*महादेव गोविंद रानाडे :-
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ये कथित मितवादी जिसमें गोपाल कृष्ण गोखले, दादा भाई नौरोजी तथा रमेश चंद्र दत्त सम्मिलित किया जाता है- ने भारत के आर्थिक पिछड़ेपन तथा सामाजिक जड़ता के कारण अपनी अपनी शैली में पता लगाए थे तथा इन सब की दृष्टि एक बौद्धिक समाज शास्त्री की दृष्टि तो कहीं ही जा सकती है महाराष्ट्र के इस सुकरात की रचनाओं तथा कार्यकलापों के अध्ययन से यह पता चला है
भारत मे उपनिवेशवादी शासन के कारण जो आर्थिक सर्वनाश हुआ उसका कांग्रेसियों ने गहरा विरोध किया था तथा इनको नेतृत्व महादेव गोविंद रानाडे तथा दादा भाई नौरोजी ने प्रदान किया था अत : भारत एक औद्योगिक देश बनने की बजाय कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश बन कर रह गया |
* आर्थिक विचार धाराओं का प्रसंग :-
(1) ब्रिटिश विचारधारा:-
इस विचारधारा के प्रमुख प्रतिपादकों में सर्वश्री एडम स्मिथ रिकार्डो मातिस तथा जे. एस. मिल का नाम गिनाया जा सकता है यह लोग एक तरफ तो मांग तथा वितरण के नियम बना रहे थे |
(2) जर्मन विचारधारा :-
जर्मन अर्थशास्त्री ब्रिटिश विचारधारा से ( आर्थिक मानव की )सहमत नहीं थे इन विचारधारकों मे श्योलर तथा रोशन के नाम उल्लेखनीय रहे हैं |
* रानाडे का राजनीतिक दर्शन *
(1) मराठा शक्ति का सामाजिक विश्लेषण :-
रानाडे ने इससे भ्रांति का संशोधन किया कि अंग्रेजी हुकूमत ने सीधे मुगल हुकूमत से सत्ता हत्या की थी उनकी संपत्ति यह थी की मुगल हुकूमत के आखिरी वर्षों में मराठा शक्ति का उदय हुआ और वह मुगल सल्तनतों को मनमाने तरीकों से नचा सकने की स्थिति में आई थी |
(2) महाराष्ट्र : राष्ट्रीय पुनर्जागरण का अग्रदूत :-
महादेव गोविंद रानाडे ने एक संशोधन यह भी सुलझाया था कि महाराष्ट्र में राष्ट्रीय पुनर्जागरण´ 16 वीं तथा 17वीं शताब्दी में ही घटित हो रहा था तथा इसका नेतृत्व ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ, तुकाराम तथा रामदेव जैसे सुधारवादी संत कर रहे थे
* हिंदू समाज का शुद्धीकरण *
महादेव गोविन्द रानाडे स्वामी दयानंद सरस्वती के संपर्क में आए थे तथा उन्होंने कृण्वन्तों औभ आर्पम के सिद्धांतों को अपना समर्थन प्रदान कर दिया था वैसे उनकी मान्यता यही भी थी कि सामाजिक प्रगति के अभाव में राजनीवैसे उनकी मान्यता यही भी थी कि सामाजिक प्रगति के अभाव में राजनीतिक मुक्ति पाना असंभव है | वैसे वे बुद्धि पर आधारित एक सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए व्यग्र थे | अत : वे राजनीतिक विशेष अधिकार तथा अधिकार पाने की भाषा का इस्तेमाल करते थे |
* भारत में गरीबी :-
अगर रानाडे का प्रथम लक्ष्य सामाजिक सुधार लाना था | वहां उनका दूसरा लक्ष्य भारत का आर्थिक विकास भी करना था जिसे की न्याय तथा क्षमता पर आधारित एक भारतीय सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की जा सके | इस प्रकार लोकतांत्रिक समाजवादी दर्शन की जड़े उनके लेखन में तलाशी जा सकती है महादेव गोविन्द रानाडे ने भारत की गरीबी के लिए ब्रिटिश लोगों की पूरी तरह दोषी नहीं माना यद्यपि उन्होंने ब्रिटिश व्यवस्था की भारत में की गई नकल की भरपूर आलोचना प्रस्तुत की |
