Wednesday, October 23, 2019

विचारधारा का अर्थ, प्रकृति एवं विचारधारा में राष्ट्रीय हित अभिवृदि का साधन

* विचारधारा का अर्थ :-

                                                     व्यापक में विचारधारा का परीक्षण करें तो कई तरह के विचार इस में सम्मिलित किए जा सकते हैं उदारवाद, परंपरावाद,  प्रजातंत्र, नाजीवाद, फासीवाद,  साम्यवाद,  राष्ट्रवाद,  अंतरराष्ट्रीय वाद,  गांधीवाद,  समाजवाद,  पूंजीवाद,  उदारवाद, इस्लाम,  हिंदू वाद,इत्यादि | इस प्रकार विचारधाराओं की एक लंबी सूची बनाई जा सकती है सिद्धांत कार विचारधारा की उस परिभाषा से साहित्य सहमत हो जिनमें इन सभी को सम्मिलित किया जा सके तथापि इस तथय इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह सभी एक समानता  रखते हैं `` ये सभी विचारों के समूह है जो वास्तविकता या  सचाई के सभी अथवा आंशिक  पक्षों की व्याख्या करते हैं


  * विचारधारा एवं राष्ट्रीय हित :-

                                                                       विचारधारा एवं राष्ट्रीय हित के मध्य घनिष्ट संबंध होता है और वे एक दूसरे से प्रभावित होते हैं राष्ट्रीय हित अथवा  उद्देश्यों की पूर्ति हेतु एक विशेष विचारधारा का सहारा लिया जा सकता है तो विचारधारा ही तो वे उद्देश्यों के निर्धारण का कार्य भी कर सकती है जिस पर का राष्ट्र राज्य के अस्तित्व में सुरक्षा को प्राथमिक हित स्वीकार आ जाना और इस हित की पूर्ति हेतु अन्य भौतिक हितों का त्याग स्वयं राष्ट्रवाद की विचारधारा से अभी प्रेरित माना जा सकता है तीन कारणों से विचारधारा के राष्ट्रीय हित से संबंधों की यह समस्या उत्पन्न होती है विचारधारा की प्रकृति विभिन्न कारकों के प्रभाव को ने माप  पाने की समस्या जिसमें विचारधारा यह प्रभाव है

* विचारधारा राष्ट्रीय हित अभिवृद्वि  का साधन :-

                                                                                                            निर्णय निर्माण में जनता के बढ़ते हुए प्रभाव के कारण भी विचारधारा का महत्व बड़ा 1914 के पूर्व अंतरराष्ट्रीय संबंधों का निर्धारण मात्र उन लोगों की चिंता थी जो व्यवसायिक तौर पर इससे जुड़े हुए थे, प्रजातांत्रिक देशों में भी विदेश नीति को दलीय राजनीति के विषय क्षेत्र के बाहर  माना गया किंतु धीरे-धीरे वैदिक संबंध जनता को बहुत समीप से प्रभावित करने लगे पुरानी तानाशाही या सर्वाधिक व्यवस्थाओं से भिन्न आधुनिक सर्वाधिकार वादी व्यवस्थाएं जनमत को अपनी नीतियों के अनुरूप बनाने की चेष्टा करती है
 यह कार्य दो प्रकार से किया जाता है एक तो जनता तक उन सूचनाओं को पहुंचाने से रोक दें जो शासक समझते हैं कि उनके स्वयं के हितों के विरुद्ध है और दूसरे जनता को उन विचारों में सिद्धांतों को अनुयायी  बनाने का प्रयास किया जाता है

