* रूचि ( Interest ) :-
रूचि किसी वस्तु , व्यक्ति या प्रक्रिया की ओर आकर्षित होने , उसे पसन्द करने तथा उसकी ओर ध्यान आकर्षित करने की प्रवृत्ति हैं । रूचि का सम्बन्ध मनो - शारीरिक कारणों से होता है । अतः रूचि पर वंशानुक्रम व वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता हैं इसलिए रूचि जन्मजात व अर्जित होती हैं ।
रूचि सीखने - सिखाने की प्रक्रिया को संचालित करने वाली केन्द्रीय शक्ति है । हमारे सभी प्रयत्नों का लक्ष्य विद्यार्थियों में सीखने की रूचि को विकसित करना होता है । रूचि बच्चों को केवल सीखने में ही सहायता प्रदान नहीं करती बल्कि उनके दृष्टिकोणों , उनकी प्रवृत्तियों तथा अन्य व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं के निर्माण में भी सहायक होती है ।
* रूचियों की प्रकृति और विशेषताएं : ( Nature and Characteristics of Interests ) :-
1 . हमारी रूचियां हमारी आवश्यकताओं , इच्छाओं तथा लक्ष्यों से बहुत ज्यादा सम्बन्धित होती ।
2 . रूचि एक अभिप्रेरक शक्ति है जो व्यक्ति को ज्ञानात्मक , भावात्मक व क्रियात्मक व्यवहार की ओर अग्रसर करती है ।
3 . रूचि और ध्यान का आपस में गहरा सम्बन्ध है । रूचि ' ध्यान ' की माँ है । हम उन चीजों की ओर ध्यान देते हैं जिनमें हमारी रूचि होती है ।
4 . रूचियां जन्मजात व अर्जित होती हैं ।
5 . अपनी रूचि के अनुसार कार्य करना हमेशा संतुष्टि प्रदान करता है । इससे व्यक्ति को अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है ।
6 . रूचि से ' सीखने ' में आने वाली असामान्य रूकावटों को दूर करने में सहायता मिलती है |
7. रूचियां स्थिर और स्थायी नहीं होती । परिपक्वता , शिक्षा तथा अन्य आन्तरिक एवं बाह्य तत्वों के कारण परिवर्तन भी होते हैं ।
* शिक्षा में रूचि का महत्त्व ( Interest and implications in Education ) :-
जो विषय बालक की रूचि के अनुसार नहीं हैं , बालक की निष्पत्ति उस विषय में कभी भी ऊँची नहीं रह सकती हैं । अतः बालकों में रूचि जागृत करने के लिए शिक्षक निम्न उपायों का प्रयोग कर सकता हैं ।
1 . विषय को छात्रों के जीवन से सम्बन्धित कर दिया जाये , क्योंकि जो पदार्थ हमारे जीवन से सम्बन्धित होता हैं , हम उसमें अधिक रूचि लेते हैं ।
2 . पढ़ाने से पूर्व विषय - वस्तु की उपयोगिता तथा महत्त्व छात्रों को स्पष्ट कर देना चाहिये ।
3 . विभिन्न प्रकार की सहायक सामग्री छोटे बालकों में अधिक रूचि जाग्रत कर देती हैं |
4 . ' ज्ञात से अज्ञात की ओर ' “ सरल से जटिल की ओर ' आदि सूत्रों का उपयोग करने से बालक की रूचि सरलता से जागृत हो जाती हैं ।
5 . शिक्षण के उद्देश्य बालक को स्पष्ट होने चाहिए ।
6 . ' करके सीखना ' रूचि जागृत करने का उत्तम साधन है |
7 . स्थायी भाव एवं आदर्श भी बच्चों की को निर्देशित एवं नियंत्रित करते हैं । इसलिए बच्चों में रूचियों को उत्पन्न करने तथा उन्हें स्थिर रखने के लिए इनका समचित प्रयोग करना चाहिए ।
8 . सीखने की स्थितियों या सीखने के उचित वातावरण का निर्माण करना चाहिए ।
9 . अध्यापक का व्यक्तित्व तथा उसकी दृढता विद्यार्थियों में रूचि उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । एक अच्छा अध्यापक अपने सदव्यवहार तथा अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं द्वारा अपने बच्चों को इतना प्रेरित कर सकता है कि वे शिक्षण में खो जाएँ ।
10. शिक्षण - विधियों में विविधता लानी चाहिये ।
11. छोटे बालकों को खेल - खेल में शिक्षा देनी चाहिये ।