* उन्होंने भारत में गरीबी के मूल कारण निम्नलिखित बताइए :-
(1) कर्ज देने वाले साहूकारों द्वारा की जाने वाली व्यापक लूटपाट कर्ज व्यवस्था का विश्लेषण किया जाए |
(2) पूंजी का अभाव
(3) भूमि पर सरकार की मोनोपोली से सर्वनाश का रास्ता खुल गया है |
* औद्योगिकरण की महत्ता :-
यह प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया जाए कि वे मात्र उद्योगों पक्षपाती नहीं थे अपितु वे तो उद्योग व्यापार तथा काशी के सामने वित्त विकास के थे कृषि तंत्र में सुधार हेतु उनके दो सुझाव थे -
• भू_ राजस्व व्यवस्था में तत्काल सुधार किया जाए |
• ग्रामीण सहकारी व्यवस्था का पुनर्गठन किया जाए
एक भविष्य दृष्टा की तरह से उन्होंने भारत में औद्योगीकरण नहीं होने के निम्नांकित कारण ढूंढ निकाले और यह थे |
• हमारी अर्थव्यवस्था कृषि पर आश्रित है |
• लोह तथा अन्य बड़े उद्योगों में लगाने के लिए पूंजी का अभाव है |
• कहीं-कहीं पर जनसंख्या का बोझ काफी बढ़ गया है
• हमारे देश में पूंजी लगाने में तथा उद्योग स्थापित करने हेतु जोखिम उठाने वाले लोगों का अभाव दृष्टिगोचर होता है
• परंपरागत सामाजिक व्यवस्था भी इसमें गतिरोध पैदा करती है
अत : महादेव गोविंद रानाडे इस स्थिति में राज्य द्वारा पहले लिए जाने के पक्षपाती थे तथा मोटे तौर पर उन्होंने दो सुझाव सुलझाय |
(1) प्रथम तो राज्य ब्याज की सस्ती दर पर पूंजी उपलब्ध कराइए |
(2) तथा वे जमा बैंकों तथा वित्त बैंकों के जरिए व्यापक औद्योगिकरण का वातावरण तैयार करें |
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के ये कथित मितवादी जिसमें गोपाल कृष्ण गोखले, दादा भाई नौरोजी तथा रमेश चंद्र दत्त सम्मिलित किया जाता है- ने भारत के आर्थिक पिछड़ेपन तथा सामाजिक जड़ता के कारण अपनी अपनी शैली में पता लगाए थे तथा इन सब की दृष्टि एक बौद्धिक समाज शास्त्री की दृष्टि तो कहीं ही जा सकती है महाराष्ट्र के इस सुकरात की रचनाओं तथा कार्यकलापों के अध्ययन से यह पता चला है
भारत मे उपनिवेशवादी शासन के कारण जो आर्थिक सर्वनाश हुआ उसका कांग्रेसियों ने गहरा विरोध किया था तथा इनको नेतृत्व महादेव गोविंद रानाडे तथा दादा भाई नौरोजी ने प्रदान किया था अत : भारत एक औद्योगिक देश बनने की बजाय कृषि आधारित अर्थव्यवस्था वाला देश बन कर रह गया |
* आर्थिक विचार धाराओं का प्रसंग :-
(1) ब्रिटिश विचारधारा:-
इस विचारधारा के प्रमुख प्रतिपादकों में सर्वश्री एडम स्मिथ रिकार्डो मातिस तथा जे. एस. मिल का नाम गिनाया जा सकता है यह लोग एक तरफ तो मांग तथा वितरण के नियम बना रहे थे |
(2) जर्मन विचारधारा :-
जर्मन अर्थशास्त्री ब्रिटिश विचारधारा से ( आर्थिक मानव की )सहमत नहीं थे इन विचारधारकों मे श्योलर तथा रोशन के नाम उल्लेखनीय रहे हैं |
* रानाडे का राजनीतिक दर्शन *
(1) मराठा शक्ति का सामाजिक विश्लेषण :-
रानाडे ने इससे भ्रांति का संशोधन किया कि अंग्रेजी हुकूमत ने सीधे मुगल हुकूमत से सत्ता हत्या की थी उनकी संपत्ति यह थी की मुगल हुकूमत के आखिरी वर्षों में मराठा शक्ति का उदय हुआ और वह मुगल सल्तनतों को मनमाने तरीकों से नचा सकने की स्थिति में आई थी |