* विचारधारा समर्थन प्राप्ति का आधार :-

                                                                                    
                                                                                           सरकार के विदेश नीति संबंधी निर्णयों के लिए जनता का समर्थन तथा समस्त राष्ट्रीय ऊर्जा व संसाधन जुटाने हेतु आवश्यक है कि राजनेता जैविक  आवश्यकता में विचारों के संदर्भ में जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा अथवा ने  नैतिक संदर्भ- जैसे न्याय मेह बात रखे | यही एक मार्ग है जिसके माध्यम से राष्ट्र की जनता से उत्साह व त्याग की आशा की जा सकती हैं और जिसके बिना कोई विदेश नीति अपने उद्देश्यों की पूर्ति हेतु सशक्त्तता से संचालित नहीं हो सकती | 
 विचारधारा व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक व बौद्धिक आवश्यकता की पूर्ति करती है क्योंकि वह जानना चाहते हैं कि उसका गंतव्य  क्या है और जो वे कर रहा है वह उचित है अथवा अनुचित है वर्तमान में उद्देश्य पूर्ति हेतु देश की जनता का समर्थन ही नहीं वरन विश्व के अन्य देशों की जनता का समर्थन भी अवश्य के एक देश की विदेश नीति के संचरण से प्रभावित देश की जनता समस्त प्रक्रिया को उत्सुकता से देखती है 

* विचारधारा वास्तविक उद्देश्यों को छुपाने का आवरण :-

                                                                                                                    राजनीति की यह विशेषता है कि यह वास्तविक स्वरूप शक्ति के संघर्ष को प्रकट रूप से नहीं दर्शाती बल्कि शक्ति के तात्कालिक लक्ष्य को नैतिक जैविक एवं वैधानिक शब्दावली में जो चित्य सिद्ध करते हुए स्पष्ट करती है तात्पर्य यह कि किसी भी नीति की असली प्रकृति व वास्तविक उद्देश्य वैचारिक औचित्य  सिद्धि एवं विवेचना में छुपा रहा है विचारधारा शक्ति संघर्ष को मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक आधार पर सभी कट बनाती है सभी राष्ट्रीय स्वयं के शक्ति उद्देश्यों को उचित और दूसरे राष्ट्रों की समान शक्तियों आकांक्षाओं का विरोध करते हैं

 यता पूर्व स्थिति के विपरीत साम्राज्यवादी उदेश्य रखने वाली नीतियों का औचित्य सिद्ध करना स देवी अनिवार्य होता है क्योंकि स्थापित व्यवस्था व शक्ति संतुलन को बदलने की आवश्यकता को भी स्थापित करना होता है इस अक्षता को वैचारिक आधार प्रदान करना होता है अंतरराष्ट्रीय कानून प्रकृति के आधार पर यात्रा पूर्व स्थिति का ही समर्थन करता है साम्राज्यवादी उद्देश्यों के लिए गत्यात्मक विचारों की आवश्यकता होती है अतः साम्राज्यवादी नीतियां अंतरराष्ट्रीय कानून के स्थान पर प्राकृतिक कानून और उसे संबंधित विचारों को आधार बनाती है
 

 कभी-कभी एक ही विचारधारा का प्रयोग किया था पूर्व स्थिति बनाए रखने और साम्राज्यवादी इरादे रखने वाले दोनों ही प्रकार के राज्य करते हैं शक्ति संतुलन का वैचारिक हथियार के रूप में उपयोग दोनों ही प्रकार के पक्षों ने किया राष्ट्रीय आतम निर्णय की विचारधारा ने भी इसी तरह का आवरण प्रदान किया राष्ट्रीय आतम निर्णय के सिद्धांत की जिस प्रकार ढेरों विलन स्नेह विवेचना कि उसे मध्य एवं पूर्वी यूरोप की राष्ट्रीयता ओं की विदेशी आधिपत्य से स्वतंत्रता को उचित ठहराया

* विचारधारा सहयोग का आधार :-
                                               विचारधारा समाज में मूल्यों एवं दृष्टिकोण ओं की समानता उत्पन्न करती है मूल्यों वेद दृष्टिकोण की समानता ने सिर्फ समाज में राज्य के अंदर एकता व सहयोग को प्रशस्त  करती हैं वरन समाज विचारधारा विभिन्न राष्ट्र राज्यों के मध्य भी सहयोग के अवसरों में वृद्धि करती है
 जहां विचारधारा सर्वे ते ही तो विदेशों में एकता स्थापित करती है वहीं विशेष हितों की सिद्धि के लिए विचारधारा का उपयोगी से प्रयास किया जा सकता है सर्दियों की दासता से मुक्ति के पश्चात नवस्वतंत्र  देशों का उद्देश्य राजनीतिक स्वतंत्रता कोअक्षुण्ण रखना और आर्थिक विकास करना था |

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