* होब्स की प्राकृतिक अवस्था :-
हॉब्स ने प्राकृतिक अवस्था को बड़ी दयनीय बताइए उसके अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य लगातार संघर्ष करता रहता है वास्तव में होम्स के राजनीतिक दर्शन की एक प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें मानव स्वभाव या प्रकृति के विश्लेषण को केंद्र बिंदु बनाया गया है होम्स के अनुसार मनुष्य स्वभाव से स्वार्थी व आत्म केंद्रित प्राणि है वह हमेशा सुख पाने की इच्छा करता है दुखदाई परिस्थितियों से वह हमेशा दूर रहने का प्रयास करता है इस सुख की प्राप्ति के लिए वे दूसरों पर अधिकार जमाना चाहता है उसे इस बात का अनुभव होता है कि शक्ति द्वारा ही सुख प्राप्त किया जा सकता है लेकिन मैं दूसरों पर अपना अधिकार नहीं जमा सकता क्योंकि होम्स के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में सभी मनुष्य शारीरिक व मानसिक शक्ति में करीब-करीब बराबर होते हैं अभिप्राय यह है कि सब मिलाकर व्यक्तियों में एक प्राकृतिक समानता है अर्थात ने कोई किसी से कम है और ने किसी से अधिक सुख प्राप्ति के मार्ग में सबसे बड़ी अड़चन यह है की स्वयं उसी के सम्मान सभी व्यक्ति सुख की खोज में व्यस्त हैं लोग एक दूसरे से डरते हैं फिर भी एक दूसरे से लड़ते हैं संघर्ष की प्रवृति असुरक्षा की भावना उत्पन्न करती है |
* हॉब्स के राज्य की उत्पत्ति का सिद्धांत या संविदा का स्वरूप :-
हॉब्स के अनुसार मनुष्य के लिए विवेकजन्य नियमों का आचरण करना बहुत कठिन होता है क्योंकि मनुष्य के भाव आवेशों को नियंत्रित नहीं किया जा सकता इस विषय में प्रो. जोन्स का कहना है कि होम्स द्वारा दिए गए तर्क के स्तरों को प्रदर्शित करता है पहला यह है कि मनुष्य प्राकृतिक स्वभाव उग्र व अदूरदर्शी होता है जिसके फलस्वरूप उसे इच्छा से इन नियमों का आचरण करवाने के लिए एक सर्वशक्तिमान संप्रभु की आवश्यकता होती है मॉम्स का अनुमान है कि यदि विवेक को सहायता देने के लिए सख्ती भी साथ में हो तो काम चल सकता है ऐसी शक्ति सामाजिक संविदा द्वारा उत्पन्न की जा सकती है होम्स केवल शक्ति को ही इसका आधार नहीं मानते हैं बल्कि वे इस सत्य को भी बताना चाहते हैं कि इसका आधार बहुत कुछ जनता की इच्छा पर भी निर्भर है यदि सभी मनुष्य विवेक पूर्ण आचरण करें तथा इन नियमों का अनुपालन करें और अपनी सुरक्षा व शांति के लिए सामाजिक संविदा द्वारा अपने प्राकृतिक शक्तियों को एक सामान्य व्यक्ति या व्यक्ति समूह को सौंपने के लिए तैयार हो तो समस्या का समाधान हो सकता है इस संविदा को लागू किया जा सकता है होम्स का विचार एक ही स्थान विधा प्राकृतिक अवस्था को पार करने वाले मनुष्य के बीच होती है यह संविदा जनता वे शासन के बीच नहीं है बल्कि इस लोगों ने स्वयं आपस में शासक नियुक्त करने के लिए बनाया है होम्स के अनुसार इस मैं व्यवस्था के अंतर्गत हर व्यक्ति अपने प्राकृतिक शक्ति का परित्याग करते हुए दूसरे से यह कहता है मैं अपने ऊपर अपने शासन के अधिकार को इस व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समुदाय को इस शर्त पर देता हूं कि आप सब भी अपने अधिकारों को उसे सौंप दें और जिस प्रकार में इससे प्राधिकार को दे रहा हूं उसी प्रकार आप सब भी उस सभी कार्यों के लिए प्राधिकार दे दें |