(2) महाराष्ट्र : राष्ट्रीय पुनर्जागरण का अग्रदूत :-
महादेव गोविंद रानाडे ने एक संशोधन यह भी सुलझाया था कि महाराष्ट्र में राष्ट्रीय पुनर्जागरण´ 16 वीं तथा 17वीं शताब्दी में ही घटित हो रहा था तथा इसका नेतृत्व ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ, तुकाराम तथा रामदेव जैसे सुधारवादी संत कर रहे थे
* हिंदू समाज का शुद्धीकरण *
महादेव गोविन्द रानाडे स्वामी दयानंद सरस्वती के संपर्क में आए थे तथा उन्होंने कृण्वन्तों औभ आर्पम के सिद्धांतों को अपना समर्थन प्रदान कर दिया था वैसे उनकी मान्यता यही भी थी कि सामाजिक प्रगति के अभाव में राजनीवैसे उनकी मान्यता यही भी थी कि सामाजिक प्रगति के अभाव में राजनीतिक मुक्ति पाना असंभव है | वैसे वे बुद्धि पर आधारित एक सामाजिक व्यवस्था की स्थापना के लिए व्यग्र थे | अत : वे राजनीतिक विशेष अधिकार तथा अधिकार पाने की भाषा का इस्तेमाल करते थे |
* भारत में गरीबी :-
अगर रानाडे का प्रथम लक्ष्य सामाजिक सुधार लाना था | वहां उनका दूसरा लक्ष्य भारत का आर्थिक विकास भी करना था जिसे की न्याय तथा क्षमता पर आधारित एक भारतीय सामाजिक व्यवस्था की स्थापना की जा सके | इस प्रकार लोकतांत्रिक समाजवादी दर्शन की जड़े उनके लेखन में तलाशी जा सकती है महादेव गोविन्द रानाडे ने भारत की गरीबी के लिए ब्रिटिश लोगों की पूरी तरह दोषी नहीं माना यद्यपि उन्होंने ब्रिटिश व्यवस्था की भारत में की गई नकल की भरपूर आलोचना प्रस्तुत की |
* उन्होंने भारत में गरीबी के मूल कारण निम्नलिखित बताइए :-
(1) कर्ज देने वाले साहूकारों द्वारा की जाने वाली व्यापक लूटपाट कर्ज व्यवस्था का विश्लेषण किया जाए |
(2) पूंजी का अभाव
(3) भूमि पर सरकार की मोनोपोली से सर्वनाश का रास्ता खुल गया है |
* औद्योगिकरण की महत्ता :-
यह प्रारंभ में ही स्पष्ट कर दिया जाए कि वे मात्र उद्योगों पक्षपाती नहीं थे अपितु वे तो उद्योग व्यापार तथा काशी के सामने वित्त विकास के थे कृषि तंत्र में सुधार हेतु उनके दो सुझाव थे -
• भू_ राजस्व व्यवस्था में तत्काल सुधार किया जाए |
• ग्रामीण सहकारी व्यवस्था का पुनर्गठन किया जाए
एक भविष्य दृष्टा की तरह से उन्होंने भारत में औद्योगीकरण नहीं होने के निम्नांकित कारण ढूंढ निकाले और यह थे |
• हमारी अर्थव्यवस्था कृषि पर आश्रित है |
• लोह तथा अन्य बड़े उद्योगों में लगाने के लिए पूंजी का अभाव है |
• कहीं-कहीं पर जनसंख्या का बोझ काफी बढ़ गया है
• हमारे देश में पूंजी लगाने में तथा उद्योग स्थापित करने हेतु जोखिम उठाने वाले लोगों का अभाव दृष्टिगोचर होता है
• परंपरागत सामाजिक व्यवस्था भी इसमें गतिरोध पैदा करती है
अत : महादेव गोविंद रानाडे इस स्थिति में राज्य द्वारा पहले लिए जाने के पक्षपाती थे तथा मोटे तौर पर उन्होंने दो सुझाव सुलझाय |
(1) प्रथम तो राज्य ब्याज की सस्ती दर पर पूंजी उपलब्ध कराइए |
(2) तथा वे जमा बैंकों तथा वित्त बैंकों के जरिए व्यापक औद्योगिकरण का वातावरण तैयार करें |
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