* संवेगात्मक बुद्धि ( Emotional Intelligence ):-
संवेगात्मक बुद्धि का सम्बन्ध जीवन के विविध पक्षों से होता हैं । संवेगात्मक बुद्धि को समझने के लिए मूल शब्द संवेगों को जानना अत्यधिक आवश्यक हैं । संवेग शब्द अंग्रेजी के ' Emotion ' शब्द का हिन्दी रूपान्तर हैं । Emotion शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के से हुई हैं जिसका अर्थ होता है उत्तेजित करना । अर्थात संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा को प्रदर्शित करते हैं ।
शिक्षा व मानव जीवन में संवेगों को । विशेष महत्त्व हैं । संवेग प्रकृति - प्रदत्त जन्मजात ' शक्तियाँ हैं जो प्रार्थी को अपने अस्तित्व व उसकी सफलता हेत पर्यावरण से समायोजन । करने में सहायक होते हैं ।
* संवेग दो प्रकार के होते हैं -
1 . सुखद संवेग
2 . दुःखद संवेग |
जब व्यक्ति सुखद संवेगों का अनुभव करता है तो उसमें शक्ति का स्त्रोत फूट पड़ता हैं । उदाहरण के लिए यदि किशोर को आनन्द व प्रसन्नता की अनुभूति होती हैं तो वह अन्य कार्यों की ओर अधिक कुशलता से ध्यान देता है |
यदि किशोर दुखद संवेग जैसे क्रोध , भय , ईर्ष्या , चिन्ता आदि का अनुभव करता है तो उसके कार्य निरूद्देश्य तथा जल्दबाजी के होंगें । इसका उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास पर भी प्रभाव पड़ता हैं । कभी - कभी दुखद संवेग के कारण किशोरों में खिन्नता इतनी अधिक बढ़
जाती है कि वे जीवन से निराश हो जाते हैं और आत्महत्या तक करने की सोचने लगते हैं ।
प्रत्येक किशोर को अपनी संवेगात्मक बुद्धि के बारे में जानना चाहिये कि वह कब - कब , किन - किन परिस्थितियों में उत्तेजित हो जाता है या अपना संतुलन बनाये रखता हैं । संवेगात्मक बुद्धिलब्धि जानने के लिए किशोर " मैं क्या हूँ " ? मैं क्या बन गया हूँ ? " " क्या में पहले जैसा व्यक्ति हूँ ? " " मुझे क्या करना चाहिये ? " " मेरा व्यवहार कैसा होना चाहिए ? " " क्यों में उत्तेजित हो जाता हूँ ? " " क्यों में संयम नही रख पाता ? " आदि प्रश्नों के उत्तर खोजता हैं । जब इन प्रश्नों के उत्तर संतोषप्रद नहीं मिल पाते है । तो असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं । और यदि इन प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर मिल जाते हैं तो सांवेगिक प्रतिक्रयाओं में संतुलन , आत्मविश्वास एवं वातावरण के साथ सामंजस्यता बनी रहती हैं ।
* संवेगात्मक बुद्धि का सम्प्रत्यय :-
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अगर अवलोकन किया जाये तो संवेगात्मक बुद्धि शब्द का प्रयोग 1990 में सबसे पहले दो अमेरिकन प्रोफेसर डॉ . जॉन मेयर तथा डॉ . पीटर सेलोवे द्वारा किया गया । परन्तु जिस रूप में आज संवेगात्मक बुद्धि की सर्वत्र चर्चा की जाती है , उसे इस तरह से लोकप्रिय बनाने का श्रेय केवल मात्र एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन को ही जाता हैं ।
उन्होंने 1995 में प्रकाशित अपनी पुस्तक " संवेगात्मक बुद्धि : बुद्धिलब्धि से अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों " ( Emotional Intelligence : Why it can matter more than I . Q . ) के माध्यम से इसे विशेष चर्चा का विषय बनाया हैं ।
संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य उसकी उस समग्र क्षमता से हैं , जो उसे उसकी विचार प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अपने तथा दूसरे के संवेगों को जानने , समझने तथा उनका सर्वोत्तम प्रबन्धन करने में उसकी सहायता करती हैं । किस में कितनी संवेगात्मक बुद्धि हैं उसके इस स्तर की माप के लिए जिस इकाई विशेष का प्रयोग करते हैं उसे संवेगात्मक लब्धि ( E . Q . ) कहा जाता हैं । यह उसी प्रकार की इकाई है जैसा ( I . Q . ) के रूप में सामान्य बुद्धि स्तर की माप के लिए काम में लाया जाता हैं ।
संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता एवं महत्व अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डॉ . डेनियल गोलमैन की बहुचर्चित पुस्तकों ने संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया हैं -
1. कोई व्यक्ति जीवन में कितना सफल हो सकता हैं । इसकी भविष्यवाणी E . Q द्वारा की जा सकती हैं ।
2 . संवेगात्मक बुद्धि व्यक्ति के जीवन को सुखमय व शांतिप्पद बनाने में सहायक होती हैं ।
3. विद्यार्थी जीवन में मिलने वाली सफलता के पीछे बहुत कुछ सीमा तक विद्यार्थी विशेष की संवेगात्मक बुद्धि का ही हाथ रहता हैं ।
4 . कामकाज की दुनिया में निपुणता तथा दक्षता प्राप्त कराने में भी संवेगात्मक बुद्धि का ही अधिक योगदान पाया जाता हैं ।
5 . किसी की संवेगात्मक बुद्धि उसे जीवन के - विभिन्न क्षेत्रों में वांछित सफलता प्राप्त करने में मदद करती हैं ।
6 . अपने तथा दूसरों के संवेगों के प्रति सहा जानकारी एवं सजगता , संवेगा । प्रबन्ध दूसरों के साथ सम्बन्धों को ठीक प्रकार से बनाये रखने जैसे कार्यो में संवेगात्मक बुद्धि ही सबसे अधिक सहायक होती हैं ।
संवेगात्मक बुद्धि का सम्बन्ध जीवन के विविध पक्षों से होता हैं । संवेगात्मक बुद्धि को समझने के लिए मूल शब्द संवेगों को जानना अत्यधिक आवश्यक हैं । संवेग शब्द अंग्रेजी के ' Emotion ' शब्द का हिन्दी रूपान्तर हैं । Emotion शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के से हुई हैं जिसका अर्थ होता है उत्तेजित करना । अर्थात संवेग व्यक्ति की उत्तेजित दशा को प्रदर्शित करते हैं ।
शिक्षा व मानव जीवन में संवेगों को । विशेष महत्त्व हैं । संवेग प्रकृति - प्रदत्त जन्मजात ' शक्तियाँ हैं जो प्रार्थी को अपने अस्तित्व व उसकी सफलता हेत पर्यावरण से समायोजन । करने में सहायक होते हैं ।
* संवेग दो प्रकार के होते हैं -
1 . सुखद संवेग
2 . दुःखद संवेग |
जब व्यक्ति सुखद संवेगों का अनुभव करता है तो उसमें शक्ति का स्त्रोत फूट पड़ता हैं । उदाहरण के लिए यदि किशोर को आनन्द व प्रसन्नता की अनुभूति होती हैं तो वह अन्य कार्यों की ओर अधिक कुशलता से ध्यान देता है |
यदि किशोर दुखद संवेग जैसे क्रोध , भय , ईर्ष्या , चिन्ता आदि का अनुभव करता है तो उसके कार्य निरूद्देश्य तथा जल्दबाजी के होंगें । इसका उसके शारीरिक एवं मानसिक विकास पर भी प्रभाव पड़ता हैं । कभी - कभी दुखद संवेग के कारण किशोरों में खिन्नता इतनी अधिक बढ़
जाती है कि वे जीवन से निराश हो जाते हैं और आत्महत्या तक करने की सोचने लगते हैं ।
