Monday, October 28, 2019

सर्जनशीलता क्या है सर्जनशीलता की विशेषताएं एवं सर्जनशीलता का विकास

* सृजनशीलता ( Creativity) :-
                                               सृजनशील व्यक्ति समाज की अमूल्य निधि होते हैं । प्रत्येक प्राणी में अपने प्रजातीय गुणों के अनुसार सृजनशीलता होती है । सभी मनुष्यों में सृजनशीलता समान मात्रा में नहीं होती है । कुछ व्यक्ति अधिक सृजनशील होते हैं तथा कुछ कम । इन्हीं सृजनशील व्यक्तियों पर ' राष्ट्रपतथा समाज की उन्नति तथा उत्थान निर्भर करता है ।

                    सर्जनात्मक शब्द अंग्रेजी भाषा के क्रियेटीविटी ( Creativity ) का हिन्दी - रूपांतर है । क्रियेट एक क्रिया है जिसका अर्थ है - ' बनाना ' या ' मौलिक रूप से उत्पन्न होना । जब हम क्रियेटिया शब्द का प्रयोग करते है तो इसका अर्थ योग्यता शक्ति से लगाया जाता है । इस प्रकार क्रियेटिव शब्द से तात्पर्य ' निर्माण करने की योग्यता है ।

स्टेन के अनुसार -
                       " जब किसी कार्य का परिणाम उत्तम हो जो किसी निश्चित समय पर उपयोगी स्वीकृत किया जाय , यह सृजनात्मक कार्य कहलाता है ।

वार्टलेट के अनुसार -
                             " सर्जनात्मकता का अभिप्राय प्रचलित मनुष्य विचारों से परे सोचना , नवीन अनुभवों को प्राप्त करने के लिए तत्पर रहना , वर्तमान को भविष्य से जोड़ना है । "

                उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि जो बालक लीक या मुख्य धारा से हटकर सोचता है , अनुभव करता है तथा वर्तमान के संबंधों को भावी संबंधों से जोड़ने की योग्यता रखता है उसे ही सृजनशीलता कहते हैं


* सृजनशीलता की विशेषताएं ( Features of Creativity )  :-
                            1. मौलिकता एवं नवीजता

2. जिज्ञासा

3.  ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति

4. साहसी

5 . दृढ़ निश्चयी

6 . संवेदनशील

7 .विचारों में व्यावहारिकता

8. कल्पनाशीलता

9.  एकाग्रचित्तता

10 . दूरदर्शी

11 . परिहास तथा विनोदी प्रवृति

12. अपरम्परावादी

13 . भविष्यदृष्टा |


* सृजनात्मकता का विकास ( Development of Creativity ) :-
                          विभिन्न अध्ययनों से यह स्पष्ट हो जाता है कि सजनात्मकता का प्रारंभ बाल्यावस्था से हो जाता है और तीस वर्ष की अवस्था तक अपनी चरम सीमा पर पहुंच जाती है । तीस वर्ष के बाद सृजनशीलता या तो स्थिर रहती है या इसमें गिरावट आने लगती हैं । अरस्ते ( J . D . Arasteh ) ने स्पष्ट किया है कि बालक को अधिक नियंत्रण तथा अनुशसन में रखने से उसकी सृजनशीलता धीरे - धीरे लोप होने लगती है । प्रायः छात्रों में छात्राओं की तुलना में अधिक सृजनात्मकता होती है । यदि माता - पिता रूढ़िवादी होते है और बच्चों को अधिक संरक्षण में रखा जाता है तो उनकी सृजनात्मकता के विकास में बाधा आ जाती है ।
            बच्चों को अपनी इच्छानुसार स्वतंत्रतापूर्वक कार्य करने तथा उनके द्वारा उनकी जिज्ञासा को संतुष्ट करने पर ही उनकी सृजनात्मकता में विकास होता है ।


* शिक्षा में सर्जनशीलता का  महत्व :-
                                                  जो बालक पढ़ने में होशियार और दक्ष प्रमाणित नहीं हो पाते . वे खेलों के मैदान में अथवा संगीत आदि में अपना नाम तथा देश का नाम रोशन कर देते हैं । कोई भी सामान्य बुद्धि का व्यक्ति या बालक अपने विशिष्ट क्षेत्र में अपनी सृजनात्मकता का गुण दिखा सकता है । यदि सभी छात्रों को सृजनात्मकता के विकास हेत समुचित अवसर दिये जाये तो वे इस गुण के कारण अपनी रचनात्मक शक्ति का भी विकास कर सकेंगे । इस समय वे अपनी अन्य असफलताओं और कुण्ठाओं को भूल जायेंगे और अपने विशिष्ट क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका समाज को दे सकते हैं ।

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