Friday, October 25, 2019

सामाजिक कौशल क्या है सामाजिक कौशल के विभिन्न रूप

* सामाजिक कौशल ( Social Skills ) :-
                                                             जीवन कौशलों की शिक्षा में सामाजिक कौशलों की एक अहम् भूमिका हैं । सामाजिक कौशलों से युक्त प्राणी प्रजातात्रिक समाज में एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका का निर्वाह करता है ।

सामाजिक कौशल -
                             1 . सामाजिक भावना की परिपक्वता 2 नेतृत्व

3 . व्यावसायिक निष्बद्धता

4 . अन्त . वैयक्तिक सम्बन्ध

5 . सम्प्रेषण कौशल

6 . सजगता

7 . चिन्तन कौशल & समस्या समाधान कौशल आदि ।

1 . सामाजिक भावना की परिपक्वता ( Social Macturity ):-
                          सामाजिक भावना की परिपक्वता एक अच्छा शिक्षक बनने के लिए अत्यन्त आवश्यक गुण हैं । व्यक्ति समाज में उत्पन्न होता है |

                    बालक की प्रथम पाठशाला परिवार होती हैं , तत्पश्चात् वह विद्यालय के सम्पर्क में आता हैं । विद्यालय स्वंय में अनेक छोटे - छोटै समूहों से बना वृहद समूह है । विद्यालय के वातावरण का बालक के मस्तिष्क पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता हैं । जिन विद्यालयों का भौतिक एवं सामाजिक वातावरण अच्छा होता है वहां के बालकों का विकास उचित ढंग से होता है । बालक में विद्यालय के प्रति तनाव व आक्रोश नहीं होता ।

                      विद्यालय में सामूहिक खेलों के माध्यम से समूह की भावना को विकसित किया जाता हैं । विद्यालय में साहित्यिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से भी समूह की भावना को विकसित किया जा सकता है । बालकों को कार्य करने की पर्याप्त स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए ।

अध्यापक की भूमिका -
                                 अध्यापक को बच्चों के समक्ष अच्छे - अच्छे आदर्श प्रस्तुत करने चाहिए । सफल अध्यापक के लिए यह आवश्यक है कि अध्यापक को अपने समस्त क्रिया - कलापों को इस प्रकार व्यवस्थित करना चाहिए कि वह अपने छात्रों को समाज का एक जिम्मेदार , सक्रिय तथा लाभदायक सदस्य बना सकें । उसे स्वयं भी इन गुणों से युक्त व्यक्ति के रूप में अपने आपको प्रस्तुत करना चाहिए । जिन व्यक्तियों में सामाजिक रूप से परिपक्वता होती है , उनमें निम्न विशेषताएं पाई जाती हैं ।
                   1 . उच्च स्तर का सामाजिक व्यवहार

 2 . सामाजिक हित को अधिक महत्त्व देना

 3 . निष्पक्षता

 4 . गम्भीरता |


2. नेतृत्व ( Leadership ) :-
                                              किसी भी समाज में नेतृत्व का अधिक महत्व होता हैं क्योंकि यह नेतृत्व ही होता है जो समाज के विविध क्षेत्रों जैसे - सामाजिक , राजनीतिक , आर्थिक , शैक्षिक आदि में एक नवीन परिवर्तन लाता हैं । नेतृत्व , किसी प्रभावी व्यक्ति द्वारा ग्रहण किया जाता है जो अन्य प्राणियों की अपेक्षा शारीरिक और मानसिक विकास में अधिक उन्नत होता हैं । ऐसा व्यक्ति वर्ग के व्यक्तियों को निर्देश एवं आज्ञा देता है और अन्य व्यक्ति - उसका अनुसरण करते हैं ।

             कक्षा में अध्यापक का नेता के रूप में होना ( Teacher as a leader ) ' अध्यापक कक्षा का एक स्वीकृत नेता माना जाता है । उसके ज्ञान , योग्यता , बुद्धिमता आदि के अधिक विकसित होने से उसे नेता स्वीकार कर लिया जाता हैं । किन्तु बहुत से अध्यापक अपने दुर्बल व्यक्तित्व , शर्मीले स्वभाव होने के कारण अपना यह उपयोगी अधिकार छोड़ बैठते हैं । जो अध्यापक अपनी कक्षा में नेतृत्व खो बैठता है , वह कक्षा का सामना विश्वासपूर्वक और दृढ़ता से नहीं कर सकता । फलस्वरूप उसकी कक्षा में अनुशानहीनता फैलती हैं और शिक्षा का ध्येय भी समाप्त हो जाता है ।