प्रत्येक किशोर को अपनी संवेगात्मक बुद्धि के बारे में जानना चाहिये कि वह कब - कब , किन - किन परिस्थितियों में उत्तेजित हो जाता है या अपना संतुलन बनाये रखता हैं । संवेगात्मक बुद्धिलब्धि जानने के लिए किशोर " मैं क्या हूँ " ? मैं क्या बन गया हूँ ? " " क्या में पहले जैसा व्यक्ति हूँ ? " " मुझे क्या करना चाहिये ? " " मेरा व्यवहार कैसा होना चाहिए ? " " क्यों में उत्तेजित हो जाता हूँ ? " " क्यों में संयम नही रख पाता ? " आदि प्रश्नों के उत्तर खोजता हैं । जब इन प्रश्नों के उत्तर संतोषप्रद नहीं मिल पाते है । तो असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं । और यदि इन प्रश्नों के संतोषप्रद उत्तर मिल जाते हैं तो सांवेगिक प्रतिक्रयाओं में संतुलन , आत्मविश्वास एवं वातावरण के साथ सामंजस्यता बनी रहती हैं ।
* संवेगात्मक बुद्धि का सम्प्रत्यय :-
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अगर अवलोकन किया जाये तो संवेगात्मक बुद्धि शब्द का प्रयोग 1990 में सबसे पहले दो अमेरिकन प्रोफेसर डॉ . जॉन मेयर तथा डॉ . पीटर सेलोवे द्वारा किया गया । परन्तु जिस रूप में आज संवेगात्मक बुद्धि की सर्वत्र चर्चा की जाती है , उसे इस तरह से लोकप्रिय बनाने का श्रेय केवल मात्र एक अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डेनियल गोलमैन को ही जाता हैं ।
उन्होंने 1995 में प्रकाशित अपनी पुस्तक " संवेगात्मक बुद्धि : बुद्धिलब्धि से अधिक महत्त्वपूर्ण क्यों " ( Emotional Intelligence : Why it can matter more than I . Q . ) के माध्यम से इसे विशेष चर्चा का विषय बनाया हैं ।
संवेगात्मक बुद्धि से तात्पर्य उसकी उस समग्र क्षमता से हैं , जो उसे उसकी विचार प्रक्रिया का उपयोग करते हुए अपने तथा दूसरे के संवेगों को जानने , समझने तथा उनका सर्वोत्तम प्रबन्धन करने में उसकी सहायता करती हैं । किस में कितनी संवेगात्मक बुद्धि हैं उसके इस स्तर की माप के लिए जिस इकाई विशेष का प्रयोग करते हैं उसे संवेगात्मक लब्धि ( E . Q . ) कहा जाता हैं । यह उसी प्रकार की इकाई है जैसा ( I . Q . ) के रूप में सामान्य बुद्धि स्तर की माप के लिए काम में लाया जाता हैं ।
संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता एवं महत्व अमेरिकन मनोवैज्ञानिक डॉ . डेनियल गोलमैन की बहुचर्चित पुस्तकों ने संवेगात्मक बुद्धि की उपयोगिता को बहुत ही प्रभावशाली तरीके से प्रस्तुत किया हैं -
1. कोई व्यक्ति जीवन में कितना सफल हो सकता हैं । इसकी भविष्यवाणी E . Q द्वारा की जा सकती हैं ।
2 . संवेगात्मक बुद्धि व्यक्ति के जीवन को सुखमय व शांतिप्पद बनाने में सहायक होती हैं ।
3. विद्यार्थी जीवन में मिलने वाली सफलता के पीछे बहुत कुछ सीमा तक विद्यार्थी विशेष की संवेगात्मक बुद्धि का ही हाथ रहता हैं ।
4 . कामकाज की दुनिया में निपुणता तथा दक्षता प्राप्त कराने में भी संवेगात्मक बुद्धि का ही अधिक योगदान पाया जाता हैं ।
5 . किसी की संवेगात्मक बुद्धि उसे जीवन के - विभिन्न क्षेत्रों में वांछित सफलता प्राप्त करने में मदद करती हैं ।
6 . अपने तथा दूसरों के संवेगों के प्रति सहा जानकारी एवं सजगता , संवेगा । प्रबन्ध दूसरों के साथ सम्बन्धों को ठीक प्रकार से बनाये रखने जैसे कार्यो में संवेगात्मक बुद्धि ही सबसे अधिक सहायक होती हैं ।
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