* प्राचीन भारत में राजनीतिक विचार एवं सामाजिक स्थितियां:-
( 1 ) प्रतिनिधि राजनीति विचार स्त्रोत:-
प्राचीन भारतीय विचार एवं चिंतन के स्त्रोत प्रमाणिक रुप से वैदिक वाडग्मय विशेषत :ऋग्वेद में उपलब्ध है परवर्ती काल में मनु स्मृति तथा कौटिल्य के अर्थशास्त्र द्वारा भी उनका पर्याप्त संवर्दन होता है महर्षि वाल्मीकि की रामायण तथा महर्षि व्यास कृत महाभारत अपने महाकाव्य रूप में भी राजनीतिक विचारक्रमों तथा मान्यताओं एवं व्यवहारों को सुसंगठित रूप से अभिव्यक्ति देखते हैं |
( 2 ) राजनीतिक विचारों का मूल स्वरूप एवं प्रकृति :-
प्राचीन भारत में राजनीतिक विचारों की परंपरा का संगठित सूत्रपात वैदिक वाडग्मय द्वारा प्रस्तुत होता है इस संदर्भ में ऋत एक मूलभूत विचार योजना को चरितार्थ करता है ऋत व्यवस्था के आदर्श नियामक सिद्धांत के रूप में सृष्टि को अभिधारित, संरक्षित तथा परिपालित करता है |
* स्वधा का अर्थ :-
स्वयं की प्रकृति तथा उस प्रकृति की अनुपालना |
सामाजिक धार्मिक तथा राजनीति संदर्भो को संकलित करते हुए मन्नू राज्य को सामाजिक व्यवस्था के परिपालन एवं अनुरक्षण का दायित्व सौंपे हैं साथ ही उनका यह दृढ़ मत है कि राज्य को प्रत्येक सामाजिक स्तर पर स्वधर्म पालन की मूल सुविधा प्रदान करनी चाहिए |
* सरकार के कार्य परिवेश का निर्धारण करते हुए शांतिपर्व पांच कार्य क्षेत्रों की विवेचना प्रस्तुत करता है:-
( 1 ) दक्षाधिकरण
( 2 ) युद्ध प्रबंध
( 3 ) धर्मानुशासन
( 4 ) मंत्रचिंता
( 5 ) सर्वहित अथवा सर्व कल्याण का संसाधन |
• यतो धर्मस्ततो जय: ( जहां धर्म है वहीं विजय हैं ). :-
राजनीतिक जीवन के लौकीकीकरण( secularisation ) का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण कौटिल्य के अर्थशास्त्र से उपलब्ध होता है कौटिल्य अपनी कृति में यह मत प्रतिपादित करता है कि राज्य का दायित्व है कि वह स्वयं स्वधर्म का पालन करें और समाज में सभी को स्वधर्म पालन की प्रेरणा दें कौटिल्य राज्य की तर्क संगति के रूप में मत्स्य न्याय की प्रचलित मान्यता का उल्लेख करते हैं राज्य का तर्क सार हैं अराजकता से व्यवस्था निर्माण का उपक्रम |
• राजनीतिक व्यवस्था के सप्तद्ध सिद्धांत के अंतर्गत सात राज्य तत्वों का समावेश किया गया है
( 1 ) स्वामी
( 2 ) अमात्य
( 3 ) दुर्गे
( 4 ) कोष
( 5 ) दंड
( 6 ) मित्र
( 7 ) प्रकृतिसम्पदा
* राजनीति विचार तथा तत्कालीन भारतीय समाज :-
राजनीतिक विचारों में निहित धर्म के विविध प्रसंग, सामाजिक दृष्टिकोण तथा राज्य और प्रशासन संबंधी धारणाओं का मूर्त लेकिन विविध रूप प्रतिमान भारतीय समाज से प्राप्त होता है माने तो यह थी कि यथार्थ एक है लेकिन फिर भी वे अनेक रूपों में प्रकटय की क्षमता रखता है तत्कालीन शासन में धर्म एवं संस्कृति की नियामक भूमिका थी गुप्त काल में शासन का मानवीय संभावनाओं आत्म संयम एवं आत्मानुशासन पर अटूट विश्वास था कालिदास को राजनीतिक विचारक तो नहीं माना जा सकता लेकिन उनका यहां उल्लेख इसलिए प्रसंगिक है कि उन्होंने भारतीय मेधा को अपनी काव्यात्मक शैली से इतना अभी प्रेरित किया है |
Wow bahut hi acha post likha hai aapne
ReplyDeleteकीटनाशक के प्रकार के बारे मे सम्पूर्ण जानकारी ले