* संप्रभुता:-
होम्स सामाजिक संविदा में ही प्रकृतिक अवस्था में रहने वाले मनुष्यों की समस्याओं का हल पाते हैं इस संविदा के बनने से जो राज्य बनता है उसमें एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न सत्ता निहित होती है जो कि एक सम्मान सम्मति के रूप में समाज पर शासन करती है हॉब्स के अनुसार शक्ति के अभाव में संविदा मात्र शब्दों के रूप में ही विद्यमान रहती है इस प्रकार संविधान में एक सम्मति ही सभी लोगों की व्यक्तिगत सम्मतियों का स्थान लेकर उनका प्रतिनिधित्व करती है इस प्रकार होम्स के सिद्धांत में अनेक सम्मतियों का स्थान एक सम्मति ले लेती है होम्स के अनुसार बिना एक सम्मति या सपा के राज्य नहीं बन सकता इस प्रकार संप्रभुता का सार पूरे समुदाय की ओर से निर्धारित करने के अधिकार में हीनिहित होता है सत्ता कानूनों के निर्माण तथा पालन करवाने के अधिकार के रूप में प्रकट होती है सत्ताधारी द्वारा बनाए गए कानूनों के अधिकारों को सीमित नहीं किया जा सकता क्योंकि राज्य के बनने से नैतिकता की कोई भावना नहीं होती और संविदा का पालन करना ही न्याय इसलिए नैतिक रूप से राजसत्ता असीमित होती है |
* हॉब्स : व्यक्तिवाद व निरंकुशतावाद का जनक :-
टिकाकारों का कहना है कि होम्स व्यक्तिवादी दार्शनिक के रूप में अपने सिद्धांतों का प्रतिपादन करते हैं तथा उनके निष्कर्ष निरंकुशतावाद की चरम सीमा पर पहुंचते हैं उनके राज्य का सिद्धांत एक असीमित अनियंत्रित सर्वोच्च संप्रभुता को जन्म देता है हॉब्स के अनुसार सभ्य समाज के बनाने से पहले तथा उसके बाद मनुष्य की सुरक्षा व सुख महत्वपूर्ण है होम्स का यह सिद्धांत उपयोगितावाद की उत्पत्ति के लिए एक आधारभूत कदम से हुआ
प्राकृतिक नियमों के संबंध में भी होम्स की धारणा भ्रांति पूर्ण लगती है एक और तो होम्स कहते हैं कि प्राकृतिक अवस्था में ने नैतिकता होती है नए कानून प्राकृतिक नियम विवेक पर आधारित होते हैं दूसरी तरफ हॉब्स मनुष्य द्वारा प्रसंविदा बनाने पर उसका पालन करने को कहते हैं जो कि विवेक पर ने आधारित होकर नैतिकता पर आधारित है होम्स नैतिकता की उपस्थिति को इनकार कर चुके होते हैं पर प्राकृतिक नियम के रूप में नैतिकता को फिर उपस्थित कर देते हैं इसके बिना वे राज्य की कल्पना भी नहीं कर पाते होम्स द्वारा मनुष्य को जीवन संकट के दौरान विद्रोह करने का अधिकार उसकीनिरंकुश संप्रभुता के विचार से मेल नहीं खाता है यदि प्रजा को विद्रोह का अधिकार है तो इस परिस्थिति में निरंकुश संप्रभुता का विफल होना आवश्यक है यदि संप्रभुता असीमित है तो संप्रभु की शक्तियों को किसी भी दशा में सीमित नहीं किया जा सकता दोनों विचार आपस में यह संगत तथा इसलिए एक साथ विद्यमान नहीं रह सकते |
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