* व्यवस्थापिका का इतिहास :-
व्यवस्थापिकाओ के जन्म और विकास का इतिहास साक्षी है कि इंग्लैंड में पार्लियामेंट, फ्रांस, स्टेटस, स्पेन मे कोर्टेस एवं जापान में डॉयट कि वहां के राजाओं ने केवल धन प्राप्ति के लिए ही जन्म दिया था इस प्रकार गेटिंल के शब्दों में विधि निर्माण प्रारंभिक काल में व्यवस्थापिका का प्रमुख कार्य नहीं था कानून तो ईश्वरीय माने जाते थे राजा ईश्वर का अंश के कारण कानूनों का स्त्रोत माना जाता था प्रारंभ में व्यवस्थापिका ओं के सदस्य राजा के प्रतिनिधि होते थे और उसी की कृपा पर निर्भर रहते थे पसंद का अपना व्यक्तित्व स्थान गौरव शक्ति सम्मान जैसी कोई बात नहीं थी इसका कार्य राजा द्वारा निर्धारित नीतियों को क्रियाविन्त करने के लिए धन की स्वीकृति देना मात्र था हां संसाधन के सदस्य जनता द्वारा यह निर्वाचित होने के साथ जनता के प्रति उत्तरदाई भी होते हैं और यही आज के प्रजातंत्र की आधारशिला है |
• सरकार के अंगों को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है
( 1 ) व्यवस्थापिका
( 2 ) कार्यपालिका
( 3 ) न्यायपालिका
* प्रजातंत्र का अर्थ :-
प्रजातंत्र का अर्थ होता है जनता का, जनता के लिए, और जनता के द्वारा शासन |
* व्यवस्थापिका का स्वरूप :-
प्रजातंत्र की विचारधारा के जन्म एवं विकास के साथ-साथ व्यवस्थापिका के स्वरूप संगठन एवं कार्यों का भी प्रजातंत्र करण होता गया आज प्रजातंत्र की यह अनिवार्य शर्त हो गई है कि देश के शासन में जहां तक संभव हो सभी का भाग हो किंतु सदस्यों की संख्या इतनी अधिक भी नहीं होनी चाहिए कि वे एक ही स्थान पर एक साथ मिलकर विचार विमर्श और आवश्यक एवं उचित निर्णय ने कर सकें व्यवस्थापिका उनका संगठन सभी देशों में एक सा नहीं होता है परंतु फिर भी कुछ आधारभूत सिद्धांत ऐसे भी हैं जो सर्वत्र पाए जाते हैं जैसे जनता का प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व तथा प्रतिनिधियों का जनता के प्रति उत्तरदायित्व | कि राज्य में एक ही सदन होना चाहिए द्वितीय सदन व्यर्थ समझा जाता है |
•बेंजामिन फ्रेंकलिन का कहना :- एक व्यवस्थापिका जो दो विभागों में विभाजित है एक ऐसी गाड़ी के समान है जिसे एक घोड़ा आगे तथा एक घोड़ा पीछे से विपरीत दिशा में खींचे रहा हो |
* व्यवस्थापिका के कार्य:-
राज्य का जन्म और विकास समाज में अराजकता के अंत करने एवं व्यवस्था की स्थापना करने की आवश्यकता के परिणाम स्वरूप हुआ है राज्य का यह महत्वपूर्ण आधारभूत कार्य आधुनिक युग में प्रतिनिधि सदन अर्थात व्यवस्थापिका कानून निर्माण कर पूरा करती है व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित कानूनों के आधार पर ही कार्यपालिका एवं न्यायपालिका अपना उत्तरदायित्व पूरा कर पाती है व्यवस्थापिका के कारण इनके अन्य कार्य भी होते हैं एक निरकुंश राजतंत्र अथवा तानाशाही शासन व्यवस्था में इनका कार्य एक परामर्शदात्री निकाय तक ही सीमित रह जाता है |
• फाइनल के अनुसार :-
फाइनल के अनुसार सदन के तीन कार्य :- कानून निर्माण, कार्यपालिका का नियंत्रण, और नीति का निर्माण |
( 1 ) विधायी कार्य :-
प्रजातंत्र में व्यवस्थापिका के जन निर्वाचित सदस्य राष्ट्र की इच्छा को प्रकाशित एवं प्रदर्शित करते हैं इच्छाओं की यह अभिव्यक्ति विधि निर्माण के द्वारा साकार स्वरूप धारण करती है इस विधि निर्माण के कार्य में व्यवस्थापिका द्वारा संगठित विभिन्न समितियां अपनी विशेष जानकारी योग्यताएं एवं दक्षता के कारण उसे सहायता देती रहती है और विधि निर्माण के कार्य भाई एवं जटिलता को कम कर देती है लोक कल्याणकारी राज्य में जनहित के लिए प्रत्येक क्षेत्र में नित नई कानूनों का निर्माण करना व्यवस्थापिका का परम कर्तव्य हो गया है |
( 2 )विमर्शात्मक कार्य :-
अरस्तु ने तो सरकार के विधि निर्माण कार्य विभाग को विचार-विमर्श कारी अंग ही माना था व्यवस्थापिका के सभी सदस्यों को विचार प्रकट करने का अधिकार एवं अवसर प्राप्त रहता है
पार्लियामेंट:- पार्लियामेंट शब्द का फारसी शब्द में अर्थ होता है विचार करने वाली संस्था |
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