजनीतिक दर्शन का आधार गीता वे वेद थे उनके अनुसार गीता का उपदेश है कि व्यक्ति को स्वेच्छापूर्ण व निस्वार्थ भाव से अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए
* राजनीतिक दर्शन का आधार :-
तिलक ने राजनीति विचार दिए हैं परंतु उन्हें हम विचार को की परंपरागत श्रेणियों आदर्शवादी विचारों या यथार्थवादी विचारकों में नहीं रख सकते हैं | तिलक ने संपूर्ण समाज को कोई पूर्ण चित्र प्रस्तुत नहीं किया है| उनके जीवन का मूल उद्देश्य ब्रिटिश शासन की समाप्ति था और इसी की प्राप्ति के लिए उन्होंने सतत प्रयास किया, जिसके परिणाम स्वरूप स्वराज्य विक्रम योग दो ढूंढे उत्प्रेरक सिद्धांत हमारे सामने आइए |
(1) तिलक पर वेदों की तत्व शास्त्रीय मान्यताओं का प्रभाव पड़ा वेदांत के अद्वैतवादी तत्व शास्त्र में प्रकृति अधिकारों राज धारणा निहित है चूंकि परमात्मा ही परमसत है और सभी मनुष्य उसके अंश हैं अत : उनमें वही स्वतंत्र अध्यात्मिक शक्ति निवास करती है
(2) तिलहर के विचारों पर पाश्चात्य स्वतंत्रता की धारणा वे आत्म निर्णय के सिद्धांतों का भी प्रभाव पड़ा | उन्होंने मिल की राष्ट्र की अवधारणा स्वीकार की |
* स्वराज्य :-
स्वराज्य चुकी उदेश्यपूर्ण है उद्देश्य चेतनता वस्तुत स्वराज्य- चेतनता का भाग है | यदि मनुष्य का जीवन उद्देश्य हीन होता है तो जीवन की प्रक्रिया को चलाने के लिए विचारधारा की जरूरत पड़ती है
* सनातन धर्म की भूमिका :-
(1) सनातन धर्म, लिंग, जाति भेद की उपेक्षा कर स्त्री- पुरुष को सम्मान स्वतंत्रता की गारंटी देता है
(2) सनातन धर्म वर्ण संगठन और आत्मा के निवास के लिए कर्म सिद्धांत प्रदान करता है
(3) सनातन मूल्य व्यवस्था मनुष्य के जीवन का लक्ष्य मोक्ष मानती है वह धर्म को उसका आदर्श अर्थात धर्म आचरण के नियम बताता है
तिलक सनातन धर्म की वर्ण व्यवस्था की आलोचना को अस्वीकार करते हुए कहते हैं कि इसकी सबसे बड़ी शक्ति इसमें निहित है कि इसने समाज को कर्तव्यों का केंद्र बना दिया है इस वर्ण व्यवस्था का जीवन आध्यात्मिक है यह कहा जाता है कि वर्ण व्यवस्था में नीम वर्ण में उत्पन्न व्यक्ति का स्थान सतत रूप से दास का है
* राष्ट्र राष्ट्रवाद तथा पुनरुत्थान वाद :-
एक स्थान पर रहने वाले सामान्य जीवन शैली को अपनाए व्यक्तियों का समूह ही राष्ट्र है राष्ट्र स्वयं अमूर्त मूल्य हैं भारत में रहने वाले लोगों की धार्मिकता ने हिंदुत्व को राष्ट्र की चरित्र विशेषता बनाई है राष्ट्रवाद या राष्ट्रीयता यदि एक मनोवैज्ञानिक व आध्यात्मिक प्रत्यय है तो उसके वस्तु का तत्वों के रूप में आधार भी होते हैं तिलक के राष्ट्रीयता संबंधी विचार पुनरुत्थान वादी थे
(1) गणपति उत्सव :-
गणपति उत्सव महाराष्ट्र का एक परंपरागत धार्मिक उत्सव है जिसका सार्वजनिकीकरण तिलक द्वारा किया गया |