3 - व्यावसायिक निष्बद्धता ( Professional Commitment ) :-
                               व्यावसायिक निष्वद्धता से तात्पर्य अध्यापकों की अध्यापन के प्रति कर्त्तव्य भावना से हैं । व्यावसायिक निष्बद्धता के मूल में जो बात है , वह यह है कि अपने व्यवसाय में वास्तविक रूचि रखने वाले शिक्षक कभी भी अपने शिक्षण कार्य से पूर्णतः सन्तुष्ट नहीं होते , वे निरन्तर सुधार में लगे रहते हैं |


4 - अन्तः वैयक्तिक सम्बन्ध ( Interpersonal Relations ) :-
                        अन्तः वैयक्तिक सम्बन्धों से तात्पर्य शिक्षक के समाज के सदस्यों , साथियों , तथा छात्रों के साथ सम्बन्धों से हैं । शिक्षक के सम्बन प्रजातांत्रिक , सहयोगी तथा सहानुभूतिपूर्ण होने चाहिए ।

               शिक्षक का मुख्य कर्त्तव्य अपने छात्रों का सर्वागीण विकास करना होता है । अतः उसका हर कार्य छात्रों के हित के दृष्टिकोण से होना चाहिए । उसके छात्र प्रगति करे , जीवन में सफलता प्राप्त करे यही शिक्षक के जीवन का येय हाता है तथा इसी से उसे सर्वाधिक संतोष प्राप्त होता हैं ।


5. सम्प्रेषण ( Communication ) :-
                                                          सम्प्रेषण अर्थात अपने विचारों को सहज भाव से अभिव्यक्त करना । यह एक ऐसी योग्यता है जिसके अभाव में प्रभावी शिक्षण आयोजित करना लगभग असंभव होता हैं । सफल सम्प्रेषण के लिए शिक्षक को हमेशा सरल , रोचक , स्पष्ट भाषा तथा छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए |

6 . सजगता ( Awareness ) :-
                                              सजगता से तात्पर्य शिक्षा से सम्बन्धित समस्त पहलुओं के प्रति जागरूकता से है । शिक्षक कक्षा में जहाँ एक नेता के रूप में कार्य करता है । वहीं समाज सुधारक तथा मार्ग - दर्शक के रूप में भी कार्य करता हैं । शिक्षक राष्ट्र - निर्माता तथा भावी पीढ़ी के व्यक्तित्व का निर्माता होता हैं । शिक्षा सम्बन्धी सभी नीतियाँ तथा कार्यक्रम उसी के माध्यम से क्रियान्वित किये जाते हैं । शिक्षक को अपने छात्रों के व्यक्तित्व का निर्माण करना होता हैं तथा उसे समाज के सांस्कृतिक उत्थान का महत्वपूर्ण दायित्व भी वहन करना होता हैं । इस प्रकार शिक्षक को बहुआयामी कार्य करने होते हैं ।

7 . चिन्तन ( Thinking ) :-
                                         मनुष्य के सामने कोई न कोई समस्या आती रहती है । ऐसी स्थिति में वह उस समस्या का समाधान करने के लिए उपाय के बारे में सोचने लगता है वे इस बात पर विचार करना आरंभ कर देता है कि समस्या का किस प्रकार समाधान किया जा सकता है इस प्रकार चिंतन प्रक्रिया आरंभ हो जाती है और समस्या का समाधान होते ही यह प्रक्रिया समाप्त हो जाती है |


8 . समस्या समाधान ( Problem Solving ) :-
                                                                कभी - कभी किसी निश्चित लक्ष्य पर पहुंचने से पहले बीच में कठिनाई आ जाती है जिससे उस कठिनाई को दूर करने की समस्या उत्पन्न हो जाती है । इस कठिनाई को दूर करके यदि हम अपने लक्ष्य पर पहुंच जाते हैं तो समस्या का समाधान हो जाता है ।
                   अतः समस्या समाधान का अर्थ - कठिनाईयों पर विजय प्राप्त  कर लक्ष्य को प्राप्त करना है |

2 comments:

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  2. आप और भी जान सकते हैं bhukamp kya hai इसकी पूरी जानकारी

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