Monday, October 28, 2019

मानव संज्ञान क्या है मानव संज्ञान की अवस्थाएं एवं पियाजे का शिक्षा में योगदान

* मानव संज्ञान ( Human Cognition ) :-
                                                               सामान्य अर्थ में उद्दीपक जगत की जानकारी ही संज्ञान हैं । संज्ञानात्मक क्षमता बाहय वातावरण में विचारपूर्वक , प्रभावपूर्ण ढंग से तथा सुविधा के साथ कार्य करने की क्षमता हैं । पियाजे ने मानव - व्यवहार के तीन पक्षो - संज्ञानात्मक पक्ष , भावात्मक पक्ष तथा क्रियात्मक पक्ष में से केवल संज्ञानात्मक पक्ष को प्रमुखता दी तथा ' संज्ञानवादी विकास सिद्धान्त ” का प्रतिपादन किया इसलिए जीन पियाने को विकासात्मक मनोविज्ञान का प्रर्वतक भी माना जाता है । तथा जेरोम एस . ब्रुनर को इसका समर्थक माना जाता हैं ।


             पियाजे ने मानव - विकास की प्रक्रिया में संज्ञानवादी विकास को आधार माना हैं । मानव का यह विकास शैशवावस्था से ही प्रारम्भ हो जाता है । यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती हैं ।


*  मानसिक संरचनाओं के निर्माण में पियाजे ने निम्न प्रक्रियाओं को अनिवार्य बतलाया हैं :-
                                                   1 . आत्मसाकरण या आत्मीकरण ( AS similation ) -
                                                       इस प्रक्रिया द्वारा बालक अपने पर्यावरण से प्राप्त अनुभवों व सूचनाओं को मानसिक संरचनाओं में ग्रहण करता हैं ।

2 . समंजन या समायोजन Iccomodation ) -
                                                                  इस प्रक्रिया में पर्यावरण से प्राप्त अनुभवों या अर्जित ज्ञान को पूर्व मानसिक संरचनाओं के साथ समायोजित किया जाता हैं । नहीं करने को कहेंगे ।

3 . सन्तुलनीकरण या अनुकूलन ( Adap tation ) -                                                                                 समंजन की प्रक्रिया संसार में सफल अनुकूलन व सन्तुलनीकरण करने में सहायक होती हैं ।

4. स्कीमा ( Schema ) -
                                      पियाजे के अनुसार " मानसिक संरचना की व्यवहारगत समानान्तर प्रक्रिया जीव विज्ञान में - " स्कीमा " कहलाती हैं । स्कीमा का अर्थ किसी उद्दीपक के प्रति व्यक्ति की विश्वसनीय अनुक्रिया है |


* मानव संज्ञान की अवस्थाएँ ( Stages of Human Cognition ) :-
                        1 . संवेदी पेशीय अवस्था ( Sensorimo tor Stage ) -
                       मानव विकास की प्रथम अवस्था को संवेदी पेशीय अवस्था इसलिए कहा जाता है क्योंकि बच्चा इस अवस्था में उद्दीपक जगत का ज्ञान केवल अपनी संवेदनाओं और शारीरिक क्रियाओं की सहायता से अर्जित करता हैं । यह अवस्था जन्म से लेकर 2 वर्ष तक रहती हैं । जब बच्चा पैदा होता है तो उसके अन्दर केवल सहज क्रियाओं को पाया जा सकता है । जिसे पियाजे ने सहज स्कीमा कहा है । इन सहज क्रियाओं और ज्ञानेन्द्रियों की सहायता से बच्चा वस्तुओं , ध्वनियों , स्पों , गन्धों आदि का अनुभव प्राप्त करता हैं ।

2 . पूर्व संक्रियात्मक अवस्था ( Pre - Op erational Stage ) -
               संज्ञान विकास की दूसरी अवस्था 2 से 7 वर्षों तक मानी जाती हैं । इस अवस्था में बालक स्वकेन्द्रित और स्वार्थी न रहकर दूसरों के सम्पर्क में ज्ञान अर्जित करता है । वह अब खेल , अनुकरण , चित्र - निर्माण और भाषा के माध्यम से वस्तुओं के सम्बन्ध में अपनी जानकारी पुष्ट करता हैं । किन्तु अभी वह कार्य - कारण सम्बन्ध अथवा तार्किक चिन्तन के प्रति अनभिज्ञ होता है वस्तुतः यह अवस्था  अतार्किक चिंतन की अवस्था है |

3 . स्थूल संक्रिया की अवस्था ( Concrete Operational Stage ) -
               संज्ञानात्मक विकास की तीसरी अवस्था 7 से 12 वर्ष तक होती हैं इस अवस्था में बालक तार्किक चिन्तन ( Logical Thinking ) करने योग्य हो जाता है |

4 . औपचारिक संक्रिया की अवस्था ( For mal Operational Stage ) -
                                       यह अवस्था संज्ञान - विकास की अन्तिम अवस्था है जो 12 वर्ष के बाद प्रारम्भ होती है । यह अवस्था तार्किक चिन्तन की अवस्था होती है । क्योंकि बालक अन्य वस्तुओं के अतिरिक्त स्वयं विचार के सम्बन्ध में विचार करने में सक्षम होता हैं । अब वह उद्दीपकों की . अनुपस्थिति में भी उनकी विशेषताओं , उपयोगिताओं और अन्य विवरणों के सम्बन्ध में सोच सकता हैं । अमूर्त चिन्तन , किशोरावस्था की एक प्रमुख विशेषता होती है । । इस अवस्था में किशोरों के विचार संगठित एवं परिपक्व हो जाते है ।


* पियाजे का शिक्षा में योगदान ( Contribution of Piaget in Educa tion ) :-
                                          1. पियाजे ने विकासात्मक बाल मनोविज्ञान का विकास किया ।

2 . पियाजे के अनुसार शिक्षा में शिक्षक की भूमिका की अपेक्षा की जाती है कि ( 1 ) शिक्षक अधिगम के लिए उपर्युक्त पर्यावरण का निर्माण करें ।
   ( 2 ) वह शिक्षार्थी की समस्या का निदान करें ।
   ( 3 ) वह शिक्षार्थी की संज्ञानवादी संरचनाओं के निर्माण में सन्तुलन बनाने में सहायक हो ।

3 . पियाजे ने नवीन शिक्षण सिद्धान्तों का विकास किया जो शिक्षा को बाल - केन्द्रित बनाने पर बल देते हैं ।

4 . पियाजे ने बुद्धि को जीव विज्ञान के ' स्कीमा ' की भाँति एक अनुकूलन का रूप बतलाकर बुद्धि की नवीन व्याख्या प्रस्तुत की ।

5 . पियाजे ने आत्मीकरण , समायोजन , सन्तुलनीकरण , स्कीमा आदि नवीन सम्प्रत्ययों का विकास किया जो शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगी सिद्ध हुए ।

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