(2) शिवाजी उस्तव :-
तिलक को शिवाजी की समाधि के समाधि के जीणोद्वार की प्रेरणा यूरो वासियों से ही प्राप्त हुई थी | इस भाव को उन्होंने शिवाजी के माध्यम से सामने लाने का प्रयास किया |
* उग्र राष्ट्रवाद के आधार :-
भारत में अंग्रेजी शासन की एक के बाद एक दमनकारी नीतियों ने उग्र राष्ट्रीयता को बढ़ावा दिया विशेष कारण लॉर्ड कर्जन की उग्र साम्राज्यवादी नीतियों ने इसका प्रभाव तिलक पर भी पड़ा सर्वप्रथम उन्होंने केसरी में 21 सरकार की नई शिक्षा नीति की आलोचना करी वे बताया कि यह कैसे राष्ट्र के विकास में बाधक है | इसी बात की और विस्तार से बताते हुए उन्होंने कहा कि 22 अंग्रेज सरकार स्कूलों में महाविद्यालयों पर अपने कठोर नियंत्रण के द्वारा की दासता को स्थाई बनाना चाहते हैं बंगाल विभाजन का एकमात्र उद्देश्य बढ़ती राष्ट्रीयता की भावना को संप्रदाय भावना के विकास के द्वारा दबाना था | अत : तिलक ने इसके खिलाफ आंदोलन प्रारंभ किया जिसमें अरविंद सुरेंद्रनाथ बनर्जी पाल आद नेताओं ने भी अपना नेतृत्व प्रदान किया |
1890-1904 के मध्य तिलक विभिन्न कारणों से सक्रिय राजनीति में नहीं रहे पर बंगविभाजन के विरुद्ध आंदोलन में उन्हें यह अवसर प्राप्त हुआ और उन्होंने एक नई राष्ट्रीय दल की स्थापना की
आंदोलन को स्वराज्यआंदोलन में बदलने का प्रयास किया | इस आंदोलन में तिलक ने 4 तरीके अपनाएं :-
(1) स्वदेशी
(2) बहिष्कार
(3) राष्ट्रीय शिक्षा
(4) निष्क्रिय प्रतिरोध
तिलक स्वदेशी आंदोलन के द्वारा आम जनता को राजनीतिक व आर्थिक कार्यवाही में शामिल करने का प्रयास किया इस आंदोलन के द्वारा आम जनता में जुलूस हड़ताल धरना सार्वजनिक सभाओं द्वारा हलचल उत्पन्न करने की कोशिश की जिसे जनता में स्वचेतना का विकास हो तिलक ने भारत में राष्ट्रवाद की नींव रखी तिलक तत्कालीन ऐतिहासिक स्थिति में परिवर्तन चाहते थे तिलक के प्रमुख क्रांतिकारी श्याम जी वर्मा विनायक दामोदर सावरकर से परिचित थे परंतु क्रांतिकारियों को जानना व उनके कार्यों में दिलचस्पी रखना एक बात है वे क्रांतिकारियों को आतंकवादी कार्यों के लिए प्रेरणा देना दूसरी बात है तिलक ने कभी किसी को ऐसी प्रेरणा नहीं दी थी
डॉ पी एम खान खोजें ने 1953 व 54 मैं केसरी में प्रकाशित अपने लेखों में यह बताया कि तिलहर क्रांतिकारी युवकों के गुरु व शिक्षक थे
प्रजातंत्र सरकार का स्वरूप ही नहीं जीवन की शैली भी है प्रजातंत्र के मनुष्य की व्यक्ति के रूप में स्वतंत्रता और उसकी चेतना की प्रतिष्ठा दो मान्य मूल्य हैं तिलक की रुचि सरकार के उस रूप में जो धर्म के शासन को जीवन के तरीके के रूप में लागू कर सकें |
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