लाला लाजपत राय का परिचय :-
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 मैं पंजाब के एक गांव धूडिके , (जिला फरीदकोट ) मैं हुआ था | इनके पिता मुंशी राधाकिशन ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी | उर्दू तथा फारसी पढ़ाने की अहर्ताएं उनके पास थी तथा वे नार्मल स्कूल दिल्ली में पढ़ाते थे | माता श्रीमती गुलाब देवी असीम धैर्यवान , बुद्धिमान वे त्यागमयी महिला थी | लालाजी की प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में जहां उनके पिता तब शिक्षक थे हुई | तत्पश्चात वे जगरांव, रोपड़, लाहौर, लुधियाना वे दिल्ली में अध्ययनरत रहे | शुरू से ही वे अत्यंत प्रतिभावान विद्यार्थी थे |
1800 मैं कलकत्ता विश्वविद्यालय तथा गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर दोनों की एटेंस परीक्षाएं उन्होंने पास की | 1880 मैं गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में प्रवेश देते ही उन्होंने कानून की कक्षाएं भी ज्वाइन कर ली | घर में आर्थिक तंगी थी |
1875 मैं आर्य समाज की स्थापना हो चुकी थी | स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों ने उन्हें अंदर तक प्रभावित किया | एक सामाजिक_ सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी | अंधविश्वास, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जारी जंग में लालाजी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया 1882 मैं उन्होंने आर्य समाज की सदस्यता ग्रहण कर ली थी | यहीं उन्होंने इतिहास राजनीति शास्त्र तथा संसार भर के स्वतंत्रतासेनानियों की जीवननियो का अध्ययन किया |
1888 मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में वह हिसार - डेलीगेट के रूप में भाग लेने गए थे |
* लालाजी की प्रमुख समस्याएं:-
लालाजी अछूत समस्या, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, आदि सामाजिक समस्याओं तथा अन्य सामयिक समस्याओं जैसे कि अकाल समस्या अशिक्षा, गरीबी आदि के प्रति जनमानस की चेतना करने में निराकरण करने हेतु संगठन का कार्य करते रहें | 1912 मैं उन्होंने कांग्रेस में पुन: प्रवेश किया | वे 1914 मैं पंजाब प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस डेलिगेशन मैं इंग्लैंड गए |
* `जलियांवाला बाग´व खिलाफत आंदोलन :-
जुलाई 1920 मैं लाला जी को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन ( कोलकाता) हेतु अध्यक्ष चुना गया | इस अधिवेशन का उद्देश्य पंजाब में हुए अत्याचार` जलियांवाला बाग´व खिलाफत आंदोलन से उपजी स्थितियोंका निवारण वे नीति निर्धारण तथा 1916 के संवैधानिक सुधारों के प्रति कांग्रेस के (एटीट्यूड ) की जानकारी देश में ब्रिटिश सरकार को देना था |
* असहयोग आंदोलन के दौरान :-
लालाजी असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण 3 दिसंबर गिरफ्तार कर लिए गए तथा 18 महीने की जेल हुई | अगस्त 1923 मैं वे छोड़े गए | लालाजी यद्यपि सामाजिक राजनीति कार्य करते रहें तथा 1923 के पंजाब चुनाव का संचालन किया वे स्वयं चुनाव में खड़े नहीं हुए लालाजी ने पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ स्वतंत्र कांग्रेस पार्टी की स्थापना की |
* लाला लाजपत राय के राजनीतिक विचार :-