रूचि किसी वस्तु , व्यक्ति या प्रक्रिया की ओर आकर्षित होने , उसे पसन्द करने तथा उसकी ओर ध्यान आकर्षित करने की प्रवृत्ति हैं । रूचि का सम्बन्ध मनो - शारीरिक कारणों से होता है । अतः रूचि पर वंशानुक्रम व वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता हैं इसलिए रूचि जन्मजात व अर्जित होती हैं ।
रूचि सीखने - सिखाने की प्रक्रिया को संचालित करने वाली केन्द्रीय शक्ति है । हमारे सभी प्रयत्नों का लक्ष्य विद्यार्थियों में सीखने की रूचि को विकसित करना होता है । रूचि बच्चों को केवल सीखने में ही सहायता प्रदान नहीं करती बल्कि उनके दृष्टिकोणों , उनकी प्रवृत्तियों तथा अन्य व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं के निर्माण में भी सहायक होती है ।
* रूचियों की प्रकृति और विशेषताएं : ( Nature and Characteristics of Interests ) :-
1 . हमारी रूचियां हमारी आवश्यकताओं , इच्छाओं तथा लक्ष्यों से बहुत ज्यादा सम्बन्धित होती ।
2 . रूचि एक अभिप्रेरक शक्ति है जो व्यक्ति को ज्ञानात्मक , भावात्मक व क्रियात्मक व्यवहार की ओर अग्रसर करती है ।
3 . रूचि और ध्यान का आपस में गहरा सम्बन्ध है । रूचि ' ध्यान ' की माँ है । हम उन चीजों की ओर ध्यान देते हैं जिनमें हमारी रूचि होती है ।
4 . रूचियां जन्मजात व अर्जित होती हैं ।
5 . अपनी रूचि के अनुसार कार्य करना हमेशा संतुष्टि प्रदान करता है । इससे व्यक्ति को अपने लक्ष्यों और उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायता मिलती है ।
6 . रूचि से ' सीखने ' में आने वाली असामान्य रूकावटों को दूर करने में सहायता मिलती है |
7. रूचियां स्थिर और स्थायी नहीं होती । परिपक्वता , शिक्षा तथा अन्य आन्तरिक एवं बाह्य तत्वों के कारण परिवर्तन भी होते हैं ।
* शिक्षा में रूचि का महत्त्व ( Interest and implications in Education ) :-
जो विषय बालक की रूचि के अनुसार नहीं हैं , बालक की निष्पत्ति उस विषय में कभी भी ऊँची नहीं रह सकती हैं । अतः बालकों में रूचि जागृत करने के लिए शिक्षक निम्न उपायों का प्रयोग कर सकता हैं ।
1 . विषय को छात्रों के जीवन से सम्बन्धित कर दिया जाये , क्योंकि जो पदार्थ हमारे जीवन से सम्बन्धित होता हैं , हम उसमें अधिक रूचि लेते हैं ।
2 . पढ़ाने से पूर्व विषय - वस्तु की उपयोगिता तथा महत्त्व छात्रों को स्पष्ट कर देना चाहिये ।
3 . विभिन्न प्रकार की सहायक सामग्री छोटे बालकों में अधिक रूचि जाग्रत कर देती हैं |
4 . ' ज्ञात से अज्ञात की ओर ' “ सरल से जटिल की ओर ' आदि सूत्रों का उपयोग करने से बालक की रूचि सरलता से जागृत हो जाती हैं ।
5 . शिक्षण के उद्देश्य बालक को स्पष्ट होने चाहिए ।
6 . ' करके सीखना ' रूचि जागृत करने का उत्तम साधन है |
7 . स्थायी भाव एवं आदर्श भी बच्चों की को निर्देशित एवं नियंत्रित करते हैं । इसलिए बच्चों में रूचियों को उत्पन्न करने तथा उन्हें स्थिर रखने के लिए इनका समचित प्रयोग करना चाहिए ।
8 . सीखने की स्थितियों या सीखने के उचित वातावरण का निर्माण करना चाहिए ।
9 . अध्यापक का व्यक्तित्व तथा उसकी दृढता विद्यार्थियों में रूचि उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । एक अच्छा अध्यापक अपने सदव्यवहार तथा अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं द्वारा अपने बच्चों को इतना प्रेरित कर सकता है कि वे शिक्षण में खो जाएँ ।
10. शिक्षण - विधियों में विविधता लानी चाहिये ।
11. छोटे बालकों को खेल - खेल में शिक्षा देनी चाहिये ।
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