लालजी के राष्ट्रवाद संबंधित विचारों के उद्गम का हम अध्ययन करें तो एक तरफ तो वे संसार भर में राष्ट्रवाद की नई उठी लहर से प्रभावित थे वहीं दूसरी ओर भारत की अपनी राष्ट्रीय आवश्यकता, तत्कालीन भारतीय नीति तथा ब्रिटिश सरकार की ढुलमुल नीति के कारण उनके विचार एक विशेष प्रकार से समन्वित हुए |
यूरोपिय राष्ट्रीयता तथा राष्ट्रीय वादी आंदोलन का विस्तृत अध्ययन उन्होंने किया था सर 1914 से 1920 के बीज के वर्षों में इंग्लैंड तथा अमेरिका में वह रहे | एशिया के देशों में लाला जी का मानना था कि एक मौलिक एकता स्थापित हो सकती है विशेषकर भारत चीन व जापान में क्योंकि इन देशों में पाश्चात्य प्रभाव सीमित है और इतना नहीं है कि एकत्व की संभावना को नष्ट कर सके |
भारतीय राष्ट्रवाद के विषय में इनकी मान्यता थी कि वे उभरकर मजबूत हो रहा है उसे पोषण मिल रहा है ब्रिटिश सरकार में ब्रिटिश कोट्र्स द्वारा राष्ट्र वादियों को दी जा रही मौत की सजा ओ काले पानी तथा अन्य अत्याचारों द्वारा लालाजी ने हमेशा राष्ट्र से ऊपर माना | फास्ट अपने लिए राज्य का निर्माण कर सकता है उसे बदल सकता है इसलिए राष्ट्रीय सर्वोच्च है| भारत के नागरिकों को राष्ट्रभक्त_ देशभक्त होना ही चाहिए ऐसा उनका मानना था |
(1) लाला जी एवं उग्रवाद :-
भारत राष्ट्रीय कांग्रेस में लाला जी का उदय एक (मॉडरेट ) के रूप में हुआ था | लेकिन सन 1900 के अंतिम वर्षों में उनके विचारों में उग्र राष्ट्रीयता की शुरुआत हो चुकी थी |
सन 1905 मैं इन्होंने कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में (पैसिव रेजिस्टेंस ) की प्रथम पहल पुरजोर वकालत की | लाला जी को ब्रिटिश सरकार ने न्याय में कोई विश्वास नहीं रहा था और ना ही मॉडरेट ´´ कांग्रेस की प्रार्थना वे पेटीशन की नीतियों में | ब्रिटिश सरकार लाला जी को अपने दयालु और उदार सरकार की स्वयं बनाई छवि से दिग्भ्रमित करने में सफल नहीं रही | लालाजी ने देश को समझाया कि हम भारतीयों को ताकतवर राष्ट्रीय वादी होना चाहिए इसके लिए भारतीय नागरिक में देशभक्ति एकत्व गैर - संप्रदाय वादी तथा भारतीयता का संभागी होना जरूरी है | आत्मसम्मान _ आत्म निर्भरता जरूरी है |
असहयोग आंदोलन कार्यक्रम में उनकी पूर्ण आस्था थी | उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन (1920-21 ) मैं भाग लिया था तथा इन्हें जेल हुई थी अहिंसात्मक आंदोलन को व्यवहार के संदर्भ में नीति के तौर पर उचित मानते थे इसलिए जब गांधीजी ने चोरी चोरा कांड के बाद आंदोलन वापस ले लिया तो लाला जी ने उनकी आलोचना की | राजनीति में भावुकता को वह बिल्कुल गैर जरूरी समझते थे |
(2) विषयक धारणा :-
ब्रिटिश सरकार के जनतंत्र को लालाजी भौतिकवादी मानते थे और पसंद नहीं करते थे मैं यह भी मानते थे कि यद्यपि भारत में इस तरह का जनतंत्र का भी नहीं रहा लेकिन जनतंत्र की अवधारणा रही ही नहीं हो ऐसा भी नहीं था जनतंत्र का तात्पर्य उनके अनुसार जनता द्वारा अपनी इच्छा अपने विचार प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्त कर सकना था और यह भारत में पाया जाता था यही प्रमुख होना चाहिए तंत्र ( मशीनरी ) नहीं |
ब्रिटिश सरकार ने भारत को जैसी अपनी जमीदारी ही समझ रखा था और ऐसा ही उनका व्यवहार था ऐसा लालाजी मानते थे यह गैर प्रजातांत्रिक व्यवहार तो था ही, ओपनिवेशिक मनोवृति भी थी तत्कालीन नेताओं की नरम दल और गरम दल दोनों की ही कथनी और करनी में अंतर वे पाते थे कड़ी आलोचना करते थे |
लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 मैं पंजाब के एक गांव धूडिके , (जिला फरीदकोट ) मैं हुआ था | इनके पिता मुंशी राधाकिशन ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी | उर्दू तथा फारसी पढ़ाने की अहर्ताएं उनके पास थी तथा वे नार्मल स्कूल दिल्ली में पढ़ाते थे | माता श्रीमती गुलाब देवी असीम धैर्यवान , बुद्धिमान वे त्यागमयी महिला थी | लालाजी की प्राथमिक शिक्षा गांव के स्कूल में जहां उनके पिता तब शिक्षक थे हुई | तत्पश्चात वे जगरांव, रोपड़, लाहौर, लुधियाना वे दिल्ली में अध्ययनरत रहे | शुरू से ही वे अत्यंत प्रतिभावान विद्यार्थी थे |
1800 मैं कलकत्ता विश्वविद्यालय तथा गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर दोनों की एटेंस परीक्षाएं उन्होंने पास की | 1880 मैं गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में प्रवेश देते ही उन्होंने कानून की कक्षाएं भी ज्वाइन कर ली | घर में आर्थिक तंगी थी |
1875 मैं आर्य समाज की स्थापना हो चुकी थी | स्वामी दयानंद सरस्वती के विचारों ने उन्हें अंदर तक प्रभावित किया | एक सामाजिक_ सांस्कृतिक क्रांति की शुरुआत हो चुकी थी | अंधविश्वास, रूढ़ियों तथा सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध जारी जंग में लालाजी ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया 1882 मैं उन्होंने आर्य समाज की सदस्यता ग्रहण कर ली थी | यहीं उन्होंने इतिहास राजनीति शास्त्र तथा संसार भर के स्वतंत्रतासेनानियों की जीवननियो का अध्ययन किया |
1888 मैं भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में वह हिसार - डेलीगेट के रूप में भाग लेने गए थे |
* लालाजी की प्रमुख समस्याएं:-
लालाजी अछूत समस्या, बाल विवाह, पर्दा प्रथा, आदि सामाजिक समस्याओं तथा अन्य सामयिक समस्याओं जैसे कि अकाल समस्या अशिक्षा, गरीबी आदि के प्रति जनमानस की चेतना करने में निराकरण करने हेतु संगठन का कार्य करते रहें | 1912 मैं उन्होंने कांग्रेस में पुन: प्रवेश किया | वे 1914 मैं पंजाब प्रतिनिधि के रूप में कांग्रेस डेलिगेशन मैं इंग्लैंड गए |
* `जलियांवाला बाग´व खिलाफत आंदोलन :-
जुलाई 1920 मैं लाला जी को कांग्रेस के विशेष अधिवेशन ( कोलकाता) हेतु अध्यक्ष चुना गया | इस अधिवेशन का उद्देश्य पंजाब में हुए अत्याचार` जलियांवाला बाग´व खिलाफत आंदोलन से उपजी स्थितियोंका निवारण वे नीति निर्धारण तथा 1916 के संवैधानिक सुधारों के प्रति कांग्रेस के (एटीट्यूड ) की जानकारी देश में ब्रिटिश सरकार को देना था |
* असहयोग आंदोलन के दौरान :-
लालाजी असहयोग आंदोलन में भाग लेने के कारण 3 दिसंबर गिरफ्तार कर लिए गए तथा 18 महीने की जेल हुई | अगस्त 1923 मैं वे छोड़े गए | लालाजी यद्यपि सामाजिक राजनीति कार्य करते रहें तथा 1923 के पंजाब चुनाव का संचालन किया वे स्वयं चुनाव में खड़े नहीं हुए लालाजी ने पंडित मदन मोहन मालवीय के साथ स्वतंत्र कांग्रेस पार्टी की स्थापना की |
* लाला लाजपत राय के राजनीतिक विचार :-
लालजी के राष्ट्रवाद संबंधित विचारों के उद्गम का हम अध्ययन करें तो एक तरफ तो वे संसार भर में राष्ट्रवाद की नई उठी लहर से प्रभावित थे वहीं दूसरी ओर भारत की अपनी राष्ट्रीय आवश्यकता, तत्कालीन भारतीय नीति तथा ब्रिटिश सरकार की ढुलमुल नीति के कारण उनके विचार एक विशेष प्रकार से समन्वित हुए |
यूरोपिय राष्ट्रीयता तथा राष्ट्रीय वादी आंदोलन का विस्तृत अध्ययन उन्होंने किया था सर 1914 से 1920 के बीज के वर्षों में इंग्लैंड तथा अमेरिका में वह रहे | एशिया के देशों में लाला जी का मानना था कि एक मौलिक एकता स्थापित हो सकती है विशेषकर भारत चीन व जापान में क्योंकि इन देशों में पाश्चात्य प्रभाव सीमित है और इतना नहीं है कि एकत्व की संभावना को नष्ट कर सके |
भारतीय राष्ट्रवाद के विषय में इनकी मान्यता थी कि वे उभरकर मजबूत हो रहा है उसे पोषण मिल रहा है ब्रिटिश सरकार में ब्रिटिश कोट्र्स द्वारा राष्ट्र वादियों को दी जा रही मौत की सजा ओ काले पानी तथा अन्य अत्याचारों द्वारा लालाजी ने हमेशा राष्ट्र से ऊपर माना | फास्ट अपने लिए राज्य का निर्माण कर सकता है उसे बदल सकता है इसलिए राष्ट्रीय सर्वोच्च है| भारत के नागरिकों को राष्ट्रभक्त_ देशभक्त होना ही चाहिए ऐसा उनका मानना था |
(1) लाला जी एवं उग्रवाद :-
भारत राष्ट्रीय कांग्रेस में लाला जी का उदय एक (मॉडरेट ) के रूप में हुआ था | लेकिन सन 1900 के अंतिम वर्षों में उनके विचारों में उग्र राष्ट्रीयता की शुरुआत हो चुकी थी |
सन 1905 मैं इन्होंने कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में (पैसिव रेजिस्टेंस ) की प्रथम पहल पुरजोर वकालत की | लाला जी को ब्रिटिश सरकार ने न्याय में कोई विश्वास नहीं रहा था और ना ही मॉडरेट ´´ कांग्रेस की प्रार्थना वे पेटीशन की नीतियों में | ब्रिटिश सरकार लाला जी को अपने दयालु और उदार सरकार की स्वयं बनाई छवि से दिग्भ्रमित करने में सफल नहीं रही | लालाजी ने देश को समझाया कि हम भारतीयों को ताकतवर राष्ट्रीय वादी होना चाहिए इसके लिए भारतीय नागरिक में देशभक्ति एकत्व गैर - संप्रदाय वादी तथा भारतीयता का संभागी होना जरूरी है | आत्मसम्मान _ आत्म निर्भरता जरूरी है |
असहयोग आंदोलन कार्यक्रम में उनकी पूर्ण आस्था थी | उन्होंने गांधीजी के असहयोग आंदोलन (1920-21 ) मैं भाग लिया था तथा इन्हें जेल हुई थी अहिंसात्मक आंदोलन को व्यवहार के संदर्भ में नीति के तौर पर उचित मानते थे इसलिए जब गांधीजी ने चोरी चोरा कांड के बाद आंदोलन वापस ले लिया तो लाला जी ने उनकी आलोचना की | राजनीति में भावुकता को वह बिल्कुल गैर जरूरी समझते थे |
(2) विषयक धारणा :-
ब्रिटिश सरकार के जनतंत्र को लालाजी भौतिकवादी मानते थे और पसंद नहीं करते थे मैं यह भी मानते थे कि यद्यपि भारत में इस तरह का जनतंत्र का भी नहीं रहा लेकिन जनतंत्र की अवधारणा रही ही नहीं हो ऐसा भी नहीं था जनतंत्र का तात्पर्य उनके अनुसार जनता द्वारा अपनी इच्छा अपने विचार प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्त कर सकना था और यह भारत में पाया जाता था यही प्रमुख होना चाहिए तंत्र ( मशीनरी ) नहीं |
ब्रिटिश सरकार ने भारत को जैसी अपनी जमीदारी ही समझ रखा था और ऐसा ही उनका व्यवहार था ऐसा लालाजी मानते थे यह गैर प्रजातांत्रिक व्यवहार तो था ही, ओपनिवेशिक मनोवृति भी थी तत्कालीन नेताओं की नरम दल और गरम दल दोनों की ही कथनी और करनी में अंतर वे पाते थे कड़ी आलोचना करते थे |
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